भाषण [वापस जाएं]

December 6, 2013
नई दिल्ली


हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स समिट, 2013 में प्रधानमंत्री का संबोधन

नई दिल्‍ली में आज हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स समिट, 2013 में प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह के संबोधन का मूल पाठ निम्‍नलिखित है:-

''मुझे आप लोगों के बीच आने की खुशी है, लेकिन हमारी मुलाकात दुखद परिस्थितियों  में, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्‍ट्रपति नेल्‍सन मंडेला के निधन के समय हो रही है। उन्‍होंने विश्‍व की अंतरात्‍मा का प्रतिनिधित्‍व किया। वे दमन और अन्‍याय के विरुद्ध अपनी जनता को विजय दिलाने के लंबे अर्से बाद भी ऐसी ही बुराइयों के प्रति संघर्षरत लोगों के लिए आशा की किरण बने रहे। बटे हुए विश्‍व में वे सुलह और सद्भाव के साथ काम करने का एक उदहारण थे और आने वाले लंबे अर्से तक हमें उनके जैसी कोई अन्‍य शख्सियत देखने को नहीं मिलेगी। भारत उन्‍हें भावनाओं और आदर्शों से एक सच्‍चा गांधीवादी मानता है और पूरे विश्‍व के साथ मिलकर उनके कार्यों और शिक्षाओं के प्रति आभार व्‍यक्‍त करता है। हम उनकी आत्‍मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

आज के प्रयोजन की ओर लौटते हुए, मैं दशक भर से हर साल इस प्रकार के सालाना आयोजन करने के प्रयासरत रहने और प्रतिबद्धता दर्शाने के लिए शोभना जी की सराहना करता हूं। आपके पिछले दस समिट्स में से प्रत्‍येक के विषय पर गौर करने पर मैंने पाया कि आपने लगातार भारत के भविष्‍य – अवसरों और चुनौतियों दोनों पर ध्‍यान केन्द्रित किया है। व्‍यावसायिक तौर पर भी मीडिया का यह दायित्‍व बनता है कि वह वर्तमान पर ध्‍यान केन्द्रित करे, लेकिन मुझे खुशी है कि इस तरह के समिट के आयोजन जैसे प्रयासों के माध्‍यम से वे अकसर भविष्‍य के बारे में भी चिंतन करते हैं।

इसी भावना को बरकरार रखते हुए इस अवसर का उपयोग करते हुए मैं भी थोड़ा रुक कर बड़े परिदृश्‍य पर अपने नजरिये से विचार करना चाहता हूं।

मेरा नाता ऐसी पीढ़ी से है, जिसने हमारे स्‍वाधीनता संग्राम और राष्‍ट्र निर्माण के हमारे प्रयासों से आकार लिया। स्‍वाधीनता ने हमें आशा प्रदान की और स्‍वाधीनता ने हमें साहस प्रदान किया। लोकतंत्र ने हमें अधिकार और उत्‍तरदायित्‍व प्रदान किये तथा राष्‍ट्र निर्माण ने हमारे संविधान को परिभाषित किया। हमारी पीढ़ी ने तकरीबन आधी सदी धीमी वृद्धि, धीमे औद्योगिक विकास, बार-बार पड़ते अकाल और बहुत कम सामाजिक गतिशीलता देखी। वह भारत आज भी हमारे बहुत से भाइयों और बहनों के लिए विद्यमान है, लेकिन बहुत कम लोगों के लिए।

