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संवाददाता: चार्ली रोज
चार्ली रोज: प्रधानमंत्री जी, आपने हमें अपने सरकारी निवास पर मिलने की अनुमति दी – इसके लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद।
प्रधानमंत्री: यह मेरे लिए अत्यधिक खुशी और सौभाग्य की बात है कि आप मेरे निवास पर मेरा साक्षात्कार कर रहे हैं।
चार्ली रोज : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अमरीका से जो भी व्यक्ति यहां आता है, लौटने के बाद हमेशा यह कहता है कि यह वास्तव में एक उल्लेखनीय अनुभव है। पिछली बार जब मैंने आपका साक्षात्कार लिया था, तब आपने विक्टर ह्यूगो के कथन का उल्लेख किया था, जैसे कि आपने संसद में भी कहा था, “जिस कार्य को करने का समय आ गया है, उसे कदापि रोका नहीं जा सकता।”
प्रधानमंत्री: किस कार्य को करने का समय आ गया है.....
चार्ली रोज: क्या आप सोचते हैं कि संयुक्त राज्य अमरीका और भारत के संदर्भ में आज यह बात लागू होती है? एक ऐसा कार्य जिसे करने का समय आ गया है?
प्रधानमंत्री: मैं पूर्णतः इस पर विश्वास करता हूं और यह बात मैंने अमरीकी कांग्रेस को संबोधित करते समय कही थी। मैंने कहा था सिद्धांत पर आधारित साझेदारी होती है और सौभाग्यवश, जब बात भारत – अमरीका संबंधों की आती है, दोनों तरह की स्थितियां एक नए मजबूत संबंध, बहुआयामी संबंध की ओर इंगित करती हैं। मैं मानता हूं कि यह संबंध हमारे दोनों देशों के हित में है।
चार्ली रोज: क्या यह परिवर्तनकारी हो सकता है?
प्रधानमंत्री : यह परिवर्तनकारी हो सकता है, मुझे उम्मीद है कि यह परिवर्तनकारी होगा।
चार्ली रोज : आप किस नवीन परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं ?
प्रधानमंत्री : एक नया भारत, जो उदार समाज, उदार अर्थव्यवस्था में अपनी नियति को संवारेगा, जहां मानवीय स्वतंत्रता के सभी मूल अधिकारों का सम्मान हो, बहुलवादी, समावेशी मूल्य व्यवस्था के प्रति अत्यधिक सम्मान हो। मेरे विचार में यही कारण भारत को संगठित बनाता है और संगठित भारत और संयुक्त राज्य अमरीका को एक करता है। मुझे उम्मीद है कि हमारे दोनों देश आपस में मिल-जुलकर कार्य करते हुए आपसी संबंध के इतिहास में नया अध्याय लिख सकते हैं।
यद्यपि भारत अपनी गरीबी, अज्ञानता और रोगों से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहा है, जो कि अभी भी लाखों लोगों के कष्ट का कारण है। किंतु मुझे विश्वास है कि संयुक्त राज्य अमरीका सहित विश्व के शेष देशों को देने के लिए हमारे पास काफी कुछ है। आपको भारत जैसी विविधता, जटिलता विश्व में अन्यत्र नहीं मिलेगी। यहां एक अरब लोग लोकतंत्र और उदार अर्थव्यवस्था के दायरे में सामाजिक और आर्थिक उन्मुक्ति तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे दृढ़ विश्वास है कि जो कुछ भारत में हो रहा है, मेरे विचार में ये घटनाएं 21 वीं सदी में मानव सभ्यता के भावी विकास के लिए सीख और नैतिक पाठ हैं।
चार्ली रोज : ये सीख कौन सी हैं?
प्रधानमंत्री : मुझे विश्वास है कि सभ्यता का भविष्य उनके हाथ में है, जो सभ्यताओं के टकराव की बात नहीं करते हैं, बल्कि साथ मिलकर काम करने में यकीन रखते हैं। हमारे लिए सभ्यताओं के बीच संवाद जरूरी है। हमें बहुसंस्कृतिवाद की जरूरत है, विविधता, सहिष्णुता, विविध – आस्था के प्रति सम्मान की जरूरत है। हम अपने देश में ऐसे ही व्यवहार अपना रहे हैं। यदि हम सफल होते हैं, और यदि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे सभी कार्य करने में सफल होते हैं, तो मुझे विश्वास है कि मानव सभ्यता का बड़ा हिस्सा इससे उपयुक्त सीख लेगा, जो कि 21 वीं सदी में भविष्य की दिशा है।
चार्ली रोज : और आप इस संदर्भ में संयुक्त राज्य अमरीका के साथ इस नई सामरिक भागीदारी के लिए तैयार हैं, ताकि विश्व के शेष देशों के साथ संबंध बनाने तथा संवाद शुरू करने का अवसर मिल सके, जहां इस प्रकार की पृष्ठभूमि आवश्यक होगी।
प्रधानमंत्री : हां, हमारे पास ऐसी पृष्ठभूमि है। मुझे विश्वास है कि हम जो भी प्रयास कर रहे हैं, वह विश्व के शेष विकासशील देशों के लिए सीख है, जो केवल विकासशील देशों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी देशों के लिए है। मेरे विचार में सूचना प्रौद्योगिकी, परिवहन प्रौद्योगिकी में क्रांति के परिणामस्वरूप भौगोलिक अवधारणा ने अपना पुराना महत्व खो दिया है।
मेरा मानना है कि चाहे वह संयुक्त राज्य अमरीका हो या यूरोप, वे सब अंततः बहुसांस्कृतिक समाज बन जाएंगे। इसलिए भारत का महान प्रयोग, जिसके अंतर्गत व्यापक, विविध मतों वाले एक अरब लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था के अधीन एक साथ काम करते हुए अपने लिए सफलता तलाश रहे हैं, मेरे विचार में सभी बहुसांस्कृतिक समाजों के लिए दृष्टांत है और मेरा विश्वास है कि सारे समाज, भविष्य के सारे संपन्न समाज बहुसांस्कृतिक समाज बनने जा रहे हैं।
चार्ली रोज : एक मार्च, बुधवार को विश्व के प्राचीनतम लोकतंत्र के प्रतिनिधित्व करने वाले संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति आपसे, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले महानुभाव से मिलने आ रहे हैं। यह कैसे संभव हुआ ? कहा जाता है कि संयुक्त राष्ट्र में अमरीका के राष्ट्रपति आपसे मिले और आपको एक ओर ले गए या आपसे समय मांगा और कहा “मैं तेल के लिए आपके देश की मांग को समझता हूँ। मैं तेल के लिए चीन की मांग को समझता हूं। मैं तेल के लिए अपने देश की मांग को समझता हूँ। परमाणु मुद्दे पर मैं आपकी सहायता करना चाहता हूं। चलिए हम इस मुद्दे पर मिलकर काम करें और हम अतीत को भूलने की कोशिश करें, जो एक अड़चन थी।”
प्रधानमंत्री : सयुंक्त राष्ट्र में उन्होंने मुझसे जो कहा था वह मुझे याद नहीं है। किंतु हमारी पहली बैठक के दौरान उन्होंने जो कुछ कहा था, वह मुझे याद है। हम ग्लेन ईगल्स में जी-8 शिखर सम्मेलन के दौरान भी मिले थे। हमारे बीच व्यापक चर्चा हुई थी। हम साथ-साथ बैठे थे। उन्होंने वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य, भारत की जरूरतों को विस्तार से समझाया था।
उन्होंने मुझसे कहा था, “यदि तेल की कीमत 100 डालर तक जाती है, तो यह भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमरीका के लिए भी नुकसानदेह होगा। इसलिए हमें मिलकर काम करना चाहिए, ताकि परमाणु ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करके भारत को परमाणु सुरक्षा प्राप्त करने में मदद की जा सके।
