भाषण [वापस जाएं]

September 28, 2013
न्यूयार्क


संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें सत्र की आम बहस में प्रधानमंत्री का कथन

सबसे पहले तो मैं आपको संयुक्त राष्ट्र महासभा के 68वें सत्र की अध्यक्षता के लिए चुने जाने पर बधाई देता हूं। हम आपकी सफलता की कामना करते हैं और हम आपको पूर्णतम सहयोग का भरोसा दिलाते हैं।

ऐसे समय जब दुनिया अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है, तब अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और समृद्धि को आगे बढ़ाने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर फिर से ध्यान केंद्रित हो गया है। हालांकि ऐसा करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र की क्षमता के बारे में इतना अधिक संशयवाद कभी नहीं रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के कार्य के करीब सात दशक एक सरल सबक देते हैं और वह है: हम अधिक सफल होते हैं जब हम व्यापक संभव सहमति पर आधारित अपने निर्णयों और विकास के विभिन्न चरणों में राष्ट्रों की जरूरतों और जिम्मेदारियों को समान रूप से संतुलित करे संयुक्त राष्ट्र चार्टर की मूल भावना का पूरा पालन करते हैं।

इन सात दशकों में, दुनिया बुनियादी ढंग से बदल गई है। एशिया और अफ्रीका स्वतंत्र और पुनःसृजन के दौर से गुजर रहे हैं। देश अब न सिर्फ स्वतंत्र हैं बल्कि नई और बढ़ती जटिल चुनौतियों का भी सामना कर रहे हैं। बहुपक्षवाद को भविष्य में प्रासंगिक और प्रभावी बने रहने के लिए बहुपक्षीय संस्थानों में तुरंत सुधार करने की जरूरत है।

शुरुआत करने का यही सही स्थान है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और पुनर्गठन करना चाहिए ताकि इससे वर्तमान राजनीतिक वास्तवकिता की झलक मिले। ज्यादा विकासशील देशों को स्थायी और अस्थायी सदस्यों के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।

बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों को अपने निर्णय लेने की संरचना में विकासशील देशों की आवाज को ज्यादा महत्व देना चाहिए।

जहां कहीं भी शांति एवं सुरक्षा खतरे में हैं वहां बहुपक्षीय प्रयासों को हमारे प्रयास में मार्गदर्शन करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की केंद्रीयता ओर योगदान विकास के लिए बहाल किया जाना चाहिए।

आज की वास्तविकताओं में हमारे समय के अनुकूल नई अंतर्राष्ट्रीय आमसहमति बनाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। सिर्फ यही ऐसी कार्य योजना है जो संयुक्त राष्ट्र को वैधता और प्रभावशीलता एवं दक्षता के दोहरे परीक्षण से गुजरने में समर्थ बनाएगी।

हम इस सत्र का विषय निर्धारित करने के लिए आपकी पसंद की सराहना करते हैं। 2015 के बाद के विकास का कार्यक्रम बनाने के मंच तैयार करना खासतौर से महत्वपूर्ण है क्योंकि हम वैश्विक आर्थिक मंदी और वित्तीय बाजारों में निरंतर उतार-चढ़ाव का सामना करते हैं। इनसे विकासशील देशों पर और वंचित समूहों में असमानरूप से भारी लागत का बोझ बना है।

वृद्धि और समावेशी विकास हमारे सभी देशों के लिए कुदरती रूप से महत्वपूर्ण हैं। उन्हें समर्थनकारी अंतर्राष्ट्रीय विकास बैंकों, प्रौद्योगिकी के तबादले और मुक्त बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली सहित ज्यादा निवेश की जरूरत हैं।

लेकिन समस्या यह है कि एक अरब से अधिक लोग दुनिया भर में अधम गरीबी में रह रहे हैं उन पर प्रत्यक्ष रूप से ध्यान देने की जरूरत है। गरीब प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक चुनौती रही है और इसके उन्मूलन के लिए विशेष ध्यान देने तथा नए सामूहिक बल की जरूरत है। यह प्राथमिकता 2015 के बाद के विकास एजेंडे में झलकनी चाहिए जो सदस्य राष्ट्रों को करना चाहिए ताकि इसे व्यापक संभव समर्थन और स्वीकृति मिल सके।