बिल्‍कुल अलग माहौल में जीवन बिताने के बाद, मेरी पीढ़ी लगातार उसकी तुलना हमारे वर्तमान से करती है और वास्‍तविकता यह है कि एक पीढ़ी के रूप में हमने अपने जीवन में ऐसे बदलाव का दौर देखा है, जिसकी कल्‍पना भी हमारी युवावस्‍था के दौरान संभव नहीं थी। मेरे जैसे लाखों भारतवासी हैं, जिन्‍होंने अपना बचपन बहुत कम उम्‍मीद के वातावरण के बीच बिताया है और उसके बाद बिल्‍कुल अलग किस्‍म का जीवन जिया है। यह सिर्फ समय के बदलाव मात्र से नहीं हुआ, बल्कि भारत की जनता के प्रयास, साहस और महत्‍वाकांक्षाओं के मिश्रण तथा केन्‍द्र और राज्‍यों की विभिन्‍न सरकारों की ओर से प्रदत्‍त नेतृत्‍व और मार्गदर्शन से हुआ।

शून्‍य वृद्धि दर वाली 1900 और 1950 के बीच की आधी सदी के बाद हमने 3.5 प्रतिशत की दर से सालाना वृद्धि होते देखी। जब हमें महसूस हुआ कि दूसरे विकासशील देश हमें पछाड़ रहे हैं और उन्‍होंने विकास के नये रास्‍ते तलाश लिए हैं, तो हमने भी 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में अपना रास्‍ता बदल लिया। पिछले दो दशकों से औसत सालाना वृद्धि दर दोगुने से ज्‍यादा बढ़कर 7.0 प्रतिशत हो गई और भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था वृद्धि के मार्ग पर बढ़ती गई।

स्‍वाभाविक रूप से इसमें उतार-चढ़ाव के दौर आएंगे। अर्थव्‍यवस्‍था का चक्र हमारे समक्ष  अच्‍छे प्रदर्शन के वर्ष और साधारण प्रदर्शन के वर्ष प्रस्‍तुत करता है, लेकिन सबसे ज्‍यादा उल्‍लेखनीय बात यह है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है तथा ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है। आज बहुत से लोग 5 प्रतिशत सालाना वृद्धि दर से संतुष्‍ट नहीं है, जबकि हमारी आजादी के दो दशकों से ज्‍यादा अर्से बाद तक हमारी पंचवर्षीय योजनाओं की वृद्धि दर का लक्ष्‍य पांच प्रतिशत था।

वैश्विक चुनौतियों की दिशा में तमाम उतार-चढ़ावों और अतीत में की गई नीतिगत भूलों के बोझ के बावजूद हमारी अर्थव्‍यवस्‍था वृद्धि के रास्‍ते पर है। यह पहला सबक है, जो मैंने थोड़ा रुक कर और उभरते बड़े परिदृश्‍य पर गौर करते समय सीखा है।

हालांकि आर्थिक वृद्धि, सामाजिक बदलाव और राजनीतिक स‍शक्तिकरण ने भारतीयों की बिल्‍कुल नई पीढ़ी में नई महत्‍वाकांक्षाओं को जन्‍म दिया है। इसने वृद्धि की तेज रफ्तार और बेहतर जीवन के प्रति बेचैनी बढ़ाने में योगदान दिया है। ये आकांक्षाएं और महत्‍वाकांक्षाएं सरकारों पर ज्‍यादा देने, बेहतर प्रदर्शन करने, ज्‍यादा पारदर्शी बनने और ज्‍यादा प्रभावशाली बनने का दबाव बना रही हैं।

''बढ़ती महत्‍वाकांक्षाओं की क्रांति'' जारी है और मैं उसका स्‍वागत करता हूं।

वास्‍तविकता तो यह है कि थोड़ा रुकने और बड़े परिदृश्‍य पर गौर करने पर सही मायने में सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण हमारी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली मालूम पड़ती है, जो इन अपेक्षाओं पर खरी उतरती आई है। पहले से कहीं ज्‍यादा तेजी से बदल रहे भारत के संदर्भ में,  हमारे गणराज्‍य के प्रत्‍येक राज्‍य में सरकारों का निर्वाचन और पुनर्निर्वाचन शांतिपूर्ण, निष्‍पक्ष और कारगर रूप से होने वाले चुनावों के माध्‍यम से होता आया है।

