भाषण [वापस जाएं]

July 19, 2013
नई दिल्ली


एसोचेम की वार्षिक आम बैठक में प्रधानमंत्री का वक्‍तव्‍य

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां एसोचेम की 92वीं वार्षिक आम बैठक को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ निम्‍न प्रकार से है:-

मुझे इस बात की प्रसन्‍नता है कि एसोचेम की वार्षिक आम बैठक, 2013 का उद्घाटन करने के लिए मैं आज यहां आप लोगों के बीच हूं। एसोचेम ने अनेक वर्षों से आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए हमारी नीतियों को आकार देने में समय-समय पर बहुमूल्‍य सहयोग किया है। मैं श्री राजकुमार धूत और उनके सभी सहयोगियों को इसके लिए बधाई देता हूं और मुझे आज आप लोगों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने में खुशी हो रही है।

मैं शुरू में ही स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि अन्‍य अनेक देशों के समान हम एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं। मैं जानता हूं कि हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में मंदी के बारे में व्‍यापारियों में बड़ी चिंता है। अर्थव्‍यवस्‍था को विकास के उच्‍च पथ पर वापस लाने के लिए उनकी निगाहें सरकार की ओर लगी हैं। मेरा विश्‍वास है कि यह उनकी उचित अपेक्षा है और हमारे दिमाग में भी यह सबसे बडी चिंता है।

जब सब कुछ सही चल रहा हो तो सरकार को यथासंभव कम से कम हस्‍तक्षेप करना चाहिए। लेकिन जब हालात खराब हों, जैसा कि इस समय प्रतीत होता है तो यह सरकार का दायित्‍व बन जाता है कि वह अधिक अग्रसक्रिय बने। चिंता का सर्वाधिक तात्‍कालिक कारण विदेशी मुद्रा बाजार में हाल का उतार-चढाव है। इसमें से अधिकांश अमरीका द्वारा फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा क्‍वांटिटेटिव ईजिंग थर्ड (Quantitative Easing III) को वापस लेने की संभावना को देखते हुए विश्‍व के बाजारों की प्रतिक्रिया के रूप में है। विकासशील बाजारों से बड़ी मात्रा में राशि हटा ली गई और तुर्की, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका सहित अनेक विकासशील देशों की मुद्राओं की कीमतों में गिरावट आई।

हमने भी रूपये के विनिमय मूल्‍य में उल्‍लेखनीय गिरावट देखी है। हमारे मामले में संभवत: यह स्थिति इस कारण बिगड़ गई कि अदायगी संतुलन में हमारा चालू खाता घाटा 2012-13 में सकल घरेलू उत्‍पाद के 4.7 प्रतिशत के कारण बढ़ा।

मैं आपको आश्‍वासन देता हूं कि हम समस्‍या के मांग पक्ष और आपूर्ति पक्ष दोनों का समाधान करके चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है। जहां तक मांग पक्ष का संबंध है हमें व्‍यापार के प्रमुख घाटे के सबसे बड़े दो कारणों सोने और पैट्रोलियम उत्‍पादों की मांग को कम करने की आवश्‍यकता है।

हमने सोने की मांग को नियंत्रित करने के उपाय किए हैं और मुझे यह कहते हुए प्रसन्‍न्‍ता हो रही है कि इसका कुछ प्रभाव पड़ा है। जून महीने में सोने के आयात में तेजी से कमी आई और मुझे आशा है कि अब यह सामान्‍य स्‍तर पर बना रहेगा।

जहां तक पैट्रोलियम उत्‍पादों का संबंध है हमने पिछले साल पैट्रोलियम उत्‍पादों की कीमतों को सही करने की प्रक्रिया शुरू की थी। डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने कम वसूलियों के अंतर को लगभग 13 रूपया प्रति लीटर से घटाकर 2 रूपये प्रति लीटर ला दिया है। दुर्भाग्‍य से इस उपलब्धि के कुछ अंश को रूपये के मूल्‍य में गिरावट ने निरस्‍त कर दिया है। तथापि, कम वसूलियों को धीरे-धीरे समाप्‍त करने के लिए मूल्‍यों को समायोजित करने की हमारी नीति जारी है। जहां तक आपूर्ति का संबंध है हमें, अपने निर्यात को बढावा देने की आवश्यकता है। रूपये के मूल्‍य में गिरावट इसमें सहायक होगी। निस्‍संदेह निर्यात के आकार के रूप  में इसका लाभ मिलने में समय लगेगा, लेकिन जो अनुबंध अब से किए जाएंगे, उनका निश्चित रूप से लाभ होगा। हम भी लौह-अयस्‍क और अन्‍य अयस्‍कों के निर्यात में बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इनके निर्यात में पिछले एक साल के दौरान विशेष गिरावट आई है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने रूपये के मूल्‍य में गिरावट को रोकने के कई उपाय किये हैं। शुरू में उसने डॉलरों को बाजार में फैंका। इससे किसी हद तक सहायता मिली। अभी हाल में उसने अल्‍पकालिक ब्याज दरें बढ़ाने के अन्‍य  उपाए किए हैं। ये उपाय दीर्घकालिक ब्याज दरों में वृद्धि के संकेतक नहीं हैं। इनका उद्देश्‍य मुद्रा में वायदे के दबाव को रोकना है। मुझे आशा है कि एक बार इन अल्‍पकालिक दबावों के नियंत्रण में आने पर रिजर्व बैंक इन उपायों को वापस लेने पर भी विचार कर सकता है।