चार्ली रोज : इसलिए इस परमाणु सौदे को इस नए संबंध के केंद्र में रखा गया है।
प्रधानमंत्री : हां, कुछ ऐसा ही है। किंतु हमारे बीच बहुआयामी संबंध है। किंतु मौजूदा स्थिति में, हमारे विकास की राह में ऊर्जा एक प्रमुख बाधा है। वर्तमान में, भारत 70% तेल और तेल- उत्पाद विदेश से आयात करता है। आपूर्ति में अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है। कीमत में भी अनिश्चितता को स्थिति बनी रहती है और इससे भारत का विकास प्रभावित होता है।
हमारे पास कोयले का विशाल भंडार है। मुझे लगता है कि जब तक परिष्कृत कोयला प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं किया जाता, कोयले का अत्यधिक उपयोग विश्व पर्यावरण के लिए खतरा है - जैसे कि विश्व के तापमान में वृद्धि और अन्य प्रभाव। किंतु यदि परमाणु ऊर्जा पर हमारा अधिकार हो जाता है, तो ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में गतिशीलता आ जाएगी, जैसे कि हमारा देश द्रुत विकास की ओर अग्रसर है।
चार्ली रोज : इससे नए सिरे से प्रौद्योगिकी और ईंधन तथा असैनिक क्षेत्र में भावी रिएक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाएगी। ऐसा भी लगता है कि यह विश्व समुदाय के समक्ष जिम्मेदारी स्वीकार करने, नए परमाणु हथियारों को संभालने की अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करना है।
प्रधानमंत्री : हमारा रिकार्ड बेदाग है। हम कभी भी इन संवेदनशील प्रौद्योगिकी के अनधिकृत प्रसार का स्रोत नहीं रहे, भले ही इस क्षेत्र में उत्तेजनापूर्ण वातावरण रहा है। हमारे देश में निर्यात नियंत्रण के लिए कठोर व्यवस्था है।
वास्तव में, संयुक्त राज्य अमरीका जाने से पहले मैंने संवेदनशील प्रौद्योगिकी के निर्यात के मामले में निर्यात नियंत्रण के लिए संसद में नवीनतम कानून पारित करवाया जैसा कि अधिकांश विकसित देशों में अपनाया गया है। मैं मानता हूं कि हम परमाणु हथियार वाले राष्ट्र हैं। किंतु हम इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि हम अभी भी यह मानते हैं कि विश्व का बचाव अंततः सार्वभौमिक परमाणु हथियार निरस्त्रीकरण में निहित है।
किंतु यह लक्ष्य काफी दूर है। हम भारतवासी परमाणु सुविधासंपन्न विश्व समुदाय में शामिल होना चाहते हैं और जिम्मेदार परमाणु शक्तिसंपन्न देश होने के नाते सभी जिम्मेदारियों को स्वीकार करते हैं। किंतु, साथ ही, हमारे देश की ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में अपने विकल्पों को व्यापक बनाना चाहते हैं।
चार्ली रोज : राष्ट्रपति बुधवार को आ रहे हैं। क्या आप समझते हैं कि उनके आने से पहले कोई करार किया जाएगा?
प्रधानमंत्री : हां, बिलकुल, मुझे पूरी उम्मीद है। यही मेरी प्रार्थना है।
चार्ली रोज : इस समय यह मतभेद है कि किन रिएक्टरों को असैनिक क्षेत्र में रखा जाएगा और किन रिएक्टरों को सैनिक क्षेत्र में रखा जाएगा। क्या यह मतभेद विभाजक मुद्दा है? इस संबंध में क्या कार्रवाई की जा रही है?
प्रधानमंत्री : मैं इसे विभाजक मुद्दा नहीं मानता। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। मैं मानता हूं कि संयुक्त राज्य अमरीका को इस सौदे के लिए कांग्रेस से मंजूरी लेनी होगी। हमारे यहां भी संसद है, जैसे कि मैने राष्ट्रपति जी को कहा है – यह सौदा भारत के सामरिक कार्यक्रम से संबंधित नहीं है। यह चर्चा का विषय नहीं है। हमारा असैनिक परमाणु कार्यक्रम चर्चा का विषय है और इसमें कई तरह की चिंताएं हैं। हमने सहमति जताई है कि हम अपने सामरिक कार्यक्रम और असैनिक कार्यक्रम के बीच विश्वसनीय दूरी रखेंगे। हमने अपने 18 जुलाई के वक्तव्य में जो प्रतिबद्धता जताई थी, उसे पूर्ण निष्ठा के साथ करने के लिए हम वचनबद्ध हैं।
चार्ली रोज : 90 प्रतिशत से अधिक संभावना है कि यह करार हो जाएगा।
प्रधानमंत्री : मुझे पूरी उम्मीद है।
चार्ली रोज : क्या आप सोचते हैं कि यह करार राष्ट्रपति जी के आने से पहले हो जाएगा या राष्ट्रपति के आने पर होगा।
प्रधानमंत्री : (हँसते हुए) कुछ ही दिन बचे हैं, हमारे अधिकारी इस पर काम कर रहे हैं। वे काम करेंगे – कल श्रीमान बर्न्स वापस गए हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हम इस मुद्दे को सुलझा लेंगे और वैश्विक परमाणु प्रौद्योगिकी संपन्न देशों के समुदाय में भारत को शामिल करने में राष्ट्रपति बुश का महत्वपूर्ण योगदान होगा।
पिछली बार जब मैं राष्ट्रपति जी से मिला था, तब कहा था, “राष्ट्रपति जी, भारत के लोग, विशेषरूप से चिंतन करने वाले लोग, हमारे वैज्ञानिक, हमारे प्रौद्योगिकीविद संयुक्त राज्य अमरीका के खिलाफ सही या गलत शिकायत करते हैं कि अमरीका ने अन्य देशों के साथ मिलकर नियंत्रण की ऐसी प्रणाली तैयार की है, जिसमें हमारे देश के लिए दोहरी-उपयोग वाली प्रौद्योगिकी की उपलब्धता को नकारा जाता है, जो हमें सामाजिक और आर्थिक विकास की दौड़ में प्रतिस्पर्धा (लीपफ्रॉगिंग) करने से रोकती है।” और मैंने कहा था, “मैं आपसे अपील करता हूं कि इस व्यापक व्यवस्था के अंतर्गत भारत-अमरीका परमाणु सहयोग पर ध्यान दें।” मैं इसे ऐतिहासिक समन्वय मानता हूं।
चार्ली रोज : राष्ट्रपति जी को कांग्रेस को विश्वास में लेना होगा।
प्रधानमंत्री : हाँ, हमारी भी संसद है और ऐसे मुद्दों पर हमारी संसद भी अत्यंत संवेदनशील है। मैंने अपनी संसद से वादा किया है कि हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिससे भारत के सामरिक कार्यक्रम को नुकसान पहुंचे। और हमारा कार्यक्रम एक संतुलित कार्यक्रम है।
यद्यपि हमने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, तथापि हम संवेदनशील प्रौद्योगिकी के निर्यात से संबंधित अधिकांश दिशा-निर्देशों का अनुपालन करते हैं। इसलिए, मैं मानता हूं कि भारत का मामला विशिष्ट हैं। मैं मानता हूँ कि यह अपवाद है। मैं भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी संपन्न देशों के समुदाय में शामिल करना चाहता हूँ।
चार्ली रोज : अमरीका में कुछ लोग कहते हैं कि यदि आप इस योजना पर आगे बढ़ते हैं तो यह मिथ्याचार होगा, क्योंकि ईरान के मामले में आपकी यह आपत्ति है कि ईरान के पास परमाणु हथियार हैं।