कभी-कभार जनाक्रोश सड़कों पर और मीडिया के माध्‍यम से दिखाई दे सकता है, लेकिन भारत का ''शांत बहुसंख्‍यक वर्ग'' सुरक्षा और बदलाव के लिए अपने मताधिकार का इस्‍तेमाल वैध लोकतांत्रिक तरीकों से करता है।

पिछले दो वर्षों से कुछ बेहद महत्‍वपूर्ण और चिंतित नागरिकों ने पूरे राजनैतिक वर्ग पर भ्रष्‍ट और जनविरोधी होने का आरोप लगाते हुए निराशावाद फैलाने की कोशिश की है। बहुत से लोगों ने यह सुझाव देना शुरू कर दिया है कि भारत में लोकतंत्र ने सही योगदान नहीं दिया। उन्‍होंने संसद के फैसलों का सम्‍मान करने से इनकार करते हुए संसद पर हमला बोला। क्‍या इससे हमारी जनता लोकतंत्र के खिलाफ हो गई? क्‍या इससे वह निर्वाचन प्रणाली के प्रति हताश हो गई? नहीं। पिछले दो वर्षों में हुए प्रत्‍येक चुनाव तथा हाल ही में सम्‍पन्‍न विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्‍या पर नजर डालिए।

महत्‍वकांक्षाओं और बढ़ती अपेक्षाओं का मंथन करते हुए भी हमारे देश की जनता ने मतदान करने और लोकतांत्रिक माध्‍यमों के जरिए बदलाव लाने का रास्‍ता चुना। यह दूसरा सबक है, जो मैंने थोड़ा रुक कर और उभरते बड़े परिदृश्‍य पर गौर करते समय सीखा है।

हमारी जनता की बढ़ती महत्‍वकांक्षाओं को पूरा करने तथा उच्‍च वृद्धि के साथ राजनीतिक निरंतरता सुनिश्चित करने की नई चुनौती से जूझते हुए हमने वृद्धि की नई रणनीति परिभाषित की जिसे मोटे तौर पर ''समावेशी वृद्धि'' कहा जाता है। हमारी वृद्धि की प्रक्रियाओं को सामाजिक और क्षेत्रीय रूप से समावेशी बनाना हमारी सरकार की नीतियों का पैमाना रहा है। हमारी समावेशी वृद्धि की रणनीति के 6 घटक हैं:-

पहला, वह है जिसे मैं अकसर ''ग्रामीण भारत के लिए नयी व्‍यवस्‍था'' कहता हूं-ग्रामीण विकास, ग्रामीण बुनियादे ढांचे-विशेषकर सड़क और बिजली, ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा में निवेश तथा ग्रामीण उत्‍पादों के लाभकारी दाम। हम इसे ''भारत निर्माण'' कहते हैं।

दूसरा, शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में लड़कियों और युवतियों के स्‍वास्‍थ्‍य पर विशेष ध्‍यान देते हुए बढ़ा हुआ सार्वजनिक और निजी निवेश।

तीसरा, आजीविका, ग़रीबों के लिए खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा।

चौथा, ज्‍यादा पारदर्शी और संवेदनशील सरकार को सूचना के अधिकार के माध्‍यम से जनता के प्रति जवाबदेह बनाया गया।

पांचवा, निजी उद्यमों विशेषकर लघु और सूक्ष्‍म उद्यमों के लिए कौशल और सहायता में निवेश।

छठा, सार्वजनिक परिवहन विशेषकर शहरी परिवहन के लिए सार्वजनिक निवेश।

इन सभी ने मिलकर वृद्धि की हमारी प्रक्रियाओं को सामाजिक रूप से ज्‍यादा समावेशी बना दिया।

मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि बहुत से चुनौतियां और समस्‍याएं अभी बची हुई हैं और नीतियों के कार्यान्‍वयन में कमजोरियां हैं। हमारी सबसे बड़ी चुनौती समावेशी विकास की इस प्रक्रिया को बनाए रखते हुए मुद्रास्‍फीति की दर को नीचे लाना तथा वित्‍तीय घाटे को नियंत्रण में रखना है। ये चुनौती बची हुई है और मैं स्‍वीकार करता हूं कि उनसे निपटने के गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं।

