भाषण [वापस जाएं]

November 21, 2013
नई दि‍ल्‍ली


तीसरे ब्रिक्‍स अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषण

प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह के तीसरे ब्रिक्‍स अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा सम्‍मेलन नई दि‍ल्‍ली में, उद्घाटन भाषण का मूल पाठ इस प्रकार है:–

"मुझे तीसरे ब्रिक्‍स प्रतिस्‍पर्धा सम्‍मेलन में आकर बहुत खुशी हो रही है। मैं विश्‍व के विभिन्‍न भागों से आए अपने मेहमानों का गर्म जोशी से अभिवादन करता हूं। ब्रिक्‍स की भागीदारी भौगोलिक दृष्टि से बिखरे हुए देशों की वृद्धि दर अच्‍छे शैक्षिक कार्यबल, बड़े घरेलू बाजार और प्राकृतिक संसाधनों की क्षमता के आधार पर शुरू हुई। आज ब्रिक्‍स देशों की सम्मिलित जनसंख्‍या तीन अरब और जीडीपी 14 खरब डॉलर तथा विदेशी मुद्रा भंडार 4 खरब डॉलर है। चीन विनिर्मित सामानों के निर्यात में विश्‍व का निर्विवाद नेता बनने की राह पर है, भारत सेवाओं का सबसे महत्‍वपूर्ण निर्यातक बनने जा रहा है। रूस और ब्राजील का कच्‍चे माल के निर्यात में दबदबा है। दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीकी महाद्वीप की वृद्धि क्षमता का भरपूर लाभ उठाने की स्थिति में है।

ब्रिक्‍स देशों में आर्थिक और राजनीतिक समन्‍वय की संभावना है तो हमारे सामने चुनौतियां भी हैं। वैश्विक अनिश्चितता के दौर में पूंजी प्रवाह की निगरानी और प्रबंधन चुनौती भरा कार्य है। बड़े भाग के जनसंख्‍या के बड़े भाग के जीवन स्‍तर को सुधारने के लिए भारी सार्वजनिक व्‍यय के बावजूद सतत वित्‍तीय नीति को बनाए रखना एक ऐसा कार्य है जिससे हम लगातार जूझते रहते हैं। उद्योगों की वृद्धि को बनाए रखने के लिए आधारभूत सुविधाओं का विकास और लोगों की बढ़ती हुई आवश्‍यकताएं हमारे सामने एक और चुनौती है। सतत और समान वृद्धि के लिए विश्‍वसनीय संस्‍थाओं के गठन की आवश्‍यकता है।

ब्रिक्‍स देशों ने अपने सूक्ष्‍म आर्थिक परिस्थितियों और विभिन्‍न संस्‍थागत ताकतों के अनुकूल विकास की अलग-अलग राहें चुनी हैं। इसके बावजूद मुझे इसमें जरा भी संदेह नहीं कि आर्थिक शक्ति के रूप में उनके उदय से विश्‍व के ऊपर जबरदस्‍त प्रभाव पड़ेगा। अपने मजबूत और सतत आर्थिक वृद्धि के लक्ष्‍य के साथ हमने वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था की दीर्घकालीन वृद्धि हेतु मदद का वादा किया है। यह 2011 के सान्‍या घोषणा पत्र में उल्लिखित आर्थिक, वित्‍तीय और व्‍यापार सहयोग से संभव होगा। इसे ध्‍यान में रखते हुए ब्रिक्‍स का एक संस्‍था के रूप में निरंतर विकास हुआ है, जिससे विभिन्‍न क्षेत्रों में विभिन्‍न स्‍तरों पर सहयोग का ढांचा बना है। पाइपलाइन से जुड़े दो सबसे महत्‍वपूर्ण समझौतों से ब्रिक्‍स विकास बैंक और आपात सुरक्षित व्‍यवस्‍था की स्‍थापना होगी।