प्रधानमंत्री : नहीं, ईरान के साथ हमारे मधुर संबंध हैं। हमारा संबंध बहुत प्राचीन हैं। हम और ईरान एक ही क्षेत्र में हैं। और ईरान के संबंध में हमारी चिंता यह है कि ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए, ईरान के पास वे सारे अधिकार होने चाहिए, जो परमाणु अप्रसार संधि के सदस्य होने के नाते उसके पास होने चाहिए।
किंतु इसकी कुछ बाध्यताएं भी हैं, जिसे उसे स्वेच्छा से मानना चाहिए। इसलिए, यह उपयुक्त है कि ईरान इन बाध्यताओं को पूरा करें। अब हथियार कार्यक्रम के बारे में ही संदेह हैं। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी इस मामले को देख रही है। ईरान ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने कार्यक्रम के कुछ हिस्सों के बारे में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को जानकारी नहीं दी है।
हमारा मानना है कि संवाद के माध्यम से, कूटनीति के माध्यम से इन मतभेदों को दूर करने का समय अब भी है। मुझे उम्मीद है कि विश्व समुदाय बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए इन तथाकथित परस्परविरोधी आरोपों के समाधान के लिए कूटनीति, संवाद का रास्ता अपनाएंगे।
चार्ली रोज : आप क्यों सोचते हैं कि राष्ट्रपति जी... अथवा क्या आप विश्वास करते हैं कि राष्ट्रपति जी आप और आपके देश, संयुक्त राज्य अमरीका और भारत के बीच के इस संबंध को प्रमुख विदेश नीतिगत प्रयास के रूप में देख रहे हैं। कुछ लोगों ने यह भी कहा है, जैसा कि आप जानते हैं कि यह यात्रा राष्ट्रपति बुश के लिए वैसा कदम है, जैसा कि राष्ट्रपति निक्सन के लिए चीन यात्रा।
प्रधानमंत्री: हां, हां, बिलकुल। मैं राष्ट्रपति जी से तीन या चार बार मिला हूं। लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से अत्यंत प्रभावित हूं। उनका दृढ़ विश्वास है कि लोकतंत्र सबके लिए अच्छा है, लोकतंत्र विश्व शांति के लिए अच्छा है, लोकतंत्र युद्ध नहीं चाहता है। वास्तविकता यह है कि अत्यधिक गरीबी के बावजूद भारत में लोकतंत्र कार्यशील है, भारत लोकतंत्र के पथ पर अग्रसर है। भारत में लोकतंत्र पूर्ण रूप से कार्य कर रहा है। मुझे लगता है कि इस बात से राष्ट्रपति जी अत्यधिक प्रभावित हैं।
चार्ली रोज : लोकतंत्र का विचार और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ सामरिक संबंध स्थापित करना उनके लिए महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री : मैं ऐसा ही सोचता हूं। उन्होंने हमेशा मुझसे यह कहा और कुछ दिन पहले एशिया सोसायटी को संबोधित करते हुए भी ऐसा ही कहा था।
चार्ली रोज : हां, कुछ दिन पहले।
प्रधानमंत्री : मैं समझता हूं कि उन्होंने फिर से मजबूत संबंध पर बल दिया है, जो कि मूल्यों के साथ-साथ साझा-हित पर आधारित है, जैसा कि राष्ट्रपति जी ने कहा है। इन मूल्यों में लोकतंत्र का मूल्य, बहुलतावाद का मूल्य – भिन्नताओं के प्रति सहिष्णुता का मूल्य शामिल है। और साझा-हित में दोनों देशों के हित शामिल हैं। यदि दोनों देश आपस में मिल-जुलकर काम करते हैं तो यह सफलता की कुंजी होगी।
भारत की विकास-दर बढ़ेगी। किंतु इस प्रक्रिया में चिकित्सा क्षेत्र को भी लाभ होगा। इन लाभों में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति, भारत के मानव संसाधन की उपलब्धता, भारत के वैज्ञानिकों के समूह के लिए आऊटसोर्सिंग शामिल है। इससे अमरीकी कंपनियों को अपने कर्मचारियों की संख्या कम करने, उत्पादकता बढ़ाने और कार्य कुशलता बढ़ाने में मदद मिलेगी और वे संयुक्त राज्य अमरीका में तथा विश्व के शेष देशों के साथ व्यापार करने में और अधिक प्रतिस्पर्धी बन पाएंगी।
चार्ली रोज : मैं इन सभी आर्थिक मुद्दों पर बात करना चाहता हूँ। मुझे कुछ पल के लिए सामरिक मुद्दों पर बात करनी है। कुछ लोग कहते हैं कि राष्ट्रपति जी चीन के लिए प्रति-संतुलन चाहते हैं। यह भारत कर सकता है। संयुक्त राज्य अमरीका के लिए इन सभी आर्थिक, सांस्कृतिक साझा-हितों के साथ-साथ साझा-लोकतंत्र, चीन के लिए प्रति-संतुलन कायम करने का सर्वोत्तम मार्ग है।
प्रधानमंत्री : हम चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं। इस मुद्दे पर राष्ट्रपति जी के साथ मेरी काफी अच्छी चर्चा हुई है और मैं समझता हूं कि हमारे विचारों में पूर्ण रूप से मतैक्य है। हम दोनों देश मानते हैं कि चीन अत्यंत महत्वपूर्ण है। चीन का भावी विकास, चीन का प्रभाव अवश्य बढ़ेगा।
और हम सभी मानते हैं कि हमें चीन के साथ संबंध बनाए रखना है, चीन के साथ सीमा मुद्दे पर हमारा मतभेद है। हम ईमानदारी से इन मतभेदों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। और राष्ट्रपति जी ने ठीक कहा है कि हमें इसी पथ पर चलना है। उन्होंने कहा है कि अमरीका चीन के साथ संबंध बनाए रखना चाहता है।
किंतु मुझे यह भी विश्वास है कि एक-दूसरे की ओर प्रतिद्वंद्वी अथवा प्रतिस्पर्धी के रूप में देखे बिना, खुली अर्थ व्यवस्था, खुले समाज के ढांचे में, प्रगति के पथ पर बढ़ना लोकतांत्रिक भारत, न केवल एशिया में, बल्कि एशिया के बाहर स्थित विकसित-विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण है।
चार्ली रोज : राष्ट्रपति जी ने कहा कि वे नहीं चाहते – उनके शब्दों में, "मैं चीन को नियंत्रित नहीं करना चाहता हूँ।" किंतु वे नहीं चाहते कि कोई देश इस क्षेत्र में प्रभुत्व रखे। क्या आप इस विचार से सहमत हैं?
प्रधानमंत्री : इतिहास पर गौर करें तो मेरे विचार में यह उपयुक्त मॉडल होगा।
चार्ली रोज : यदि चीन को नियंत्रित करना अमरीका की नीति है, तो क्या भारत इसके लिए सहायता करेगा?
प्रधानमंत्री : जैसे कि मैंने कहा है हम चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं। हम चीन के खिलाफ किसी भी गुटबंदी का न तो हिस्सा हैं और न ही हिस्सा बनना चाहते हैं। और मेरा मानना है कि वर्तमान चीनी नेतृत्व अपने आधुनिकीकरण की सफलता चाहता है।
मैं नहीं मानता कि वर्तमान चीनी नेतृत्व भारत के लिए खतरा है, अथवा अन्य देशों के लिए खतरा है। हम चीन के साथ घनिष्ठ, दोस्ताना संबंध चाहते हैं। अपने सीमा-विवाद का समाधान चाहते हैं। हमारे बीच आर्थिक संबंध बढ़ रहे हैं और हमारे दोनों देशों को शांति और सहयोग की जरूरत है, ताकि गरीबी से, जिससे दोनों देशों में लाखों लोग पीड़ित हैं, मुक्ति पाने की हमारी महत्वाकांक्षी योजना में हम सफल हो सकें।
चार्ली रोज : चीन की महत्वाकांक्षा के बारे में आप क्या सोचते हैं?