विकास में आई अचानक गति, जैसाकि हमने 2004-8 तक की अवधि के दौरान हमने देखा है, में असंतुलन पैदा करती है और मुद्रा स्‍फीति में योगदान देती है। ऐसा विकास व्‍यक्तिगत समृद्धि के लिए अवसर पैदा कर सकता है जो सुशासन को विकृत करता है और सामाजिक असंतोष को बढ़ावा देता है। बढ़ते हुए आर्थिक विकास ने भीषण गरीबी से ग्रस्‍त लाखों भारतीयों को मुक्ति दिलाने, गरीबी की स्थिति को घटाने में मदद की है, लेकिन इससे सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी बढ़ी है। समग्र विकास की हमारी रणनीति में ऐसी असमानताओं की धार कुंद करने मांग की गई है।

भारत की बड़ी तस्‍वीर की ओर दृष्टिपात करते हुए यह मेरा तीसरा सबक है।

अब मुझे राष्‍ट्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों के संबंध में उस बड़ी तस्‍वीर की जांच करनी है। मीडिया बड़ी सूझबूझ से सभी घटनाओं की रिपोर्ट करता है। सुरक्षा बलों, खुफिया विभाग और कानून व्‍यवस्‍था मशीनरी की तरफ से हुई किसी चूक की आलोचना समझने योग्‍य है। हम आतंक के पूर्वनियोजित कृत्‍यों का शिकार हुए है और हर बार आतंकवादियों ने हमारे ऊपर हमले किए है। जिससे व्‍यापक गुस्‍सा और निराशा है।

बड़ी तस्‍वीर पर विचार करते हुए मैं आपसे अपने मन में दो बातों पर ध्‍यान रखने का अनुरोध करता हूं। पहली, किसी आतंकवादी को निर्दोष लोगों को कष्‍ट पहुंचाने में केवल एक बार सफल होना होता है जबकि सुरक्षा बलों को ऐसे आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए हर दिन हर मिनट सफल होना है। इस मापदंड के द्वारा हमें अनेक हमलों को रोकने के लिए सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के समर्पण और प्रतिबद्धता की सराहना करनी चाहिए।

यह भी महत्‍वपूर्ण है कि मैंने भारत में आतंकवाद की चुनौती को इस महान देश के लोगों के दरमियान विभाजन रेखा खींचने और एक भारतीय को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने से रोकने के लिए आतंकवाद की विचारधारा की रोकथाम के रूप में देखा है। आतंकवादी हमले का उद्देश्‍य केवल निर्दोष लोगों को मारना ही नहीं है। यह केवल डर पैदा करने के लिए ही नहीं बल्कि वास्‍तव में घृणा पैदा करने के लिए है। ऐसी हत्‍याओं का विभिन्‍न धर्मों के लोगों के मध्‍य आपसी अविश्‍वास पैदा करने के लिए किया जाता है। देश में सांप्रदायिक तनाव, सांप्रदायिक संघर्ष और सांप्रदायिक विघटन पैदा करना आतंकवाद का मुख्‍य उद्देश्‍य है।

हमारे देश के लोगों ने हर बार आतंकवादी हमलों का जवाब भारतीयों के रूप में दिया है न कि हिन्दू या मुसलमान या सिख या ईसाई के रूप में। हमने आतंकवादी ताकतों को शिकस्‍त दी है। हमने आतंकवाद को पोषित करने वाली विचारधारा को चुनौती दी है।

