भाषण [वापस जाएं]

December 28, 2013
नई दिल्ली


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के हीरक जयन्ती समारोह में प्रधानमंत्री का भाषण

आज नई दिल्ली में आयोजित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के हीरक जयन्ती समारोह में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये भाषण का विवरण इस प्रकार है:-

"मुझे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के हीरक जयन्ती समारोह में शामिल होकर बहुत प्रसन्नता हुई है। इस संगठन के साथ मेरा बहुत पुराना नाता है। आज मेरे मन में 1991 के वर्ष की पुरानी यादें ताजा हो रही हैं, जब मुझे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रुप में कार्य करने का अवसर मिला था।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना 1953 में हुई थी। तब से यह आयोग बहुत ही सार्थक सफर तय कर चुका है। उच्चतर शिक्षा के लिए इसके योगदान को व्यापक स्तर पर सराहा गया है। मैं उन सभी को बधाई देता हूं, जिन्होंने पिछले 60 वर्षों में इस संगठन को इस स्तर तक लाने में सहायता की है।

इन 60 वर्षों में देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन आया है। विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों में इस परिवर्तन में तेजी आई है और देश में उच्चतर शिक्षा सुविधाओं का अप्रत्याशित रूप से विस्तार हुआ है।

हाल के वर्षों में तेजी से हुए परिवर्तनों ने यूजीसी के सामने भी बहुत बड़ी चुनौतियां पैदा की हैं। उच्चतर शिक्षा की एक प्रमुख नियामक संस्था के रुप में यूजीसी ने अब तक बहुत अच्छा कार्य किया है। लेकिन आगे जो कार्य करने हैं, उनके लिए नई सोच और कार्यों को करने के नवीन तरीकों की आवश्यकता है। मुझे विश्वास है कि हीरक जयन्ती के अवसर पर आयोग इस बारे में विचार करेगा कि इसे भविष्य में किस तरह से कार्य करना है, ताकि यह अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के प्रति पूरा न्याय कर सके। मेरा सुझाव है कि आयोग को अब एक राष्ट्रीय चिंतन स्रोत के रूप में भूमिका निभानी है और उन मुद्दों के बारे में एक पेशेवराना और उद्देश्यपूर्ण संवाद स्थापित करना है, जिनका हमारे देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली के कुशल प्रबंधन से नजदीक का वास्ता है।

पिछले 10 वर्षों में हमारी सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा, सभी पर अप्रत्याशित जोर दिया है। मैं समझता हूं कि इस अवधि के दौरान देश की उन्नति और विकास के लिए तथा नागरिकों के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा के अवसरों के महत्व को पूरी तरह समझा गया है।

इस अवधि में उच्चतर शिक्षा प्रणाली का भी तेजी से विस्तार हुआ है। कई नये संस्थान स्थापित किए गये हैं, जिनमें 23 नये केन्द्रीय विद्यालय, 7 भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), 9 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), 10 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), 5 भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, 4 भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) और आयोजना तथा वास्तुशिल्प के 2 स्कूल शामिल हैं। उच्चतर शिक्षा प्रणाली को और अधिक समावेशी बनाने के लिए भी कई कदम उठाये गये हैं। इनमें अन्य पिछड़े वर्गों के लिए केन्द्रीय शिक्षा संस्थानों में सीटों में आरक्षण, शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े जिलों में नये डिग्री कालेज खोलना, जिन क्षेत्रों में पालिटेक्निक नहीं है या कम हैं, उन क्षेत्रों में पालिटेक्निक स्थापित करना और समाज के वंचित वर्गों के छात्रों की सहायता करना जैसे उपाय शामिल हैं।

उच्चतर शिक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के लिए हमने सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने के प्रयास किये हैं। वर्ष 2009 में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा सम्बंधी राष्ट्रीय मिशन की शुरूआत की गई थी। इस मिशन के अंतर्गत अब तक लगभग 400 विश्वविद्यालयों और 20,000 कालेजों में हाई-स्पीड ब्रॉड-बैंड कनैक्टीविटी उपलब्ध कराई गयी हैं। प्रौद्योगिकी की सहायता से शिक्षा के राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत इंजीनियरी और मानविकी विषयों के लिए वेब और वीडियो पाठयक्रम तैयार किये जा रहे हैं।