प्रधानमंत्री : आज की तारीख में निश्चित रूप से मैं समझता हूँ कि चीनी अर्थव्यवस्था और चीनी समाज चिंता का विषय है। किंतु मैं यह भी समझता हूँ कि चीन के पास महाशक्ति बनने का विज़न है। और मेरे विचार में यह तर्कसंगत भी है और मैं नहीं समझता कि यह हमारे लिए खतरे का विषय है।
चार्ली रोज : भारत महाशक्ति बनना चाहता है।
प्रधानमंत्री : हाँ, जैसे कि मैंने कहा है- जब आपने मुझे उद्धृत किया, जब 1991 में मैने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत किया था। मैंने स्पष्ट रूप से कहा था, प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत का उभरना – ऐसा विचार है, जिसका समय आ गया है। यह चीन के लिए एक न्यायसंगत महत्वाकांक्षा है।
यह भारत के लिए भी एक न्यायसंगत महत्वाकांक्षा है। और ऐसी विश्व व्यवस्था विकसित करना मानवता के लिए चुनौती है, जिसमें हमारे दोनों देशों की न्याय संगत महत्वाकांक्षा को रचनात्मक अभिव्यक्ति मिल सके, जिसमें किसी भी देश को खतरा न हो।
चार्ली रोज : आप तो जानते हैं, सेक्रेटरी राइस ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमरीका का लक्ष्य है भारत को हर संभव सहायता देना, ताकि भारत 21 वीं सदी में विश्व शक्ति बन सके।
प्रधानमंत्री : पिछले साल वे आई थीं, उन्होंने कहा था और उन्होंने पहली बार ऐसा सूत्र दिया। कुछ दिन पहले मैंने उनको फोन किया था (हँसते हुए) और मैंने उनसे कहा – “मैडम, आप वो शख्स हैं, जिन्होंने यह विचार व्यक्त किया था कि संयुक्त राज्य अमरीका भारत को प्रमुख शक्ति बनने में मदद करना चाहेगा। यह परमाणु सौदा संयुक्त राज्य अमरीका के सरोकार की ठोस अभिव्यक्ति का प्रदर्शन है। इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि राष्ट्रपति जी के आगमन से पहले इस सौदे को पूरा करने में आपका आशीर्वाद मिलेगा।”
चार्ली रोज : भारत अपनी अर्थव्यवस्था, अपनी जनसंख्या, अपने लोकतंत्र - अपने व्यापार के साथ विश्वशक्ति बनने जा रहा है। ऐसी स्थिति में, संयुक्त राज्य अमरीका भारत को सामरिक संदर्भ में कैसे सहायता कर सकता है ?
प्रधानमंत्री : इसके लिए कई रास्ते हैं – आज के समय में आतंकवाद और इससे जुड़े हुए मुद्दे चिंता का प्रमुख कारण हैं। यह अमरीका के लिए भी चिंता का कारण है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। इसमें आतंकवाद को नियंत्रित करने, विश्व को आतंकवाद से मुक्त करने के लिए संयुक्त रणनीति, सहयोग, खुफिया जानकारी की साझेदारी शामिल है। मैं समझता हूँ कि यदि हमारी विकास संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करना है, तो इस बुनियादी विचार पर ध्यान दिया जाना चाहिए और मैं मानता हूँ कि हमारे दोनों देश आपस में सहयोग कर सकते हैं।
चार्ली रोज : आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में।
प्रधानमंत्री : हाँ, खैर, हमारे पड़ोस में, अफगानिस्तान में उदीयमान लोकतंत्र है। हम अपनी क्षमता के अनुसार सर्वोत्तम रूप से अफगानिस्तान की सहायता कर रहे हैं। हमने अफगानिस्तान के लिए लगभग 650 मिलियन डॉलर लागत वाला विकास सहायता कार्यक्रम प्रारंभ किया है। हमारे कार्यक्रम में अफगानिस्तान की सभी मूलभूत मानवीय जरूरतों को शामिल किया गया है।
उदीयमान लोकतंत्रों के पुनर्निर्माण और विकास कार्य में सहायता करना – ऐसा क्षेत्र है, जहाँ हम दोनों देश मिलकर काम कर सकते हैं। और राष्ट्रपति जी ने स्वयं एचआईवी/एड्स, मलेरिया, तपेदिक (ट्यूबर-क्यूलोसिस) जैसी महामारी से विश्व को सुरक्षित करने में हमारे सहयोग का उल्लेख किया है।
ये हमारी प्रमुख समस्याएं हैं। संयुक्त राज्य अमरीका और भारत मिलकर काम कर सकते हैं। हम टीके की खोज के लिए हमारी अनुसंधान क्षमताओं को साझा कर सकते हैं, जिससे इन महामारियों की समस्याओं से निजात मिल सके।
चार्ली रोज: बिल गेट्स के यहाँ आने और ऐसे कार्यक्रमों में उनके शामिल होने से निजी क्षेत्र में पहले से ही इसकी शुरूआत हो चुकी है।
प्रधानमंत्री: हां, बिल गेट्स इन कार्यक्रमों में घनिष्ठ रूप से शामिल हैं और हम उनकी भागीदारी का स्वागत करते हैं। और मैंने ऊर्जा सुरक्षा के बारे में जिक्र किया था।
चार्ली रोज: जब आप कृषि के बारे में सोचते हैं तब जो विचार सामने आता है वह है दूसरी हरित क्रांति जिसे बढ़ावा भी दिया जा रहा है ।
प्रधानमंत्री: हां, मैने कांग्रेस के संयुक्त सत्र में अपने अभिभाषण में इसका उल्लेख भी किया था । हमारे देश में पहली हरित क्रांति जो छठे दशक के आरंभ में हुई थी और इसे भारतीय प्राधिकारियों भारतीय वैज्ञानिकों और अमरीका रॉकफैलर फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन के सहयोग से अत्यधिक बल मिला था। मेरे विचार से हमारे दो देशों के बीच यह एक सहयोग का ऐतिहासिक पहलू है ।
चार्ली रोज: और अब इस पर दोबारा जोर दिया जा सकता है।
प्रधानमंत्री : हां, इस पर दोबारा जोर दिया जा सकता है। इस संबंध में राष्ट्रपति जी और मेरे पास कुछ बहुत अच्छे विचार हैं और हमने इस बात पर चर्चा भी कि है कि हमारे देश में दूसरी हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए ज्ञान का प्रयोग कैसे किया जाए ।
चार्ली रोज : इसमें सेना का सहयोग भी चाहिए । सेना के कुछ प्रतिनिधि सेक्रेटरी रम्सफील्ड से मिलने भी गए थे और वहां एक करार भी हुआ है ।
प्रधानमंत्री : हां, एक ढांचागत करार किया गया है।
चार्ली रोज : इस करार की मुख्य बातें क्या हैं ?
प्रधानमंत्री : हम हथियारों की खरीद अलग – अलग स्रोतों से करने पर विचार कर रहे हैं।
हम उन देशों के साथ सहयोगी करार करने पर भी विचार कर रहे हैं जहां से ये खरीदे जा सकें, और जिनके साथ संयुक्त अनुसंधान और संयुक्त उत्पादन किया जा सके । हम दोनों देशों की सेनाओं के बीच सहयोग पर भी विचार कर रहे हैं, हमने पहले ही कुछ ऐसी व्यवस्थाएं भी की हैं जहां दोनों देशों की वायु सेनाओं ने संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया है। मेरे विचार में हमें अमेरीका के साथ ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में अपने संबंधों को आगे बढ़ाना होगा।
चार्ली रोज : क्या वर्ष 2006 में अमेरिका का दोस्त बनने में कोई मुश्किल थी ?