अगर हम भारत पर हुए आतंकवादी हमलों की संख्‍या को केवल संख्‍यात्‍मक रूप से देखते है तो हम निराशा का अनुभव करते है। अगर हम इस तथ्‍य पर विचार करते है कि पिछले दशक में आतंकवाद के ऐसे कृत्‍य सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करने में असफल रहे तो हम कहीं अधिक उम्‍मीद अनुभव करते हैं। आतंकवाद को देश के लोगों के मन में परास्‍त किया गया है क्‍योंकि लोग इन हमलों का उस तरह से जवाब नहीं दे रहे हैं जैसाकि आतंकवादी विचारधारा उन से उम्‍मीद करती है।

समकालीन भारत की बड़ी तस्‍वीर से लिया गया यह चौथा पाठ है।

देवियों और सज्‍जनों अंतत: भारत और विश्‍व की ओर देखो। मैंने एक संकट के बीच राजनीति की दुनिया में प्रवेश किया। 1991 में भारत बाहरी मोर्चे पर दो चुनौतियां का सामना कर रहा था। आप में से अधिकांश को केवल 1990-91 में विदेशी भुगतान संकट ही याद होगा, लेकिन यह भुगतान संकट इससे बड़ी चुनौती- वैश्विक द्विध्रुवी आदेश के टूटने की पृष्ठभूमि में हुआ। 1991 में वित्‍त मंत्री के रूप में मैं न केवल राजकोषीय घाटा कम करने और आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के बारे में चिंतित था, बल्कि रुपये को स्थिर रखने और पर्याप्‍त विदेशी मुद्रा की पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में भी था। बाद वाली चुनौती पूर्व सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में गतिविधियों से हुए वैश्विक शक्ति संतुलन बदलाव के कारण विशेष रूप से गंभीर हो गई थी।

प्रधानमंत्री नरसिंम्‍हा राव के नेतृत्‍व में हमने अपनी आर्थिक नीतियों और विदेश नीति के संबंध में महत्‍वपूर्ण निर्णय लिए। श्री नरसिंम्‍हा राव द्वारा भारत को एशिया के नए विकास माध्‍यमों से जोड़ने के लिए की गई शुरूआत भारत की ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ के रूप में जानी जाती है। हमने वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के साथ पुन: एकीकृत करने में मदद करने वाले व्‍यापार और निवेश नियमों को उदार बनाया। ऐसा करने में हम अनेक पूर्व और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से प्रेरित थे।

उसके बाद से हमने बाहरी मोर्चे पर अनेक चुनौतियों का सामना किया है। चाहे वो खाद्य और ऊर्जा मूल्‍यों में तेजी से बढ़ोतरी या 1997-98 में एशियाई वित्‍तीय संकट और 2008-9 में ट्रांस-एटलांटिक वित्‍तीय संकट या चीन का वैश्विक मेगा-व्‍यापारी के रूप में उदय और वैश्विक और क्षेत्रीय व्‍यापार व्‍यवस्‍था के शक्ति संतुलन में परिवर्तन में भी हम भारत की मुख्‍य आर्थिक और विदेशी नीति हितों की रक्षा करने में सफल रहे है।

इन चुनौतियों का सामना करने में भारतीय पेशेवरों और उद्यमों का मुख्‍य उल्‍लेख किया जाना चाहिए जिन्‍होंने दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ी है। ब्रांड इंडिया धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से पूरी दुनिया में पहचान बनाने के लिए सामने आ रहा है। लाखों भारतीय पेशेवरों, कुशल कामगारों और उद्यमियों की आज दुनिया में स्‍वागत किया जा रहा है।

वैश्‍वीकरण की चुनौतियों का सामना करने और विभिन्‍न देशों के साथ नए संबंध बनाने की योग्‍यता से भारत की एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने में मदद मिली है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से भारतीय व्‍यापार जगत के नेता चिंतित है। हमारी लाल फीताशाही, हमारे कर नियमों और प्रशासन, हमारे विनियमों और प्रक्रियाओं के बारे में उनकी चिंताओं को समझा जा सकता है। मैंने इन चुनौतियों का सामना करने में कठिनाई अनुभव की हैं क्‍योंकि किए जाने वाले सुधारों पर राजनीतिक आम सहमति का अभाव रहता है। मैं यह कहना चाहता हूं कि इन सभी समस्‍याओं के बावजूद भारतीय व्‍यापार और उद्यम ने प्रतिस्‍पर्धा से निपटने के लिए अपनी योग्‍यता का प्रदर्शन किया है।