इन सब प्रयासों के अच्छे परिणाम सामने आये हैं। उदाहरण के लिए उच्चतर शिक्षा में सकल भर्ती अनुपात 2005-06 के 11 प्रतिशत से बढ़कर 2010-11 में लगभग दुगुने स्तर 19.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसी अवधि में उच्चतर शिक्षा में महिलाओं का प्रतिशत 9.4 से बढ़कर 17.9 प्रतिशत हो गया है।

हमारी सरकार भविष्य में और अधिक ऊर्जा तथा सार्थकता की भावना के साथ उच्चतर शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के वास्ते कार्य के लिए प्रतिबद्ध है। आने वाले वर्षों में हम न केवल शिक्षा के तीनों पहलुओं- विस्तार, उत्कृष्टता और सभी के लिए शिक्षा पर पूरा ध्यान देना जारी रखेंगे, बल्कि इसमें रोजगारपरकता के चौथे पहलु को भी जोड़ना चाहेंगे।

हाल में शुरु किये गये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान में राज्यों के उच्चतर शिक्षा संस्थानों के महत्व को मान्यता दी गई है, जो देश में उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने वाले अधिकतर छात्रों को लाभ पहुंचा रहे हैं। इस अभियान का उद्देश्य 13वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 278 नये विश्वविद्यालयों और 388 नये कालेजों की स्थापना करना और 266 कालेजों को मॉडल डिग्री कालेजों में परिवर्तित करना है। इसके साथ ही राज्यों के 268 विश्वविद्यालयों और 8500 कालेजों को बुनियादी सुविधाओं के लिए अनुदान भी दिया जाएगा।

हाल में राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) को मिली स्वीकृति से अब देश में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ जोड़ने के लिए एक समेकित और एकीकृत योग्यता फ्रेमवर्क बन गया है। यह कौशल विकास को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के हमारे प्रयासों का एक हिस्सा है, ताकि देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के लिए प्रशिक्षित कामगार उपलब्ध हों और बड़ी संख्या में उपयोगी रोजगार के अवसर पैदा हों। जिन लोगों ने अनौपचारिक तरीकों से प्रशिक्षण प्राप्त किया है, वे अब अपने कौशलों को प्रमाणित करवा सकेंगे और नौकरियों में रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकेंगे।

हमारे देश के प्रमुख उच्चतर शिक्षा संस्थानों से निकले छात्रों की उपलब्धियों पर हम उचित रुप से गर्व कर सकते हैं। उन्होंने दुनिया भर में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छा कार्य किया है। फिर भी हमारे प्रमुख संस्थानों की गिनती विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में नहीं है और उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में कुल मिलाकर गुणवत्ता हमारे लिए एक बड़ी चिन्ता का विषय है।

इससे हम इस मुद्दे पर पहुंचते हैं कि उच्चतर शिक्षा के हमारे संस्थानों में अच्छे अध्यापकों की कमी है। आगे आने वाले वर्षों में शिक्षा के विस्तार की हमारी जो योजना है, उसे देखते हुए इस समस्या के और भी गंभीर हो जाने की संभावना है। मैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से और उच्चतर शिक्षा प्रणाली से सम्बद्ध अन्य पक्षधरों से आग्रह करता हूं कि वे गुणवत्ता और अध्यापकों की कमी पर गंभीरता से विचार करें और इसके हल के लिए नये तरीके ढ़ूंढें।