प्रधानमंत्री : इस बारे में मैं कहना चाहूंगा कि उस समय इराक, इरान की घटनाओं से कुछ तनाव सा हो गया था विशेष रुप पर हमारे मुसलमान भाइयों में, मुझे पूरो भरोसा है कि ईराक और इरान के मसले का हल निकाला जा सकता है जिससे इराक एक ऐसा या नया युग देखे जिसमें उसकी जनता को पूर्ण प्रभुता का सुख मिल सके ।
इसके अलावा ईरान की समस्याओं के बातचीत के जरिए, कूटनीतिक तरीके से सुलझाने का प्रयास किया जा सकता है। इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि भारत और निर्वाचित देशों के बीच कोई समस्या है।
चार्ली रोज : इसके अलावा कोई खास विदेश नीति है।
प्रधानमंत्री : नहीं, नहीं।
चार्ली रोज : क्या इराक के मामले में आप किन्हीं शर्तों पर सहायता करने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री : ठीक है, हमने पुनर्संरचना के मामले में सहायता की पेशकश की है, उदाहरण के लिए हम उनकी पुलिस को प्रशिक्षित करेंगे हम उनकी सिविल सेवा को प्रशिक्षित करेंगे, हम उनके चुनाव अधिकारियों को प्रशिक्षित करेंगे जैसा कि अफगानिस्तान में कर रहे हैं ।
चार्ली रोज : संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता – संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का मामला । फ्रांस का कहना है कि वे आपके पक्ष में हैं ।
प्रधानमंत्री : मुझे अच्छा लगेगा कि अमरीका भी ऐसा ही कहे (ठहाका लगाते हैं) जब राष्ट्रपति जी यहां आएं –
चार्ली रोज: आप उन्हें याद दिलाएंगे।
प्रधानमंत्री : मैं समझता हूं कि वे इस बात की घोषणा करेंगे कि उनकी भी यही राय है। लेकिन मेरी नजर में अमरीका एक सुपरपावर है । उसके अपने हित हैं । वह अनेक चीजों को संतुलित कर रहा है । लेकिन मेरा यह मानना है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का भारत का दावा बहुत मजबूत है ।
चार्ली रोज : लेकिन जब राष्ट्रपति आएंगे तो क्या आप उन्हें याद दिलाएंगे ।
प्रधानमंत्री : हां इस मामले पर सेक्रेटरी राइस से भी बात की थी जब वह भारत आई थीं । और यदि मुझे अवसर मिला तो मैं फिर उनसे भी इस मामले पर बात करुंगा ।
चार्ली रोज : अच्छा तो, यदि यह न्यूक्लियर करार नहीं हो पाता है तो आपके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का कहना है कि इससे दोनों देशो के रिश्ते आगे नहीं बढ़ पाएंगे, क्या यह सही है ? मैं केवल यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि मै अमरीका और भारत के सहयोग की संभावना के संदर्भ में रिश्तों की गर्माहट को लेकर आपके दृष्टिकोण को समझता हूं । उससे निश्चित तौर पर जब आप भारत और मध्य पूर्व की बात करते हैं, जैसा कि आपका सुझाव है, विभिन्न धर्म और जाति की पृष्ठभूमि वाले धर्म निरपेक्ष समाज का बोध होता है । यह नीतिगत संबंध क्या अमरीका के साथ संभव हो पाएगा ?
प्रधानमंत्री: देखिए, सहयोग के क्षेत्र में जहां तक संयुक्त रुप से कार्य करने, संयुक्त रुप से विचार करने का प्रश्न है तो यह हमारा क्षेत्रीय और द्धिपक्षीय सहयोग है। मैं समझता हूं कि इस क्षेत्र में हमारे पास बहुत अधिक संभावनाएं हैं। और आज की स्थिति में किसी भी क्षेत्र में भारत और अमरीका के बीच सहयोग बढ़ाने में कोई रुकावट नहीं है । लेकिन जैसा कि मैने कहा इराक में जो हो रहा है, ईरान में जो स्थिति है उससे हमारी जनसंख्या के एक बड़े हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
चार्ली रोज: क्या वे लोग ये मानने लगे हैं कि भारत अपनी गुट- निरपेक्ष देश होने की छवि से कुछ दूर हो रहा है या आप पहले ही इस विचारधारा से दूर हो चुके हैं ।
प्रधानमंत्री : मैने गुट निरपेक्षता को सदैव भारत की नीति के रुप में मान्यता दी है यह हमारी विदेश नीति है जो हमारे सर्वमान्य राष्ट्रीय हितों के अनुसार लागू की जाती है, ऐसा में कहता रहता हूं । इसका अर्थ यह है कि हम ही स्वतंत्र रुप से यह तय करेंगे कि भारत के सर्वमान्य राष्ट्रीय हित कौन- कौन से हैं । उस अर्थ में गुट निरपेक्षता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि 1950 के दशक में थी ।
चार्ली रोज: आपके राजनैतिक समाज में अमरीका और भारत की इस निकटता का विरोध करने वाले दल कौन – कौन से हैं ?
प्रधानमंत्री: देखिए मेरी राय में तो इसे भारपूर समर्थन मिला है, वास्तव में हमारी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भारत और अमरीका की निकटता को पसंद कर रहा है। एक अनुसंधान दल ने इस विषय पर एक सर्वेक्षण किया था कि भारत के लोग अमरीका के लोगों के बारे में क्या सोचते हैं । और मुझे याद है कि 71 प्रतिशत लोगों की राय में अमरीका के साथ मिलकर कार्य करने के बारे में सबका ख्याल अच्छा ही था । मेरी राय में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अभी भी पुरानी सोच रखते हैं और अभी भी शीत युद्ध से बाहर नहीं आ पाए हैं ।
हमारे गठबंधन के वामपंथी दल अब भी अमरीका को विश्व की महाशक्ति बनने की इच्छा रखने वाला देश समझते हैं। लेकिन मेरी राय में हमारे कल के नए भारतवासी , हमारे युवा, हमारे कारोबारी, हमारे वैज्ञानिक, हमारे प्रोद्योगिकीविद् इस शीत युद्ध की सोच में वापिस नहीं जाएंगे ।
चार्ली रोज: मैं इसी सप्ताह भारत का दौरा करके आया हूं और चीन के संबंध में सभी ने मुझे बताया है कि आपके संबंध चीन के साथ विकसित हो रहे हैं और यह अच्छी बात है, चीन भारत को एक बाजार के रुप में देखता है । चीन एक निर्माणकर्ता देश है, और भारत सेवा प्रदान करने वाला देश है, भारत और चीन के बीच सभी प्रकार के व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
प्रधानमंत्री: हां, मैं इससे सहमत हूं, पूरी तरह सहमत हूं।
चार्ली रोज : यह व्यापार किन क्षेत्रों में होगा और इसका क्या फायदा होगा ?
प्रधानमंत्री: देखिए मैं समझता हूं कि यदि हम दोनों देश आपसी व्यापार को आगे बढ़ाते हैं तो मुझे आशा है कि इससे सहअस्तित्व के नए आयाम पैदा होंगे । यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे बीच 1962 का युद्ध हुआ।
चार्ली रोज: सीमा को लेकर।
प्रधानमंत्री: यदि हम सीमा –विवाद सुलझा लेते हैं तो भारत और चीन के बीच सहयोग होगा हम दोनों देश एशिया महाद्धीप में आते हैं और चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर नौ प्रतिशत है। मेरे ख्याल में हमारे सामने एक –दूसरे के देश में व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश के बहुत अवसर हैं ।
चार्ली रोज: क्या अमरीका और पाकिस्तान के बीच संबंध आपके लिए कोई मुद्दा हैं ?
