भाषण [वापस जाएं]

May 23, 2013
गुडगांव, हरियाणा


प्रधानमंत्री ने गुडगांव में भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍वविद्यालय की आधारशिला रखी

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज गुडगांव में भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍वविद्यालय की आधारशिला रखी। इस अवसर पर उनके द्वारा दिए गये वक्‍तव्‍य के मूल पाठ का हिन्‍दी रूपांतरण नीचे दिया जा रहा है:-

''यह मेरे लिए बहुत गौरव का क्षण है कि मैं आज भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍वविद्यालय की आधारशिला रखे जाने के पावन अवसर पर आपके साथ हूं। वि‍श्‍वविद्यालय के विचार को बहुत पहले ही मूर्त रूप दिया जाना था और मुझे खुशी है कि आज इस विचार को अमली जामा पहनाया जा रहा है।

सबसे पहले, मैं अपने दोस्‍त और हरियाणा के मुख्‍यमंत्री का शुक्रिया अदा करूंगा कि उन्‍होंने इस परियोजना को समर्थन दिया और खासतौर से इसके लिए जमीन देने की दरियादिली दिखाई। इस विश्‍वविद्यालय के दिल्‍ली के नजदीक होने की वजह से अध्‍यापकों, छात्रों, रक्षा नीति‍ निर्माताओं और विशेषज्ञों को एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श करने का मौका मिलेगा। मैं अपने वरिष्‍ठ सहयोगी रक्षा मंत्री जी, सशस्‍त्र बलों के आला अफसरों और रक्षा मंत्रालय को धन्‍यवाद दूंगा कि उन्‍होंने इस राष्‍ट्रीय अहमियत की परियोजना को अमली जामा पहनाने में कड़ी मेहनत की। मुझे इस बात में कोई शक नहीं कि जब यह अनोखा विश्‍ववि़द्यालय बनकर तैयार होगा तो वह पूरी दुनिया में उच्‍च रक्षा अध्‍ययन के लिए जाना जाएगा। इस पर हमें गर्व होगा।

सरकार का भारत के नागरिकों से यह वादा है कि देश की सुरक्षा पूरे तौर पर की जाएगी। यह हमारे राष्‍ट्रीय, सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए बहुत जरूरी है। हमारी सरकार इन कामों को सबसे अधिक प्राथमिकता देती है। हम अपने क्षेत्र और उसके बाहर शांति, स्थिरता, दोस्‍ती और सहयोग कायम करना चाहते हैं। ऐसा करते हुए हमें अपने सशस्‍त्र बलों पर पूरा भरोसा है कि वे किसी भी खतरे से देश को बचाने के लिए सक्षम हैं। हमारा यह भरोसा ऐसे कई कदमों पर आधारित है जिन्‍हें सरकार ने देश की रक्षा क्षमताओं को मजबूत बनाने के लिए उठाया है।

पिछले कुछ सालों के दौरान हमने अपनी थल सेना का काफी विकास किया है और सेना को उसकी मारक क्षमता बढ़ाने के लिए नये साजो-सामान से लैस किया है ताकि वह हमारी सरहदों की रक्षा कर सके। सीमा पर हमने अपने आधारभू‍त ढांचे में सुधार किया है और वायुसेना की ताकत बढ़ायी गई है, जिनके कारण हमारी सेनाएं पहले के मुकाबले आज ज्‍यादा मजबूत हैं। हम अपनी वायु सेना की क्षमताओं को भरपूर तौर पर बढ़ा रहे हैं और उसे शानदार प्रौद्योगिकी से लैस कर रहे हैं ताकि वह आने वाले दशकों में सक्षम बनी रहे। आज न सिर्फ हमारी सरहदें मज़बूत हुईं हैं, बल्कि हमारा समुद्री क्षेत्र भी पहले के मुकाबले ज्‍यादा सुरक्षित है। पिछले पाँच सालों के दौरान हमारे तटों और वहां मौजूद परिसंपत्तियों की रक्षा करने के लिए हमारे समुद्री बलों की क्षमता में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है। हमने अपनी जल सेना की ताकत बढ़ाने के लिए उस पर ज्‍यादा जोर दिया है। आज हमारी जल सेना हमारे तटों से दूरस्‍थ क्षेत्रों में काम करने, हमारे समुद्री हितों की रक्षा करने, प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और जरूरत पड़ने पर मानवीय सहायता देने के लिए पूरी तरह तैयार है।

पिछले नौ सालों के दौरान हमारी प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ी है और उसने ठोस आकार ग्रहण किया है। इसके साथ ही आज हम गैर-पारंपरिक खतरों, खासतौर से साइबर और आकाशीय, का मुकाबला करने के लिए पहले के मुकाबले बेहतर तरीके से लैस हैं। हम साइबर सुरक्षा के लिए एक राष्‍ट्रीय सरंचना को क्रियान्वित कर रहे हैं और एक राष्‍ट्रीय साइबर सुरक्षा संयोजन विभाग बनाने के लिए हमने कदम उठाये हैं।

