भाषण [वापस जाएं]

September 27, 2013
न्यूयार्क


न्यूयार्क में उद्योगपतियों के साथ बैठक में दिया गया प्रधानमंत्री का प्रारंभिक वक्तव्य

मैं इस बैठक में आप सभी का स्वागत करता हूं जो शुक्रवार शाम अल्पावधि सूचना के बाद आयोजित की गयी है।

आज के विश्व में आर्थिक और व्यापारिक, दो तरफा भागीदारी सुदृढ़ आपसी संबंधों का आधार है। दोनों देशों के व्यापारिक समुदायों ने भारत-अमरीका महत्वपूर्ण भागीदारी के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारा सहयोग अब वास्तव में व्यापक आधार वाला हो गया है।

व्यापार और निवेश के अलावा, हम ऊर्जा सुरक्षा, शिक्षा और अनुसंधान, रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में रचनात्मक सहयोग कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ओबामा के साथ आज दिन में मेरी बैठक अत्यंत लाभप्रद रही है और मैंने उन्हें बताया है कि विश्वभर में आर्थिक मंदी के बावजूद व्यापार और निवेश के क्षेत्र में भारत-अमरीकी संबंध उच्च शिखर पर रहे हैं।

मैं जानता हूं कि अमरीका का व्यापारी समुदाय भारत में विकास की संभावनाओं, वृहत् आर्थिक स्थिरता और आर्थिक नीति वातावरण को लेकर कुछ चिंतित है। इस बारे में हमारी ईमानदारी को लेकर संदेह व्यक्त किए गए हैं। यह गलत धारणा है। मैं इस बैठक का इस्तेमाल आपका भ्रम दूर करने और आपकी बात सुनने के लिए करना चाहता हूं।

हम आर्थिक माहौल को मजबूत बनाने के प्रति कृत संकल्प हैं, जो मुक्त है, भरोसेमंद और पारदर्शी है तथा व्यापार और निवेश के अनुकूल है। हम पिछले दशक में हासिल की गयी उच्च विकास दर को फिर से प्राप्त करने और वृहत् आर्थिक स्थिरता कायम करने के प्रति संकल्पबद्ध हैं। हम यह भी जानते हैं कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें पहले से अधिक सुधार करने होंगे।

भारत में 1991 में सुधारों की जो प्रक्रिया शुरू की गयी थी, उससे आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने और गरीबी में तेजी से कमी लाने में मदद मिली थी। वास्तव में 1991 के बाद भारत में बनने वाली सरकारों में लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल सरकारों का हिस्सा रह चुके हैं और उन्होंने सुधारों की प्रक्रिया का समर्थन किया है। इससे अपनी आर्थिक नीतियों की भावी दिशा के बारे में हमारा भरोसा बढ़ा है।

यह सही है कि हमारी विकास दर में गिरावट आई है। करीब एक दशक तक हमारी औसत वृद्धि दर लगभग 8 प्रतिशत रही। पिछले वर्ष हमारी वृद्धि दर घटकर 5 प्रतिशत रह गयी। कुछ हद तक वैश्विक अर्थव्यवस्था और सभी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मंदी को इसका कारण समझा जा सकता है।

हम भारत को फिर से 8-9 प्रतिशत की स्थिर वृद्धि दर पर पहुंचाने के प्रति वचनबद्ध हैं। वास्तव में भारत के लोगों को इससे कम पर संतोष नहीं होगा। उन्होंने तीव्र समावेशी आर्थिक विकास के फायदों का लाभ उठाया है और वे उससे अधिक लाभ उठाना चाहते हैं, कम नहीं।

भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांत मजबूत रहे हैं। सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में भारत का समग्र सरकारी ऋण कम हुआ है जो 2007-07 में जीडीपी का 73.2 प्रतिशत था, वह 2012-13 में घट कर 66 प्रतिशत रह गया। इसी प्रकार भारत का विदेशी ऋण जीडीपी का मात्र 21.2 प्रतिशत और अल्पावधि ऋण घट कर जीडीपी का 5.2 प्रतिशत रह गया है।

हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 270 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुंच गया है और यह भारत की बाहरी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के पर्याप्त है।

विकास की गति बहाल करने के लिए हमारी सरकार ने पिछले वर्ष सुधार के उपायों की एक शृंखला लागू की है। बड़ी परियोजनाओं, विशेष कर बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए हमने एक विशेष तंत्र कायम किया है। महत्वपूर्ण परियोजनाओं के मार्ग की रुकावटें दूर करने के लिए कई निर्णय किए गए हैं।