प्रधानमंत्री: नहीं। हम पाकिस्तान को एक समृद्ध देश देखना चाहते हैं। पाकिस्तान को एक मध्यवर्गी मुसलमान देश होना चाहिए । इसे एक संपन्न देश होना चाहिए । यह भारत के हित में भी है और विश्व के हित में भी । मैं पूरे मन से यह आशा करता हूं कि पाकिस्तान पर अमरीका का कुछ भी प्रभाव क्यों न हो फिर भी पाकिस्तान इस बात से सहमत होगा कि हम जिस विश्व का निर्माण करना चाहते हैं उसमें अपने देश की नीति में साधन के रूप में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है ।
यदि पाकिस्तान 2004 में किए गए अपने इस वायदे को निभाता है कि पाकिस्तान के क्षेत्र का प्रयोग भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नहीं करने दिया जाएगा तो इन दोनों देशों के बीच सहयोग की अपार सीमा होगी । मूल रुप से हम एक ही हैं । हमारा धर्म, हमारी भाषा और हमारी संस्कृति एक है।
चार्ली रोज: आप तो पाकिस्तान में ही पैदा हुए थे ।
प्रधानमंत्री : जी हां, राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत में पैदा हुए, मेरा जन्म सीमा के उस पार हुआ था । और मेरा सपना है – भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते हुए संबंधों को देखना , मै चाहता हूं ये संबंध कनाडा और अमरीका के संबंधों जैसे ही हों । हमारी इच्छा है कि पाकिस्तान आधुनिक मुसलमान देश के रुप में फले- फूले। यह भारत के हित में है और कुल मिलाकार पूरे विश्व के हित में भी है ।
चार्ली रोज: आपने अपनी अर्थव्यवस्था की बात की, आपने चीन की अर्थव्यवस्था की बात की । आपकी अर्थव्यवस्था सात प्रतिशत की दर से विकास कर रही है। आप पूर्व वित्त मंत्री भी रहे हैं और इस विकास का श्रेय लोग आपको ही देते हैं। वे ये प्रश्न भी उठाते हैं कि क्या इस विकास की गति निरंतर बनी रहेगी ?
प्रधानमंत्री: पुडिंग का मजा तो खाने में ही आता है ।
चार्ली रोज: आप तो अमरीकी मुहावरे का प्रयोग कर रहे हैं
प्रधानमंत्री: हां, पिछले 15-16 वर्षों से जब से हमने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया है, मै समझता हूं कि हमारी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर निरंतर छ: प्रतिशत बनी हुई है। पिछले तीन-चार वर्षों से, हमारी अर्थव्यवस्था सात प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रही है। और मेरा विश्वास है कि आगामी वर्षों में यह वृद्धि दर और अधिक बढ़ेगी ।
इस समय हमारी बचत दर रिकार्ड स्तर पर है जो हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 29 प्रतिशत है। इसमें पिछले पांच,छ: वर्षों में पांच से छह प्रतिशत की बढोतरी हुई है । हमने अपने सकल घरेलू उत्पाद क 31 प्रतिशत की दर से रिकार्ड निवेश किया है। आने वाले वर्षों में बचत दर में और अधिक बढ़ोतरी होगी। इसका कारण है, बड़ी संख्या में काम करने वाला हमारा युवा वर्ग। यदि आने वाले वर्षो में हम सभी के लिए नौकरियों जुटा सके तो उन्हे बढ़ी हुई आय का स्रोत बनने की जरुरत होगी और वे बनेंगे भी। वे बढ़ी हुई बचत का स्रोत भी बनेंगे। मुझे ऐसा दिखाई दे रहा है कि अगले पांच या छह वर्षों में भारत की वृद्धि दर बढ़कर दस प्रतिशत के आसपास पहुंच जाएगी।
चार्ली रोज: अगले दो- तीन वर्षो में
प्रधानमंत्री: अगले दस वर्षों में न कि दो वर्षों में
चार्ली रोज: उदारीकरण और निजीकरण के क्षेत्र में क्या होने जा रहा है ?
प्रधानमंत्री: मेरे विचार से कुल मिलाकर देखें तो हम उदारीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहे है। इस समय हमारी मुख्य चिंता बुनियादी ढांचे को लेकर है । भारत के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण किया जाना है । हमें उस दर से वृद्धि करनी है जो हमारी वृद्धि की मांग के अनुकूल हो। हमें अपनी सड़क व्यवस्था, डाक प्रणाली, विमानपत्तन प्रणाली का आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता है। हमें अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
उसके बाद ही हम सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करेंगे। मेरे विचार में हमारी सरकार ऐसे कार्य भी कर रही है जो दूसरे लोग भी कर सकते हैं कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें सरकार ने औरो को सोंप दिया है। लेकिन अभी भी यह धारणा है कि सभी कुछ सरकार ही करे । परिणाम यह है कि सरकार स्वयं को, माई बाप समझती है।
चार्ली रोज: ऐसा क्या ?
प्रधानमंत्री: मैं चाहता हूं कि सरकार को नियामक बनने की बजाय सुविधा प्रदाता बनने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए । इसलिए मैं सोचता हूं कि हमें काफी कुछ करना है। हमारे सामने अपनी राजनैतिक व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने की समस्या है । हमारे संघ में ऐसे अनेक राज्य हैं जहां – मैं समझता हूं राजनीतिज्ञ उतनी उर्जा से काम नहीं कर पा रहे है, जितना कि उन्हें करना चाहिए । वे अभी भी पुराने धार्मिक विवादों ; विवादों की दल - दल में फंसे हुए हैं । इसलिए मैं समझता हूं कि भारत की राजनैतिक व्यवस्था को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।
चार्ली रोज: क्या आपके अंदर ऐसी राजनैतिक इच्छा शक्ति है कि आप ऐसा कर सकें ?
प्रधानमंत्री: मेरे विचार में ऐसा हो रहा है। और भविष्य में यह अधिक तेज गति से हो सकेगा । मेरा पूरा विश्वास है कि अब इससे बचने का कोई उपाय नहीं है और ऐसा करना निहायत जरूरी है। हम इसी दिशा की ओर कदम बढ़ा रहे हैं ।
चार्ली रोज: उदाहरण के लिए आप जानते हैं कि मैने फुटकर (रिटेल) व्यापार के बादे में अग्रणी कारोबारियों से बातचीत की और उनमें से कुछ ने कहा कि सरकार का रवैया अनिश्चित है। मेरे कहने का मतलब है कि यदि रिटेल के क्षेत्र में आधुनिकीकरण किया जाता है तो क्या इसे स्पष्ट साक्ष्य माना जाएगा ।
प्रधानमंत्री: देखिए, हमने पहला कदम उठाया है । इस वर्ष से हमने बहुत सी विदेश स्वामित्व वाली कंपनियों के लिए व्यापार को उदार बना दिया है। एकल ब्रांड क्षेत्र को भी उदार बनाया है। ऐसे सभी मामलों पर हम ध्यान दे रहे हैं । फिर भी कुछ अनदेखी आशंकाएं बनी हुई हैं । आप जानते ही हैं कि जिस देश में रोजगार के पर्याप्त अवसर तेजी से नहीं बढ़ते वहां परिवर्तन का डर बहुत अधिक होता है।
हम अपने देश में ऐसा समष्टि अनुकूल आर्थिक वातावरण तैयार करेंगे जहां रोजगार के अवसर आकर्षक दर से बढ़ सकें । ऐसी स्थिति आ जाने के बाद, यदि किसी व्यक्ति का रोजगार एक क्षेत्र में छूट भी जाता है तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि वह हमेशा के लिए बेरोजगार हो जाएगा । ऐसी स्थिति में वे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जा सकेंगे ।