हमारी विश्वविद्यालय प्रणाली में अनुसंधान पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है, विशेष रुप से पीएचडी कार्यक्रमों की गुणवत्ता और संख्या को बढ़ाने की आवश्यकता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि आज के समय में अनुसंधान के लिए अंतर-विषयक परिप्रेक्ष्य जरुरी हैं। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे विश्वविद्यालयों में अंतर-विषयक शोध की संस्कृति पनपे। हमें आज की स्थिति को बदलना होगा, जिसमें अलग-अलग विभाग ज्यादातर द्वीपों की तरह कार्य करते हैं। हमें उन समस्याओं पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, जिनमें संकाय अंतर-विषयक शोध कर सकें। जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विशेष रुप से ध्यान देने के लिए हमें एक बड़ा शोध कार्य भी शुरु करना चाहिए।

अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय और उद्योगों के बीच भी समन्वय को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। यह विश्वविद्यालय प्रणाली और भारतीय उद्योगों, दोनों के लिए बहुत लाभदायक होगा। आज हमारे विश्वविद्यालय अनुसंधान के लिए ज्यादातर अनुदानों पर निर्भर करते हैं। उद्योग जगत का सहयोग मिलने पर न केवल अनुसंधान के बेहतर नतीजे सामने आयेंगे, बल्कि उद्योग इन निष्कर्षो का व्यावहारिक रुप से सार्थक उपयोग भी कर सकेंगे। हमारे विश्वविद्यालयों के संकायों के लिए अन्य देशों के विश्वविद्यालय-उद्योग समन्वय का अध्ययन करना भी उपयोगी होगा, ताकि हम श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं को अपने देश में लागू कर सकें।

हमारे विश्वविद्यालय शिक्षण और अनुसंधान में नवोन्मेष उत्कृष्टता को बढ़ावा दे सकें, इसके लिए जरुरी है कि वे शैक्षिक स्वतंत्रता के वातावरण में काम करें। शैक्षिक स्वायत्तता की आवश्यकता का जवाबदेही की सुनिश्चितता के साथ संतुलन रखना होगा। मैं इस अवसर पर यह दोहराना चाहूंगा कि हमारी सरकार देश के उच्चतर शिक्षा संस्थानों में शैक्षिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए उचित नीतियों तथा संस्थागत ढांचों का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध है।

हालांकि पिछले वर्षों में उच्चतर शिक्षा के लिए मांग काफी बढ़ी है, लेकिन वास्तव में उच्चतर शिक्षा के संस्थानों को केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से वित्तीय सहायता में कमी आई है। इसलिए सुस्थापित मानदण्डों के आधार पर उच्चतर शिक्षा के वित्त-पोषण के नये स्वरुप और केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता की मौजूदा व्यवस्था में सुधार के विषय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। विशेष रुप से राज्यों के विश्वविद्यालयों पर अधिक ध्यान देने तथा शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार के लिए उन्हें सहायता देने जरुरत है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान इस बात पर ध्यान दे रहा है।

उच्चतर शिक्षा के हमारे संस्थानों से संबंधित बुनियादी आंकड़ों की सच्चाई और प्रामाणिकता सही नीति नियोजन और आवश्यकता पड़ने पर सहयोग प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके लिए यह जरुरी है कि विश्वविद्यालय सूचना प्रबंधन प्रणाली को प्राथमिकता के आधार पर मजबूत बनाया जाए।

मुझे इस बात की खुशी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विज्ञान, मानविकी और सामाजिक विज्ञानों, प्रौद्योगिकी, ललित कलाओं और संस्कृति के क्षेत्रों में व्यक्तिगत उत्कृष्टता को सम्मान देने के लिए पं. जवाहर लाल नेहरु के नाम पर पुरस्कार स्थापित करना चाहता है। मुझे आशा है कि इन पुरस्कारों से उच्च-गुणवत्ता के अनुसंधान को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।

मैं अपने इन कुछ विचारों को आपके सामने रखना चाहता था। अंत में, मैं विश्वविद्यालय और अनुदान आयोग और उच्चतर शिक्षा प्रणाली को भविष्य में सराहनीय उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए शुभकामनाएं देता हूं। पहले 63 वर्षों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने बहुत विशिष्टता के साथ देश की सेवा की है। लेकिन मैं महसूस करता हूं कि सर्वश्रेष्ठ अभी होना है और मैं भविष्य के लिए उसे अपनी शुभकामनाएं देता हूं।"