शांति, सुरक्षा, मानव अधिकारों और प्रशासन के मुद्दे महत्वपूर्ण हैं और इनसे निपटने की जरूरत है। लेकिन यदि हम तीव्र आर्थिक वृद्धि की कीमत पर सिर्फ प्रशासन के मुद्दे पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे तो 2015 के बाद के महत्वाकांक्षी विकास एजेंडे को हम पूरी तरह हकीकत में नहीं बदल सकेंगे।

यह एजेंडा सिर्फ घरेलू खर्च को पुनः प्राथमिकता में लाने के बारे में नहीं होना चाहिए बल्कि बदलाव लाने के लिए विकासशील और विकसित देशों के बीच वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी बढ़ाने के बारे में होना चाहिए। हम सबको अपनी घरेलू प्राथमिकताओं को निर्धारित करने के लिए आवश्यक नीति की जरूरत है। खुद विकासशील देशों से बेहतर विकासशील देशों की अवस्था को कोई नहीं जानता।

इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र स्पष्ट एवं संक्षिप्त लक्ष्य निर्धारित करे और विककासशील देशों पर पूरी तरह विचार करने के मद्देनजर संसाधनों के पर्याप्त प्रवाह एवं प्रौद्योगिकी के तबादले सहित कार्यान्वयन के व्यवहारिक और अच्छी तरह परिभाषित माध्यम उपलब्ध कराए।

2015 के बाद के सार्थक कार्यक्रम में भोजन एवं कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे, पानी, स्वच्छता, ऊर्जा और महिलाओं के साथ भेदभाव को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखना चाहिए। आर्थिक अवसरों तक महिलाओं की पहुंच खासतौर से महत्वपूर्ण है और इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि वे हिंसा की शिकार या पूर्वाग्रहों की लक्ष्य ने बनें।

भारत में, हमने अनेक तरह से समावेशी विकास को प्रोत्साहन देने के प्रयास किए हैं। शिक्षा एवं सुरक्षित ग्रामीण आजीविकाओं तक व्यापक पहुंच के लिए कानून बनाए गए हैं। हम अब दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू कर रहे हैं। सार्वजनिक सेवाओं और लाभों को जनता तक पहुंचाने की प्रक्रिया में सुधार के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
भारत को विकासशील देशों के साथ अपनी भागीदारी पर गर्व है। संसाधनों के शालीन इस्तेमाल से हमने अफ्रीका और अल्प विकसित देशों के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं। हम अफ्रीका में 100 संस्थाओं के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं, हमने हजारों छात्रवृत्तियों सहित क्षमता निर्माण को समर्थन दिया है और 9.5 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक की रियायती सहायता उपलब्ध कराई है। भारत और अफ्रीका भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के जरिए संबंध प्रगाढ़ कर रहे हैं। हम 2014 में समोआ में स्मॉल आइलैंड विकासशील देशों पर तीसरे सम्मेलन में सक्रिय भागदारी और उसके निष्कर्ष में योगदान की उम्मीद कर रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन हमारे दौर की परिभाषित चुनौतियों में से एक रही है। हमें बराबरी एवं साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों वाले सिद्धांत के आधार पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की तीव्र वैश्विक नीति तैयार करने के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए।
 
हम पश्चिम एशिया के बारे में गंभीर चिंतित हैं जो ऐसा क्षेत्र है जिसके साथ भारत के ऐतिहासिक प्रगाढ़ रिश्ते रहे हैं तथा वह ऐसा क्षेत्र है जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ वहां रहने और काम करने वाले करीब 70 लाख भारतीयों की आजीविकाओं के लिए महत्वपूर्ण है।

सीरिया में बढ़ता घातक संघर्ष न सिर्फ सीरिया के लोगों के लिए त्रासदी है बल्कि क्षेत्र और उससे भी आगे की स्थिरता और सुरक्षा के लिए भी खतरा है। रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से इसे और बिगाड़ दिया गया है। भले ही किसी ने भी किए हों, रासायनिक हथयारों के इस्तेमाल की सख्त से सख्त निंदा की जानी चाहिए। भारत सीरिया में रासायनिक हथियारों के उन्मूलन का पूरा समर्थन करता है।