इसलिए मैं उस वक्त का इंतजार करुंगा जब हमारे देश में नियोजन की स्थिति ऐसी होगी जब रोजगार के अवसर लगातार बढ़ेगे उस समय यह वृद्धि इतनी संख्या में होगी कि हम रिटेल के क्षेत्र में जोखिम ले सकेंगे , मैं समझता हूं कि ऐसा बहुत जल्दी नहीं हो सकेगा । फिर भी मेरा मानना है कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए सभी क्षेत्रों को उदार बनाया जाना चाहिए।
चार्ली रोज: चीन और भारत में विदेशी निवेश के मामले में एक नाटकीय अंतर है, और लोगों का कहना है कि वे ऐसे विनियम बना लेंगे जिससे सब कुछ बदल जाएगा।
प्रधानमंत्री: मेरे विचार में तो चीन ऐसा देश नहीं है जो किसी और से विनियमित हो । लेकिन चीन की कार्यप्रणाली और हमारी कार्यप्रणाली में अंतर है। मेरी दृष्टि में चीन बहुत अधिक केंद्रीकृत है। हमारे देश में तीन स्तर की (त्रिस्तरीय) सरकार है। हमारे यहां केंद्र सरकार है, राज्य सरकार है और स्थानीय प्राधिकरण है।
कुछ निवेश संबधी मामलो में केंद्र सरकार अनुमति देती है, फिर भी कुछ ऐसी चीजे हैं जिन्हे सरकार नहीं कर सकती है क्योंकि यदि केंद्र सरकार को भूमि की आवश्यकता है, या उसे पानी की आवश्यकता है या फिर उसे बिजली की आवश्यकता है तो उसे राज्य सरकार के पास ही जाना होगा । इसी तरह यदि केंद्र सरकार को कुछ सुविधाएं या स्थानीय सुविधाएं चाहिए तो उसे स्थानीय प्राधिकारियों के पास जाना होगा । ऐसे व्यवस्था तंत्र में सरकार की कार्य करने की गति धीमी पड़ जाती है । अर्थात् भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था धीमी गति से कार्य करती है।
मैं जानता हूं कि इस प्रकार की समस्या हमारे सामने आती है इसलिए हमें ऐसे रास्ते बनाने होंगे और उपाय खोजने होंगे ताकि जो भी कारोबारी यहां अपना उद्योग स्थापित करना चाहे तो वह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भाग-दौड़ करने में समय गंवाए बिना एक ही खिड़की पर सभी प्रकार का क्लीयरेंस प्राप्त कर सके । मेरे मुताबिक पिछले 15 वर्षों में हमने बहुत अधिक प्रगति की है लेकिन हमें इस प्रगति को बनाए रखने की जरुरत है।
चार्ली रोज: ये स्थिति उलट तो नहीं जाएगी।
प्रधानमंत्री: यह स्थिति नहीं उलटेगी।
चार्ली रोज: उदारीकरण से ।
प्रधानमंत्री: नहीं ।
चार्ली रोज: विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से ।
प्रधानमंत्री: नहीं ।
चार्ली रोज: बदलाव से ।
प्रधानमंत्री: मेरा ख्याल है मैने अभी कहा था – पुडिंग का मजा खाने पर ही आता है। हमने 1991 में जब सुधार कार्यक्रम आरंभ किया था तो मुझे सरम विरोधियों और परम समर्थकों दोनों का ही विरोध सहना पड़ा था । वास्तव में 92 में तब मैं संसद में भारत सरकार का बजट प्रस्तुत करने के लिए उठा, तो सभी विपक्षी दलों ने कहा कि वे विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश करना चाहते हैं क्योंकि जो कुछ मैं कर रहा हूं वह वाशिंगटन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के निर्देशों पर कर रहा हूं, और कुछ नहीं । उस दिन से आज तक,अनेक स्तर पर बदलाव आया है तब से तीन सरकारें बदल चुकी हैं। 1996 से 1998 तक यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी, वामपंथी दल उसका हिस्सा था । हमने जो नीतियां तय की थी उस सरकार ने उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया । 1998 से हमारे यहां भाजपा की नेतृत्व वाली सरकार आई उन्होनें उदारीकरण की कटु आलोचना की और कहा कि हमने देश को विदेशियों के हाथ बेच दिया है ।
लेकिन जब वे लोग सत्ता में आए तब उन्होंने भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया । असल में हमने जो कार्य किए उन्होनें उनका ही विस्तार किया । हम बदलाव के तौर पर तीन सरकारें देख चुके हैं – दक्षिणपंथी, वामपंथी ओर मध्यमार्गी , लेकिन आर्थिक नीतियों की दिशा सभी की प्रगतिशील उदारीकरण की ही रही । इससे इस बात पर कोई फर्क नहीं पड़ता है कि भारत किस मार्ग (तरह) से आगे बढ़ रहा है। लेकिन उस दिशा के संबंध में हमें मुखर और स्पष्ट होना चाहिए, जिस दिशा में भारत को आगे आने वाले दिनों में आगे बढ़ना है। वास्तव में यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारी नीतियां आम आदमी के बदलाव की हैं ।
चार्ली रोज : क्या आप जानते हैं यह स्थिति आपको उस वैश्विक स्थिति तक ले गई है जिसकी आज जन सामान्य चर्चा कर रहा है।
प्रधानमंत्री : 1992 में जब बड़े बड़े कारोबारी घराने भी उदारीकरण के खिलाफ थे, उदाहरण के लिए CII उद्योग के प्रमुख (कैप्टन ) उद्योगपति उदारीकरण के खिलाफ थे। उन्होनें कहा कि भारतीय उद्योग को उदारीकरण के नाम पर ऐसे ही दे दिया गया है इससे वे सब कुछ ले जाएंगे और हम खाली हाथ रह जाएंगे । अमरीका यहां आएगा और राज करेगा । हम सब लोग तो सलाम करते- करते मर जाएंगे।
आज वही भारतीय उद्योग पहले के मुकाबले अधिक आश्वस्त है। वह न केवल प्रतिस्पर्धा का स्वागत कर रहा है बल्कि वह विदेशों में जाकर प्रतिस्पर्धा करने को आतुर है। जैसे कि मैं समझता हूं कि मि.मित्तल विश्व में इस्पात क्षेत्र जगत के बादशाह बन गए हैं ।
चार्ली रोज: वाकई ऐसा ही है । अच्छा आप मिस्टर मित्तल की बात कर रहे हैं । इस संदर्भ में शायद आपने शिरॉक से भी बात की थी और उन्हे उनके प्रति उदार रहने को कहा था ।
प्रधानमंत्री: ठीक है , यह एक ऐसा मामला है जिसमें ज्यादा भावुक होने की जरुरत नहीं है। लेकिन सभी भागीदारों (स्टेकहोल्डर्स ) को इस बात की तसल्ली होनी चाहिए कि उनके हितों, अर्थात सभी के हितों का ध्यान रखा जाएगा।
चार्ली रोज: आपको ऐसा क्यों लगता है कि फ्रांसीसी लोग इस मेल -जोल के खिलाफ थे ?
प्रधानमंत्री : देखिए मुझे ऐसा लगता है कि हमारे देश मं अनजान चीजों के प्रति डर का माहौल है जैसे कि ऐसी स्थिति में रोजगार छिन जाने का डर।
चार्ली रोज : अच्छा है ।
प्रधानमंत्री : यदि सरकारें इस बात की परवाह करती तो मैं उन्हें दोष नहीं देता ।
चार्ली रोज: अच्छा तो , कृपया आप मुझे यह बताएं कि भारत की इस आर्थिक तस्वीर को लेकर आप इतने सजग क्यों थे ? मेरा मतलब है कि हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि –यहां तक कि उद्योग जगत को भी इसकी जानकारी नहीं थी और अनेक राजनीतिज्ञ भी इस बात को उस समय तक नहीं जानते थे जब आपने 1991 में वित्त मंत्री का पदभार संभाला था ?