हमारी सरकार इस हकी़कत को पूरे तौर पर समझती है कि बेहतर रक्षा तैयारी के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम रक्षा साजो-सामान खरीदने की ठोस नीति बनाएं। हमने इस पर बहुत ध्‍यान दिया है और हम लगातार अपनी नीतियों में सुधार कर रहे हैं ताकि हमारी सेनाओं को बेहतरीन सामग्री मिल सके। हमने इस बात की भी पूरी कोशिश की है कि रक्षा साजो-सामान की खरीदारी पूरी तरह साफ सुथरी हो और इस काम में कोई अनैतिकता न बरती जाए। रक्षा साजो-सामान खरीदने के लिए हम उच्‍चतम मानकों का पालन करते रहेंगे।

एक दूसरा मुद्दा है, जिस पर हमने बहुत ध्‍यान दिया है, और वह है - रक्षा साजो-सामान को घरेलू स्‍तर पर विकसित करना। सरकार घरेलू रक्षा उद्योग और भारतीय निजी क्षेत्र के विकास के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। यह न सिर्फ हमारी सुरक्षा बढ़ाने के लिए, बल्कि औद्योगिक विकास में तेजी लाने और देश की आर्थिक वृद्धि के लिए भी बहुत अहम है। रक्षा क्षेत्रों सहित हमारे निजी क्षेत्र में जो प्रौद्योगिकीय क्षमताएं मौजूद हैं, हमें उनका भरपूर प्रबंधन और इस्‍तेमाल करना चाहिए। इनका इस्‍तेमाल न सिर्फ उत्‍पादन के लिए किया जाए बल्कि रक्षा अनुसंधान और विकास में भी इनका इस्‍तेमाल हो।

आज भारत के सामने तमाम तरह की रक्षा चुनौतियां मौजूद हैं। ऐसा होना बहुत वाजिब है क्‍योंकि हमारा पड़ोस बहुत कठिन है, जहां पारंपरिक, गैर पारंपरिक और सामरिक चुनौतियां भरपूर तौर पर कायम हैं। हम एशिया के सामरिक मोड़ पर मौजूद हैं और विश्‍व का सबसे व्‍यस्‍त जलमार्ग हमारे समुद्री इलाके से ही गुजरता है। हम इतिहास के उस पल में भी मौजूद हैं, जब पूरी दुनिया में बदलाव की हवा चल रही है जो इतनी तेज है जैसी कि पहले कभी नहीं थी।

एशिया के अलावा इस तरह के बदलाव की तेजी और कहीं नहीं देखी जा रही है। आज हमारे सामने कमजोर देशों, अंदरूनी तनावों, हथियारों की दौड़ और आतंकवादी गुटों के कारण रक्षा की कई चुनौतियां मौजूद हैं। प्रौद्योगिकी में जो विस्फोटक विकास हुआ है, उसके कारण भी रक्षा क्षमताएं बदल रही हैं। जैसे-जैसे हमारी निर्भरता साइबर और बाहरी आकाशीय क्षेत्र पर बढ़ेगी, नये तरह की चुनौतियां पैदा होंगी, जो सैन्‍य खतरा भी बन सकती हैं। एक तरफ जब पूरी दुनिया सिमट रही है और देशों की सरहदें मिट रहीं हैं, ऐसे समय में टकराव और प्रतिस्‍पर्धा का रूप भी बदल रहा है। इसलिए हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के साथ-साथ इस बात पर भी ध्‍यान देना होगा कि भारत की जो अंतर्राष्‍ट्रीय परिसंपत्तियां बढ़ रही हैं, उनकी भी रक्षा की जाए।

इन सभी चुनौतियों के होते हुए भी हमें अपने रणनीतिक अवसरों को भी समझना होगा। आज के पहले भारत की सुरक्षा कभी इतनी मज़बूत नहीं थी और हमारे राष्‍ट्रीय विकास के मद्देनजर हमारे अंतर्राष्‍ट्रीय रिश्‍ते भी इतने मददगार कभी नहीं थे। हमारे ठीक बगल में जो पड़ोसी देश उनके साथ हमारे संबंध बढ़े हैं। हमने एशिया-प्रशांत, हिन्‍द महासागर और पश्चिम एशियाई क्षेत्रों में अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूत किया है। आज प्रमुख ताकतों के साथ हमारे संबंध पहले के मुकाबले ज्‍यादा मजबूत और ज्‍यादा कारगर हैं। हम प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय मंचों पर भागीदारी कर रहे हैं। हमारी भागीदारी समूह-20, पूर्व एशिया शिखर वार्ता और आसियान जैसे मंचों पर हो रही है।