हमने भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए अधिक आकर्षक बनाने के उपाय किए हैं। खुदरा और दूरसंचार सहित कई क्षेत्रों में एफडीआई की सीमाएं बढ़ाई गयी हैं, और बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिबंध कम किए गए हैं। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी नीति स्पष्ट की गयी है ताकि गुण-दोष के आधार पर कुछ मामलों में 26 प्रतिशत से अधिक एफडीआई पर विचार किया जा सके।

हमारे प्रयासों के नतीजे वर्ष की दूसरी छमाही में सामने आने लगेंगे। हम 2012-13 की तुलना में 2013-14 में अधिक मजबूत विकास की उम्मीद करते हैं। वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान में खास बदलाव दिखाई देने चाहिए, आंशिक दृष्टि से इसलिए कि मॉनसून की स्थिति बेहतर रही है और इसलिए भी कि इस दिशा में उचित उपाय किए गए हैं।

हम इस वर्ष राजकोषीय घाटा 4.8 प्रतिशत तक सीमित रखेंगे। हमें यह भी विश्वास है कि चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक रखने का मध्यावधि लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। साथ ही विदेशी पूंजी प्रवाह बनाए रखने के लिए हम एक वृहत्-आर्थिक फ्रेमवर्क कायम करेंगे ताकि चालू खाता घाटे को क्रमबद्ध तरीके से वित्त पोषित किया जा सके।

भारत में पूर्ण स्वामित्व वाली अमरीकी कंपनियों की कर संबंधी अनेक चिंताओं को दूर किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक आयात पर लगाए गए कुछ सुरक्षा संबंधी प्रतिबंधों को छद्म रूप से संरक्षणवादी समझ लिया गया था। हमने इन प्रतिबंधों पर अमल स्थगित कर दिया है और हम अपनी वैध सुरक्षा जरूरतों का समाधान करने के लिए कुछ अधिक स्वीकार्य समाधान तलाश करेंगे।

मैं आप सबको यह भरोसा देना चाहता हूं कि भारत बौद्धिक संपदा संरक्षण के प्रति वचनबद्ध है। हम समझते हैं कि किसी भी देश में निवेश और नवाचार के लिए ऐसे संरक्षण आवश्यक हैं। भारत में हमने एक मजबूत बौद्धिक संपदा कानून बनाया है, जो विश्व व्यापार संगठन के प्रति हमारी वचनबद्धताओं के अनुरूप है। हम प्रवर्तन व्यवस्था को निरंतर सुदृढ़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अभी तक एक कैंसर रोधी औषधि के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग का एक मात्र उपाय किया गया है, जबकि भारत के उच्चतम न्यायालय ने वैध आधार पर एक पेटेंट के दावे को निरस्त कर दिया था।

मैं इस अवसर का इस्तेमाल आपसे यह अपील करने के लिए भी करना चाहता हूं कि आप कानूनी या प्रशासनिक उपायों के जरिए भारतीय आईटी कंपनियों के रास्ते में पैदा की जा रही रुकावटों का विरोध करें। ये कंपनियां भारत-अमरीकी संबंधों की सर्वाधिक उत्साही पुरोधा हैं। हमारे सकल घरेलू उत्पाद में आईटी और संबद्ध सेवा क्षेत्र का योगदान 8 प्रतिशत है और निर्यात का योगदान 25 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 30 लाख लोगों को सीधे रोजगार प्राप्त है।

अमरीकी बाजार में आईटी कंपनियों के काम न करने से न केवल हमारी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा बल्कि अमरीका के साथ आर्थिक भागीदारी के बारे में भारत में संदेह भी पैदा होंगे।

अनेक अमरीकी कंपनियां, जो भारत में स्वीकार की गयी हैं, ऐसे उत्पाद और सेवाएं प्रदान कर रही हैं जो प्रतिस्पर्धी और मौलिक हैं। ये कंपनियां अच्छा कारोबार कर रही हैं। मुझे उम्मीद है कि आप दीर्घावधि में मिलने वाले अवसरों को समझेंगे। उदाहरण के लिए अगले पांच वर्षों में हमारी बुनियादी ढांचा क्षेत्र में एक खरब डॉलर से अधिक के निवेश की योजना है। रक्षा क्षेत्र भी एक आकर्षक क्षेत्र है, क्यांेकि हम घरेलू खरीद को प्राथमिकता देंगे और इस क्षेत्र में अपने निजी क्षेत्र को बढ़ावा देंगे।

मैं आपसे यह सुनना चाहता हूं कि किस तरह हमारे आर्थिक संबंधों का और विस्तार किया जा सकता है।