प्रधानमंत्री : देखो, इस बात का दावा तो नहीं करता कि मेरी सोच अभूतपूर्व थी लेकिन मैं इस सोच के साथ जुड़ा अवश्य था ।
चार्ली रोज : लेकिन आप सही जरूर थे –
प्रधानमंत्री: देखो, मैं भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन से 1971से ही जुड़ा रहा हूं । यहां तक कि जब मैं शिक्षा के क्षेत्र में था, उस समय भी अर्थशास्त्री के रुप में मैं आर्थिक प्रबंधन के कार्य से जुड़ा रहा, मैंने अपने देश के प्रशासन को देखा है। मैं वाणिज्य मंत्रालय में रहा हूं, मैने वित्त मंत्रालय भी देखा है। उसके बाद मैं भारतीय रिजर्व बैंक में भी रहा। मै योजना आयोग में भी रहा, इसका श्रेय मैं राजीव गांधी को देना चाहूंगा जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान, जब वे 1985 में प्रधानमंत्री बने, यह सोचा कि भारत में बदलाव लाना होगा। इसके लिए हमने बहुत –सा कार्य किया । उस समय हमारी जनता के बुद्धिजीवी वर्ग के बीच उदारीकरण को लेकर व्यापक सहमति बनी । पुराने सिद्धांतों पर चल कर हमारी अर्थव्यवस्था को ऐसी गति नहीं मिल सकती जिसका फायदा, हम विकास दर बढ़ा कर लेना चाहते हैं । इसलिए मेरा लक्ष्य 91 के बाद से पहले के मुकाबले आसान हो गया।
चार्ली रोज: लेकिन जब आपने यह कार्यभार संभाला, उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी
प्रधानमंत्री: मैंने देखा, भारतीय अर्थव्यवस्था के अंदर लोकतंत्र है और कभी – कभी (हंसते हुए) संकट ही वरदान साबित हो जाता है। इससे एकाग्रता बढ़ जाती है (हंसते हैं )
चार्ली रोज: फांसी के फंदे जैसा संकट ( like the hang mans nose.)
प्रधानमंत्री : यह अमरीकी कहावत है इसे यहां न जोड़ें ।
चार्ली रोज : यदि कुछ टूटता नहीं तो मैं इसे क्यों जोड़ता ।
प्रधानमंत्री : यदि विषम स्थितियां नहीं होती और सब कुछ ठीक चल रहा होता तो मैं समझता हूं कि हमें बदलाव के पक्ष में उपयुक्त मतैक्य बनाने का बल प्राप्त नहीं होता । मैने 1991 में अपने सहयोगियों और विपक्षी नेताओं से कहा कि यदि आप लोग मुझे सहयोग नहीं देंगे तो मैं भारत को दिवालिया घोषित कर दूंगा और इस अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के हवाले कर दूंगा ।
चार्ली रोज : ऐसा कहने पर ही उन्होनें ध्यान दिया, ऐसा ही था । (हंसते हुए) इसके आधार पर आप मुझे 2050 के बारे में सोचने पर विवश कर रहे हैं । आप मुझे उसके बारे में बताइए ------
प्रधानमंत्री: क्या बीस ?
चार्ली रोज : 2050, दो हजार पचास, अब से 44 वर्ष बाद । आप बताइए कि विश्व की पहली, दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कौन सी होगी ?
प्रधानमंत्री : सच में , मै नहीं जानता । मैं कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता क्योंकि मानव विकास या आर्थिक विकास क्रम के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मेरा विश्वास है कि विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का आपका जो भी क्रम हो भारत पहले चार या पांच देशों में होगा।
चार्ली रोज : अधिकांश लोग तीन के बारे में ही सोचते हैं । गोल्डमैन सैश ने जैसा कि अपनी प्रसिद्ध रिपोर्ट में -------
प्रधानमंत्री : हां मुझे पता है ।
चार्ली रोज : जैसा कि आप जानते हैं, उसमें 2025 तक तीन के बारे में चर्चा की है ।
प्रधानमंत्री : मुझे आशा है कि वे सही होंगे । मेरा मानना है कि इस प्रकार के पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं हूं । लेकिन मैं उस प्रक्रिया को समझता हूं जिससे हमने अपने देश को आर्थिक संकट से उबारा है। मैं समझता हूं कि हमने भारत का स्थान पहले चार या पांच मं सुनिश्चित किया है ।
चार्ली रोज : बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि आपकी सरकार गरीबों के लिए क्या कर रही और आपकी सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग अपना जीवनयापन ठीक तरह से कर सके ।
प्रधानमंत्री: देखो, मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि आर्थिक नीतियों और विकास संबंधी नीति का अंतिम उद्धेश्य अपने लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, और इसी के लिए हमें तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था की जरुरत है । हमारे देश में फैली अत्यधिक गरीबी की समस्या का सार्थक समाधान फलती –फूलती अर्थव्यवस्था के फ्रेमवर्क में रहकर में ही प्राप्त किया जा सकता है, ऐसा मेरा विश्वास है। यदि अर्थव्यवस्था का विकास नहीं होता है तो आय का पुनर्वितरण व्यर्थ हो जाएगा और कुछ हासिल नहीं होगा । इससे सभी वर्गों के बीच संघर्ष होगा और स्थिति और अधिक बिगड़ जाएगी ।
यदि अर्थव्यवस्था तेज गति से तरक्की करती है तो अमीर से गरीब तक आय के पुनर्वितरण की संभावना रहती है जिसे सामाजिक सुरक्षा नेट में रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए हमने ऐसा इस वर्ष किया है । हमने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में हम लोक निर्माण कार्य में 100 दिन की रोजगार की गारंटी उन लोगों को देंगे जो लोग न्यूनतम मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हों । आज के समय में यह कोई क्रांतिकारी कार्यक्रम नहीं है लेकिन इससे ग्रामीण क्षेत्रों में आय का प्रवाह बढ़ेगा। यह ऐसा कार्यक्रम है जो विश्व के कुछ अन्य देशों में भी संभवत: चलाए जा रहे हों।
इसलिए यदि हम इस बात पर जोर देते हैं कि अर्थव्यवस्था पर्याप्त गति से वृद्धि करे तो कर प्रणाली का आधुनिकीकरण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि कर राजस्व में भी पर्याप्त तेजी से वृद्धि हो। हमें शिक्षा में और अधिक धनराशि लगानी होगी । हम स्वास्थ्य में और अधिक धन लगाएंगे। हम गरीबों के लिए विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा नेट वर्क तैयार करने में भी और अधिक धनराशि लगाएंगे ।
चार्ली रोज : भारतीयों के बारे में ऐसी क्या बात है कि इन नीतियों में परिवर्तन हो सका और वे आज इस स्थिति में पहुंच गए हैं ।
प्रधानमंत्री : मेरा हमेशा से ही यह विश्वास रहा है कि ईश्वर की कृपा से भारत जिसमें बहुत उद्यमिता कौशल है। उद्यमिता की इस भावना को कमांड और नियंत्रण प्रणाली ने दबाकर रख दिया, यदि इसे अच्छे इरादे से शुरू किया गया होता तो शुरू से अच्छे परिणाम निकल सकते थे लेकिन समय के साथ–साथ प्रगति इस पर निर्भर होकर रह गई।
मेरा विश्वास है कि यदि हम इन कारकों को हटा दे तो भारत की उद्यमशीलता से हमारी अर्थव्यवस्था के कार्यों और क्रियाकलापों में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। और ऐसा हो रहा है। 91 में सूचना प्रौद्योगिकी कहां थी ? मैं समझता हूं उस समय श्री नारायणमूर्ति जी, श्री प्रेमजी, ये सभी बहुत छोटे –छोटे उद्यमी थे ।
चार्ली रोज : आज ये बहुत बड़ी विश्वस्तरीय कंपनियां हैं ।
प्रधानमंत्री : लेकिन इस मामले में मैं समझता हूं नारायणमूर्ति एक उदाहरण हैं । जब 1991 में मैं वित्त मंत्री था तो मुझे संपदा कर दर, संपदा कराधान के बारे में पता चला, उस समय संपदा पर कराधान था । यह इस प्रकार की गलती थी और इतनी बड़ी गलती थी कि वास्तव में कोई भी व्यक्ति ईमानदार तरीके से धन संचित नहीं कर सके । मैने उस कर को हटा दिया । इसका परिणाम यह हुआ कि पहली बार भारतीय कंपनियों को आगे बढ़ने और संपन्न बनने का मौका मिला । और आपने देखा कि उसका परिणाम बेगलूर में दिखाई दिया । इसी तरह हम अन्य जगहों पर भी इसक परिणाम देख सकते हैं ।