हमारा रक्षा सहयोग बढ़ा है और उच्‍च प्रौद्योगिकी, पूंजी तथा साझेदारी तक हमारी पहुंच पहले के मुकाबले अधिक है। हमने हिन्‍द महासागर क्षेत्र में स्थिरता कायम करने के लिए अपनी जिम्‍मेदारी को समझा है। हम ऐसी जगह पर स्थि‍त जहां से हम अपने बिल्‍कुल पड़ोस और उसके आगे के क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इन चुनौतियों और अवसरों से हमें अपनी सामरिक सोच तथा अपने उच्‍च रक्षा संगठनों का विकास करने का पूरा मौका मिल सकता है। यह बहुत जरूरी है कि हमारे रक्षा विशेषज्ञ जटिल माहौल से हमेशा परिचित बने रहे हैं। भारत में जो भारी बदलाव हो रहा है उसके नतीजों से भी हमारे रक्षा विशेषज्ञों को वाकिफ होना चाहिए। इस मौके पर मुझे जनरल सर विलियम फ्रांसिस बटलर की 19वीं सदी में कही हुई बात याद आ रही है। अँग्रेज़ जनरल चार्ल्‍स जॉर्ज गॉर्डन की जीवनी में बटलर ने लिखा था: अगर कोई देश इस बात की जिद करता है कि योद्धाओं और विचारकों के बीच एक विभाजक रेखा खींची जाए तो उसे यह मालूम होगा कि उसका युद्ध मूर्ख लड़ रहे हैं और कायर विचार कर रहे हैं।

इन हालात की पृष्‍ठभूमि में यह महान विश्‍वविद्यालय वजूद में आ रहा है। इसका मतलब यह यकीनी बनाना है कि हमारे देश, हमारी सरकार और हमारी सेनाओं को बेहतरीन सैन्‍य सलाहकार उपलब्‍ध हो सकें। इसका मतलब यह है कि हमारे सैनिक युद्ध की भौतिक कला के आगे सोच सकें और हमारे विचारक तथा नीति निर्माता युद्ध एवं टकराव की जटिलताओं को समझ सकें। इसका मतलब यह भी है कि हमारे रक्षा विशेषज्ञ देश की ताकत बढ़ाने वाले तत्‍वों की आपसी संबंधों को समझ सकें।

जो लोग इस विश्‍वविद्यालय की दहलीज पार करके बाहर आएंगे, उन्‍हें क्षेत्रीय और वैश्विक रूझानों, नई एवं उभरती हुई प्रौद्योगिकियों, रक्षा क्षमताओं और रणनीतियों के विकास को समझना होगा। उन्‍हें भावी टकरावों को भांपना होगा और रक्षा एवं वित्‍त, बाहरी एवं अंदरूनी रक्षा तथा रक्षा एवं कूटनीति के बीच के संबंधों को समझना होगा। इसके बाद ही वे स्‍वर्गीय डॉ. के. सुब्रह्मण्‍यम की दृष्टि को समझने में सफल हो पाएंगे। राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना का प्रस्‍ताव करते हुए डॉ. के. सुब्रह्मण्‍यम ने कहा था कि राष्‍ट्रीय सुरक्षा के अग्रणी लोगों को तैयार करने की बहुत जरूरत है ताकि वे सुरक्षा चुनौतियों को समझ सकें और उनके मद्देनजर नीतियां बना सकें।

इसलिए इस संस्‍थान से हमारी बहुत उम्‍मीदें हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि यह संस्‍थान हमारी उम्‍मीदों पर खरा उतरेगा। मुझे भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍वविद्यालय से पूरी उम्‍मीद है कि वह भारत का नेतृत्‍व करने वाली भावी पीढि़यों को प्रशिक्षण देने और उनकी अध्‍ययनशीलता को प्रोत्‍स़ाहित करने के एक बेहतरीन मंच के रूप में उभरेगा, ताकि वे भारत की रक्षा जरूरतों और हमारी अंतर्राष्‍ट्रीय जिम्‍मेदारियों को पूरा कर सकें। मुझे उम्‍मीद है कि यह विश्वविद्यालय व्‍यावसायिकता, सृजनात्‍मकता और ता‍र्किकता के ऊंचे मानदंडों को स्‍थापित करेगा। मुझे यकीन है कि यह रक्षा और नागरिक नेताओं के बीच नजदीकी संपर्क का माहौल भी तैयार करेगा।

एक बार फिर मैं यह कहना चाहता हूं कि इस पावन अवसर पर यहां आकर मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है और मेरा यकीन है कि यह विश्‍वविद्यालय बहुत जल्‍द रक्षा अध्‍ययन का महान केन्‍द्र बनेगा।''