भविष्‍य की ओर देखें तो रूपये के मूल्‍य में गिरावट से भारतीय उद्योग को निर्यात बाजार में और हमारे बाजारों में अन्‍य देशों के आयात को कारगर रूप से पछाड़ने में सहायता मिलेगी।

मुझे आशा है कि उद्योग अति प्रतिस्‍पर्धी बनने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है। क्‍योंकि हमें विश्‍वास है कि यह अधिक प्रतिस्‍पर्धी बन सकता है। हमने आसियान देशों और कोरिया गणराज्‍य के साथ आर्थिक भागीदारी का व्‍यापक समझौता किया है। यूरोपीय संघ के साथ भी जल्‍दी ही इस प्रकार का समझौता होने की आशा है।

आदर्श के तौर पर हमें अपने चालू खाता घाटे को अपने सकल घरेलू उत्‍पाद के 2.5 प्रतिशत तक लाना चाहिए। जाहिरा तौर पर यह काम एक वर्ष में करना संभव नहीं है लेकिन मुझे उम्‍मीद है कि 2013-14 में चालू खाता घाटा पिछले साल रिकार्ड किया गया 4.7 प्रतिशत के स्‍तर से बहुत कम हो, जायेगा। यह अगले वर्ष और कम होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि चालू खाता घाटा समय के बीतने के साथ और कम हो इसके लिए हम मौद्रिक, आर्थिक और आपूर्ति संबंधी सभी नीतिगत उपायों को प्रयोग में लाएंगे।

मध्‍यम स्‍तरीय संभावनाओं को देखते हुए मैं समझता हूं कि हम ऐसा कर सकते हैं और हमें इस बारे में आशावादी होना चाहिए। हमारी अर्थव्‍यवस्‍था के बुनियादी सिद्धांत सुदृढ़ और स्‍वस्‍थ हैं। हम सूक्ष्‍म मोर्चे पर असंतुलनों को ठीक करने के सभी संभव उपाय करते रहे हैं।

आर्थिक घाटा जो अतीत में दिए गए आर्थिक प्रोत्‍साहनों का संचित प्रभाव है, बढ़ गया है। इसे कम करने की आवश्‍यकता है। वित्‍त मंत्री ने 2013-14 में सकल घरेलू उत्‍पाद के 4.8 प्रतिशत के वित्‍तीय घाटे को निशाना बनाया है। उन्‍होंने  वर्ष 2016-17 तक हर वर्ष लगभग आधा प्रतिशत के हिसाब से वित्‍तीय घाटे को कम करने की घोषणा की है। हम इस वर्ष के लक्ष्‍य को पूरा करने के लिए दृढ संकल्‍प हैं।

हमें निवेश की गति को पुनर्जीवित करने के उपाए करने की भी आवश्‍यकता है। पिछले कुछ महीनों के दौरान चिंता की मुख्‍य कारण यह रहीं है कि कई परियोजनाएं विभिन्‍न कारणों से रूकी हुई हैं। बिजली की उत्‍पादन क्षमता में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है लेकिन कोयले की आपूर्ति एक समस्‍या बनी रही। हमने अब इस समस्‍या को हल कर लिया है और ईंधन की आपूर्ति के समझौते किए जा रहे हैं जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि 2015 तक चालू किए जाने वाले सभी संयंत्रों को कोयले की पर्याप्‍त आपूर्ति हो। इसमें घरेलू और आयातित कोयला शामिल है।

