भाषण [वापस जाएं]

March 7, 2013
नई दिल्‍ली


प्रथम टैगोर सांस्‍कृतिक सद्भावना सम्‍मान - 2012 प्रदान किए जाने के अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

आज राष्‍ट्रपति भवन में प्रथम टैगोर सांस्कृसतिक सद्भावना सम्‍मान - 2012 प्रदान किए जाने के अवसर पर प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह के संबोधन का मूल पाठ इस प्रकार है - प्रथम टैगोर सांस्कृसतिक सद्भावना सम्‍मान प्रदान किया जाना सामान्‍य तौर पर अपार हर्ष का अवसर रहा होता। आज जबकि हमारी भावनाएं इस वजह से बेहद उदासी से घिरी है, क्‍यों‍कि इस सम्‍मान से नवाजी जाने वाली पहली शख्सियत पंडित रविशंकर जी आज हमारे बीच नहीं है। इसलिए यह हमारे लिए खुशी और दुख का मिला-जुला अवसर है, जबकि हम देश के इस महान सपूत के जीवन को याद कर रहे हैं और उनकी सराहना कर रहे हैं।

आज, पंडित रविशंकर जी के निधन के महज तीन महीने बाद, किसी के पास भी कहने के लिए उससे ज्‍यादा नहीं है, जितना हमारे युग के इस महानतम संगीतज्ञ की प्रशंसा में पहले ही कहा जा चुका है। पंडित रविशंकर जी सिर्फ महान सितार वादक ही नहीं थे, वे भारत के बेमिसाल सांस्‍कृतिक राजदूत भी थे। वे भारत के संगीत को विश्‍व में ले गए और संगीत की एक बिल्‍कुल नई दुनिया हमारे देश में लाए। उन्‍होंने ‘ईस्‍ट मीट्स वेस्‍ट’ को संगीत के मायनों में साकार किया और इसलिए मैं उन्‍हें संगीत का दूत कहना पसंद करूंगा।

जब हम पंडित रविशंकर जी के जीवन की कई उपलब्धियों पर गौर करते हैं तो भारतीय संस्‍कृति के सबसे यादगार पहलुओं के साथ उनका जुड़ाव देखना अद्भुत है। अक्सर, यह भी लगता है कि मानो उनकी सफलता पहले से ही तय थी। उनका जन्‍म बनारस में हुआ, जो भारतीय संगीत के महान उद्गम स्‍थलों में से एक है। उनका शुरूआती प्रशिक्षण हिंदुस्‍तानी शास्‍त्रीय संगीत की प्रतिष्ठित हस्तियों में से एक उस्‍ताद अलाउद्दीन खां सहाब की सतर्क निगहबानी में हुआ। ‘सारे जहां से अच्‍छा’ गीत उनकी शुरूआती रचनाओं में से था। यह गीत दुनियाभर में बसे सभी भारतीय के होठों पर मुस्‍कान ले आता है। सितार की महारत ने पंडित रविशंकर जी को भारतीय संगीत वाद्यों की व्‍यवस्‍था का इस्‍तेमाल करते हुए ऑल इंडिया रेडियो के लिए ऑरक्रेस्‍ट्रल संगीत तैयार करने जैसा चुनौतीपूर्ण काम शुरू करने में सक्षम बनाया। आईकॉनिक संगीत और आईकॉनिक फिल्‍म निर्माण उस समय एक साथ आ गए, जब पंडित जी ने सत्‍यजीत रे की कई फिल्‍मों के लिए संगीत रचना की।

पंडित रविशंकर के सितार की तारों के माध्‍यम से भारतीय शास्‍त्रीय संगीत ने दुनिया के कोने-कोने की यात्रा की। रविशंकर जी की ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ और कॉन्‍सर्ट फॉर बांग्‍लादेश’ एलबमों ने विश्‍वभर के संगीत प्रेमियों को सम्‍मोहित कर दिया। बीटल्‍स के साथ उनका सहयोग और उनके संगीत पर रविशंकर जी का प्रभाव भी मेरे लिए जाना-माना है। जिसे मैं यहां याद कर रहा हूं। उनकी समकालीन महान हस्तियों और मित्रों में से एक, महान वायलिन वादक येहूदी मेनुहीन का पंडित रविशंकर के साथ अपने रिश्‍तों के बारे में चर्चा करते हुए जो कहना था उसका मैं यहां उल्‍लेख कर रहा हूं, ‘एक शिक्षक के नाते, मैं उनसे बेहतर किसी को नहीं जानता। अपनी कला के प्रति उनका पूर्ण समर्पण शुद्ध संगीत रचना से कहीं आगे था। रवि के लिए समस्‍त मानवीय गतिविधियां, खाना, नृत्‍य करना, एक्‍सरसाइज करना, एक सांकेतिक मूल्‍य से व्‍याप्‍त थीं, जो दृष्टिकोण से परे थीं और इसलिए यह सभी उनके अपने अंदाज में एक दिव्‍य अर्पण की तरह थी।

प्रथम टैगोर सांस्कृसतिक सद्भावना सम्‍मान पंडित रविशंकर जी को प्रदान किया जाना ही सबसे उपयुक्‍त है। इसका उद्देश्‍य उन महान पुरूषों और नारियों का सम्‍मान करना है, जिन्‍होंने कला के किसी भी क्षेत्र में अपने कार्यों के माध्‍यम से भारतीय संस्‍कृति की महानता को समृद्ध किया है और सार्वभौमिक भाई-चारे के मूल्‍यों को बढ़ावा दिया है। पंडित रविशंकर जी को जीवनभर दुनिया के कई पुरस्‍कारों से नवाजा गया। इनमें भारत का सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान ‘भारत रत्‍न’ भी शामिल था, जिससे उन्‍हें 1999 में सम्‍मानित किया गया। लेकिन मुझे पक्‍का यकीन है कि उन्‍होंने एक ऐसे महान भारतीय की याद में पहली बार सम्‍मानित होने को बेहद सराहा होता, जो उन्‍हीं की तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और पंडित रविशंकर के समान ही उन्‍होंने भी सार्वभौमिक मानवता के संदेश को प्रतिपादित किया। इसलिए यह सम्‍मान न सिर्फ पंडित रविशंकर की असाधारण उपलब्धियों के लिए उपयुक्‍त श्रद्धांजलि है, बल्कि गुरूदेव रवीन्‍द्रनाथ ठाकुर की पवित्र याद भी है।

देवियो और सज्‍जनो मुझे इस बात का गहरा दुख है कि पंडित रविशंकर जी आज हमारे बीच नहीं हैं और अपनी बीमारी की वजह से वे स्‍वयं पहले इस सम्‍मान को स्‍वीकार करने के लिए नहीं आ सके थे, लेकिन मुझे इस बात की थोड़ी तसल्‍ली भी है कि सुकन्‍या जी और उनकी पुत्री इस अवसर की शोभा बढ़ाने के लिए आज यहां हमारे बीच हैं। पंडित रविशंकर भले ही दुनिया में न हो, लेकिन उनकी विरासत – उनके संगीत और उनकी रचनाओं के माध्‍यम से सदैव विद्यमान रहेगी। रवि जी की संगीत रचना का अवलोकन करने से विश्‍व एक बेहतर स्‍थान है। इसके लिए हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे। मैं उनकी याद को सलाम करता हूं और भारत के इस महान सपूत को मैं अन्‍य असंख्‍य लोगों के साथ श्रद्धांजलि देता हूं।