भारतीय पेशेवरों और उद्यमियों का विश्‍व में बढ़ता प्रभाव हमारी विदेशी नीति की प्राथमिकताओं में परिवर्तन कर रहा है। 1991 में मैंने कहा था कि आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय एक विचार था जिसका अब समय आ गया है। पिछले दो दशकों के दौरान इस विचार ने विश्‍व, सभी प्रमुख शक्तियों हमारे एशियाई पड़ोसी देशों और पूरे भारतीय उप-महाद्वीप के साथ हमारे संबंधों को आकार दिया है।

बड़ी तस्‍वीर से लिया गया यह पांचवां पाठ है।

जैसा मैंने पिछले महीने विश्‍व के प्रमुखों के वार्षिक सम्‍मेलन में कहा था कि हमारी विदेश नीति, हमारी विकास की प्राथमिकताओं से परिभाषित है। भारतीय विदेश नीति का सबसे प्रमुख उद्देश्य भारत के लोगों की भलाई के अनुकूल वैश्विक वातावरण बनाने का है। मुझे विश्‍वास है कि पिछले दो दशकों का अनुभव हमें यह बताता है कि विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था के साथ बेहतर एकीकरण से भारत लाभान्वित हो रहा है और यह देश के लोगों को उनकी रचनात्‍मक क्षमता का अनुभव करा रहा है। हम जब प्रमुख शक्तियों से अपने संबंधों को मजबूत करते है तो हम ऐसा उभरते हुए एशियाई आर्थिक समुदाय के एक सक्रिय सदस्‍य बनने के लिए कर रहे है। भारत की आवाज सभी प्रमुख अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर आदर के साथ सुनी जाती है। जब आप यहां-वहां की समस्‍याओं पर ध्‍यान देते है जो  मीडिया का उसी प्रकार कर्तव्‍य है जैसा हमारा सरकार में हैं। मैं आपसे बड़ी तस्‍वीर को दृष्टि से ओझल न करने का अनुरोध करता हूं। भारत प्रगति पर है, भारतीय भी प्रगति पर है भारत जैसे विकास करता है तो चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। हमारी चुनौतियां घर में भी है और उतार-चढ़ाव जीवन का हिस्‍सा है। यह हम सब जानते हैं। लेकिन हमने अपने जीवन में आने वाले बदलाव और मोड़ों से अभिभूत होने की इजाजत नहीं दी है। हमने इन चुनौतियों को अपने आप में, अपने लोकतंत्र में और हमारे लोकतंत्र और भारत की नियति को परिभाषित करने वाले सिद्धांतों में अपने विश्‍वास को कमजोर करने की कभी भी अनुमति नहीं दी है।

भारतीय लोगों की यह अटल भावना है‍ जिसे हमें हर क्षण ध्‍यान में रखना चाहिए। सरकारें आती है और सरकारें जाती है।

हम रास्‍ते के पंछी है और विभिन्‍न मंचों के अभिनेता है। लेकिन हमारा यह महान देश मानवता की विदित सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है और विश्‍व के सबसे महान और बुद्धिमान दार्शनिकों की जन्‍मभूमि है। हमारी इस प्राचीन भूमि ने समय-समय पर मानवता की भावना को फलते-फूलते देखा है। भारत हमेशा प्रगति करता रहेगा और ऐसा करके यह सबके विकास में सहायता प्रदान करेगा। यह वह बड़ी तस्‍वीर है जैसा मैंने इसे देखा है। हम मनुष्‍य कुछ थोड़े समय के लिए इस दुनिया में आए हैं ताकि हम भारत, विश्‍व और मानवता के लिए अपना सर्वश्रेष्‍ठ योगदान दें।"