कई परियोजनाएं नियामक अनुमोदन न मिलने के कारण रूकी हुई हैं। इस बारे में तेजी लाई जा रही है। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में इन बड़ी परियोजनाओं का पता लगाने के लिए मंत्रिमंडलीय सचिवालय में हाल ही में एक अलग से प्रकोष्‍ठ बनाया गया है जो संयंत्रों को चालू करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने की सहायता करेगा।    

अवसंरचना विकास की हमारी मध्‍यम स्‍तरीय संभावनाओं के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है और हम त्रैमासिक आधार पर इस क्षेत्र में प्रगति पर नजर रखे हुए हैं। इस बारे में कई पहल कदमियां भी की जा रही हैं।

· सरकार ने आंध्र पेदश और पश्चिम बंगाल में दो प्रमुख बंदरगाहों की स्‍थापना करने के लिए योजना बनाई है।

· नए हवाई अड्डे, नवी मुंबई, जुहू, गोवा, पूणे और कन्‍नौर में स्‍थापित करने की योजना है।

· 50 अन्‍य स्‍थानों पर नये छोटे हवाई अड्डे बनाए जा रहे है।

· ऐलिवेटेड रेल कॉरिडोर सहित प्रमुख रेलवे परियोजनाएं विचाराधीन है।

· मुंबई से अहमदाबाद के लिए बुलट ट्रेन चलाने की व्‍यवहार्यता का अध्‍ययन किया जा रहा है।

· इन सभी पहल पर तात्‍कालिकता की भावना के साथ उच्‍च स्‍तर पर निगरानी रखी जा रही है।

· पिछले एक वर्ष के दौरान अनेक महत्‍वपूर्ण सुधार शुरू किए गए हैं।

· अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के लिए बैंकिंग कानूनों को संशोधित किया गया है।

· अनुदान सहायता सुधार और युक्तिकरण को पूरी ताकत से शुरू किया गया है।

· प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण योजना को पूरे देश में शुरू किया गया है, ताकि जन सेवा प्रदान करने में अपव्‍यय और भ्रष्‍टाचार को कम किया जा सके।

· एकल ब्रांड खुदरा, बहु ब्रांड खुदरा, नागर विमानन और विद्युत एक्‍सचेंज में प्रत्‍यक्ष्‍विदेशी निवेश को उदार बनाया गया है। अधिक प्रत्‍यक्ष निवेश सुधार विचाराधीन हैं।

· नई बैंक लाइसेंस नीति की घोषणा की गई है और नए लाइसेंस जल्‍दी ही दे दिए जाएंगे।

· उद्योग की चिंता का बड़ा विषय बन गए जीएएआर को दो वर्षों के लिए स्‍थगित कर दिया गया है और नियमों में अधिक स्‍पष्‍टता है।

· सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र और विकास केंद्रों के कराधान मुद्दों को रंगाचारी समिति की रिपोर्ट के आधार पर सुलझा लिया गया है।

· सार्वजनिक क्षेत्र निवेश में तेजी लाई गई है और मेरा यह अनुमान है कि पिछले वर्ष प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों द्वारा 120,000 करोड़ रूपये से भी अधिक राशि का निवेश किया गया है।

· अवसंरचना ऋण निधियों को जारी किया गया है।

· चीनी को पूरी तरह नियंत्रण से मुक्‍त कर दिया गया है।

· रेलवे ने एक दशक में पहली बार अपने किरायों को संशोधित किया है।

· डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर निर्माण कार्य शुरू हो गया है।

· यूरिया के लिए निवेश नीति को मंजूरी दे दी गई है।

· बाजार की वास्‍तविकताओं को बेहतर रूप से प्रतिबिंबित करने के लिए गैस के मूल्‍यों को संशोधित किया गया है।

· परियोजना की आर्थिक व्‍यवहार्यता सुधारने के लिए सड़क क्षेत्र में प्रक्रियात्‍मक सुधार किया गया है।

मैं आगे बढ़ सकता हूं, लेकिन मेरा उद्देश्‍य केवल यह दिखाना है कि हमने अनेक मोर्चों पर कार्य किया है। मैं इस पहल पर कायम रहूंगा और मुझे उम्‍मीद है कि इनका प्रभाव इस साल की दूसरी छमाही में अनुभव किया जाएगा।

मैं यह भविष्‍यवाणी नहीं करना चाहूंगा कि वर्ष 2013-14 में हमारा विकास कितना होगा। अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्राकोष ने भारत सहित सभी देशों के लिए अपने विकास दरों के पूर्वानुमान में कमी की है। हमने बजट में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्‍य निर्धारित किया था, लेकिन लगता है कि यह उससे कम रहेगा।