पांच देशों की सरकारें वृद्धि, विकास, और गरीबी उपशमन की महत्‍वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकारें ऐसी ठोस नीति बनाना चाहती है जिससे बाजारों का अधिकतम लाभ उठाकर बाजार की असफलता को रोका जा सके। इसके लिए ठोस प्रतिस्‍पर्धा नीति आवश्‍यक तत्‍व है। प्रतिस्‍पर्धा विरोधी व्‍यवहार से बाजार अच्‍छा परिणाम नहीं देते और गरीब पर इसका सबसे ज्‍यादा असर पड़ता है। लेकिन बाजार में निष्‍पक्ष और प्रभावी प्रतिस्‍पर्धा की बात कहना तो आसान है लेकिन करना मुश्किल है। इसे सार्वजनिक नीति द्वारा तैयार और लागू किया जा सकता है। अन्‍यथा व्‍यापार में निजी अड़चनें सरकारी अड़चनों के साथ मिल जाएंगी और सामाजिक कल्‍याण के क्षेत्र में सुधार को लेकर रुकावट आएंगी।

भारत ने 1991 में आर्थिक सुधार शुरू किए, उदारीकरण, निजीकरण और वैश्‍वीकरण जिसके आवश्‍यक तत्‍व थे। एकाधिकार और प्रतिबंधित व्‍यापार व्‍यवहार अधिनियम 1969 ऐसे समय बनाया गया था जब भारत में ‘निर्देश और नियंत्रण’ की आर्थिक नीति थी, जो बाजार के विनियमन और प्रतिस्‍पर्धा संवर्धन सुनिश्चित करने के लिए काफी नहीं था। नए आर्थिक दर्शन के अनुरूप एक आधुनिक प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम की आवश्‍यकता थी।

हमारी संसद ने प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम 2002 में पारित किया। एक एमआरटीपी अधिनियम की तरह नया प्रतिस्‍पर्धा कानून फर्मों के आकार स्‍वामित्‍व के मजबूत होने पर प्रतिबंध नहीं लगाता।

उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं को प्रतिस्‍पर्धा कानून लागू करने के विशिष्‍ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा पिछड़ेपन की समस्‍या, संस्‍थागत डिजाइन की समस्‍या और सरकारी विनियन हमारी सभी अर्थव्‍यवस्‍थाओं का चरित्र है। प्रतिस्‍पर्धारोधी व्‍यवस्‍था के सफल कार्यान्वयन में ये वास्‍तविक चुनौतियां हैं, जिन्‍हें हमें पहचानना पड़ेगा।

प्रतिस्‍पर्धा कानून प्रवर्तन व्‍यवस्‍था अलग से नहीं चल सकती बल्कि इसे वर्तमान सामाजिक आर्थिक आदर्शों और उपलब्‍ध आय नीतिगत माध्‍यमों से बदलना होगा। प्रतिस्‍पर्धा कानून से संवर्धित आर्थिक उद्देश्‍यों और सामाजिक आर्थिक आदर्शों के बीच अक्‍सर संघर्ष की स्थिति संक्रमणकालीन अर्थव्‍यस्‍थाओं में होती है। इससे प्रतिस्‍पर्धा कानून की प्रवर्तन क्षमता और उसकी भूमिका सीमित हो सकती है। प्रतिस्‍पर्धा नियमों के बारे में सजगता से अर्थव्‍यवस्‍था में प्रतिस्‍पर्धा संस्‍कृति की स्‍थापना, प्रतिस्‍पर्धा कानून के कार्यान्वित में दीर्घकालीन भूमिका निभा सकती है। मुझे खुशी है कि प्रतिस्‍पर्धा संस्‍कृति का निर्माण इस महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलन में चर्चा का विषय है।

यह स्‍वीकार करना आवश्‍यक है कि प्रतिस्‍पर्धा कानून प्रवर्तन और खरीद के लिए बाजारों का उदारीकरण एक दूसरे के पूरक हैं। सार्वजनिक खरीद उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍था में सरकारी व्‍यय का एक बड़ा हिस्‍सा है। अनावश्‍यक प्रतिबंधों को हटाकर और बेहतर टेंडर डिजाइन से प्रभावी प्रतिस्‍पर्धा की संभावनाएं बढ़ाई जा सकती हैं, जिससे बड़ी हेराफेरी कठिन हो जाएगी। नतीजतन प्रतिस्‍पर्धात्‍मक कानूनी बाजारों से कीमती वित्‍तीय संसाधनों को बचाने में मदद मिलेगी और विकास के लिए धन मिल सकेगा।

सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम दूसरी चुनौती है। उनका स्‍वामित्‍व ऐसा होता कि प्रतिस्‍पर्धा से संरक्षण मिला रहता है और बंधे बाजार का फायदा उठाते हैं, एक महत्‍वपूर्ण मुद्दा इन फर्मों को बढ़ी हुई प्रतिस्‍पर्धा से सामना कराना है। सरकार एक सार्वजनिक क्षेत्र के फर्म की मालिक हो सकती है और सामान्‍य मालिकाना हक का इस्‍तेमाल कर सकती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसे प्रतिस्‍पर्धा से भी बचाया जाए। दुर्भाग्‍य से सरकारी स्‍वामित्‍व के कारण नौकरशाही तरीके से निर्णय होता है और आखिर में नतीजा यह होता है कि उपक्रम बाजार में समतुल्‍य के साथ बाजार में प्रतिस्‍पर्धा नहीं कर सकता। इसका हक सार्वजनिक क्षेत्र के फर्मों को कामकाज में ज्‍यादा स्‍वायतता देना और उन्‍हें नौकरशाही से मुक्‍त करने में है न कि उनकी प्रतिस्‍पर्धात्‍मकता को बर्दाश्‍त कर उन्‍हें प्रतिस्‍पर्धा से बचाने में।

सरकारी स्‍वमित्‍व के कारण सार्वजनिक क्षेत्र कारोबारियों को जो फायदा होता है उससे कई गड़बडि़यां भी पैदा होती है। प्रतिस्‍पर्धात्‍मक तटस्‍थता के लिए आवश्‍यक है कि अपने कारोबार को निजी क्षेत्र के कारोबार से ज्‍यादा फायदा पहुंचाने के लिए सरकार अपने कानूनी और वित्‍तीय अधिकारों का उपयोग न करें। आगे बढ़ने के लिए सरकारों को प्रतिस्‍पर्धा तटस्‍थ नीति अपनानी होगी।

इस संदर्भ में प्रतिस्‍पर्धा नीति में सहयोग बहुत ही महत्‍वपूर्ण है और मुझे खुशी है कि सम्‍मेलन ने इन विषयों को चर्चा और विचार विमर्श के लिए चुना है। व्‍यापार और धन के लिए भौगोलिक सीमा नहीं होती। विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था बहुक्षेत्रीय विकल्‍पों और सीमा पार प्रतिस्‍पर्धारोधी आचरण रूप में बढ़ता एकीकरण इस क्षेत्र में अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग को सभी आधुनिक प्रतिस्‍पर्धा प्राधिकारियों के लिए महत्‍वपूर्ण बना देता है। ब्रिक्‍स देशों के बीच बढ़ते व्‍यापार के कारण यह ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण हो जाता है। अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा सम्‍मेलन एक महत्‍वपूर्ण मंच है, जिससे प्रतिस्‍पर्धा के क्षेत्र से संबंधित सभी विचारक विश्‍व के सर्वश्रेष्‍ठ व्‍यवहार के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान कर सकते है। साझा चुनौतियों के बारे में अनुभवों को बांटकर महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर नई सहमति बनाई जा सकती है। ब्रिक्‍स के प्रतिस्‍पर्धा प्राधिकारी परिपक्‍व और नौसिखिए के बीच अंतर को पूरा करने की स्थिति में है। इन शब्‍दों के साथ मुझे भरोसा है कि दो दिन ब्रिक्‍स देशों द्वारा उनकी प्रतिस्‍पर्धात्‍मक व्‍यवस्‍था को लागू करने की चुनौतियों के बारे में स्थिरता से चर्चा होगी। इस उत्‍कृष्‍ट प्रयास में, मैं आपकी सफलता की कामना करता हूं।"