इस संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है। हमें संघर्ष समाप्त करने और राजनीतिक हल तलाशने के प्रयास तेज करने चाहिए। यह आवश्यक है कि जल्द से जल्द जिनेवा-2 सम्मेलन बुलाया जाना चाहिए।

हम इजराइल और फिलिस्तीन के बीच सीधी वार्ता को प्रोत्साहित करते हैं। भारत पूर्वी येरूसलम का राजधानी बनाते हुए प्रभुसत्ता सम्पन्न, स्वतंत्र, वहनीय और संयुक्त फिलिस्तीन राष्ट्र के सपने को जल्द साकार करने का समर्थन करता है। हम फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने की मांग के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।

हमारे अपने क्षेत्र में, अफगानिस्तान ऐतिहासिक राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक बदलाव के लिए तैयारी कर रहा हैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद से निपटले, पिछले दशक की प्रगति को सुरक्षित रखने और स्थिर, संयुक्त और समृद्ध अफगानिस्तान के अलावा बदलाव के इस दौर में अफगानिस्तान की जनता का समर्थन करना चाहिए।
 
आतंकवाद हर कहीं सुरक्षा और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा रहा है तथा दुनिया भर में इसने अनेक मासूम जान ली हैं। अफ्रीका से एशिया तक पिछले कुछ दिनों में ही हमने इस बुराई के अनेक रूप देखे हैं। राष्ट्र पोषित सीमा पार आतंकवाद भारत के लिए चिंता की खास बात है तथा इस तथ्य के मद्देनजर भी यह चिंता की बात है कि हमारे क्षेत्र में आतंक का केंद्र हमारे पड़ोस पाकिस्तान में है।

कल इस मंच से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नई शुरुआत की। मैं उनकी भावनाओं के अनुकूल जवाब देते हुए कल उनके साथ बैठक की उम्मीद करता हूं। भारत पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर सहित सभी मुद्दों को शिमला समझौते के आधार पर द्विपक्षीय बातचीत के जरिए हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि इसमें प्रगति के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान के क्षेत्र और इसके नियंत्रण वाले क्षेत्र को भारत के विरुद्ध आंतकवाद की सहायता करने और फैलाने के लिए इस्तेमाल न किया जाए। यह भी समान रूप से महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान से खुराक लेने वाली आतंकी मशीनरी बंद होनी चाहिए। इस तथ्य के बारे में स्पष्ट समझ होनी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक अंग है और भारत की एकता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ कभी भी कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए चाहे साइबर सुरक्षा हो, या अप्रसार या आतंकवाद की बढ़ती जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए नई अंतर्राष्ट्रीय आम सहमति बनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के परमाणु शस्त्र मुक्त और अहिंसक विश्व के लिए व्यापक कार्य योजना को आगे बढ़ाने के कदम के 25 वर्ष बाद, इस साल हमें परमाणु प्रसार के विरोध में और समय बद्ध ढंग से, सारे विश्व से, भेदभाव मुक्त और प्रमाणनयोग्य ढंग से परमाणु निरस्त्रीकरण के मजबूत प्रयास करने चाहिए। हमें इस बात के उपाय भी करने चाहिए कि आतंकवादी और राज्य से इतर आतंकवाद का समर्थन देने वाले लोग संवेदनशील सामग्री और प्रौद्योगिकियों तक न पहुंच जाएं।

अब से दो साल बाद, संयुक्त राष्ट्र को बने हुए 70 साल हो जाएंगे। इस अवधि के दौरान बना प्रत्येक नया राष्ट्र इस महासभा में न सिर्फ गर्व के साथ मौजूद है बल्कि आशावान भी है। 2015 ऐसा पल होगा जब हमारे उत्तराधिकारी जश्न मनाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र बहुआवश्यक संयुक्त राष्ट्र और अपनी सुरक्षा परिषद में सुधारों को पूरा करने, 20515 के बाद का महत्वाकांक्षी एवं संतुलित विकास एजेंडा विकसित करने और इस दुनिया में स्थायी शांति एवं सुरक्षा के लिए प्रभावी ढंग से सहयोग की अपनी क्षमता के प्रदर्शन के जरिए इस सदी के लिए तैयार है।