उद्योग विकास अभी तक प्राप्‍त नहीं हुआ है। लेकिन मुझे यह कहते हुए खुशी है कि कृषि क्षेत्र में अच्‍छा प्रदर्शन होगा। वास्‍तव में हमारी सरकार की मुख्‍य उप‍लब्धियों में एक उपलब्धि यह है कि कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन में महत्‍पवूर्ण सुधार हुआ है। 10वीं योजना अवधि में कृषि में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 11वीं योजना की अवधि में इस क्षेत्र में वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत थी। 12वीं योजना में हमने अपने कृषि क्षेत्र के लिए 4 प्रतिशत वृद्धि दर का लक्ष्‍य रखा है। मुझे उम्‍मीद है कि अभी तक हुई पर्याप्‍त वर्षा के कारण कृषि क्षेत्र अच्‍छा प्रदर्शन करेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी, जो आने वाले समय में मजबूत औद्योगिक कार्यनिष्‍पादन में सहयोग करेगी।

मैं इस बात पर जोर देता हूं कि वर्ष 2013-14 के लिए यह ठीक विकास संख्‍या नहीं है। जो महत्‍वपूर्ण है, वह यह है कि अर्थव्‍यवस्‍था पिछले वर्ष अर्जित पाँच प्रतिशत के आसपास ही बनी रहनी चाहिए। यह बहुत अच्‍छा मौका है कि हम इसे बेहतर कृषि प्रदर्शन और अवसंरचना में की गई विभिन्‍न कार्रवाइयों के प्रभाव से अर्जित कर सकते हैं। इसके बाद हम 2014-15 में कुछ गति लाने की कोशिश करेंगे। समापन से पूर्व मुझे संयुक्‍त प्रगतिशील सरकार के प्रदर्शन के मुद्दों के बारे में संबोधित करना है। हमारे राजनीतिक आलोचक एक बुरे साल के अनुभव पर ध्‍यान केंद्रित कर रहे हैं। यह टीवी पर अच्‍छा लगता हैं, लेकिन यह बहुत विकृत तस्‍वीर है। मैं आपको निम्‍नलिखित मुद्दों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता हूं–

· संयुक्‍त प्रगतिशील सरकार के 2004-05 से 2012-13 तक के आठ वर्षों में औसत विकास दर 8.2 प्रतिशत प्रति वर्ष रही, जो पिछले आठ वर्षों में प्राप्‍त 5.7 प्रतिशत के मुकाबले कहीं बेहतर है। मैं पहले ही उल्‍लेख कर चुका हूं कि कृषि का प्रदर्शन 10वीं योजना के मुकाबले 11वीं योजना में ज्‍यादा बेहतर रहा। यह इससे पता चलता है कि 2004-05 और 2011-12 के मध्‍य प्रति व्‍‍यक्ति वास्‍तविक ग्रामीण खपत बढ़कर 2.9 प्रतिशत हो गई, जो 1993-94 और 2004-05 के मध्‍य केवल एक प्रतिशत थी।

· वास्‍तविक ग्रामीण मजदूरी अधिक गति से बढ़ी है। (यह 11वीं योजना में 6.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी, जो इससे पहले के 10 सालों में औसतन 1.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष थी)।

· 2004-05 में हमारी सरकार के आने से पहले गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्‍या का प्रतिशत घटकर 0.75 प्रतिशत अंक रहा। 2004-05 और 2011-12 के मध्‍य इसमें दो प्रतिशत अंक से अधिक कमी आई है।

मैं समझता हूं कि यह किसी भी सरकार के लिए गर्व करने वाला रिकॉर्ड है। मैं मानता हूं कि एक साल बुरा रहा है। मैं आपको आश्‍वासन देता हूं कि हम इससे बाहर निकल जाएंगे।

मैंने कुछ ऐसे मुद्दों को छुआ है, जिन्‍हें मैं जानता हूं कि इससे औद्योगिक घराने चिंतित है और मैंने ऐसे क्षेत्रों के बारे में भी बताया है जहां कार्रवाई किए जाने की आवश्‍यकता है। मैं आपको यह आश्‍वासन देता हूं कि हम अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को सुधारने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। मेरा आप सबसे यह भी अनुरोध है कि नकारात्‍मक भावनाओं को हावी न होने दें। हम अपने पथ पर अडि़ग रहें और हमें सामूहिक राष्‍ट्रीय लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए। इन शब्‍दों के साथ मैं इस सम्‍मेलन और एसौचेम को पूर्ण सफलता के लिए शुभ कामनाएं देता हूं।

धन्‍यवाद।