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February 5, 2013
नई दि‍ल्‍ली


राष्ट्रपति भवन में आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण

राष्ट्रपति भवन में आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के भाषण का विवरण इस प्रकार हैः-

मैं राष्ट्रपति जी को इस सम्मेलन के आयोजन की पहल के लिए धन्यवाद देता हूं। मुझे विश्वास है कि आज चर्चा के दौरान उनके नेतृत्व, ज्ञान और व्यापक अनुभव का हम सभी को लाभ होगा।

मुझे जानकारी मिली है कि ऐसा पहला सम्मेलन 2003 में हुआ था। बीते एक दशक में हमारे देश का शैक्षिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। यह बदलाव शिक्षा के सभी क्षेत्रों – प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास में हुआ है। आज हमारे सामने नई चुनौतियों के साथ नए अवसर भी हैं। हमारी सामूहिक जिम्मेदारी ऐसी शिक्षा प्रणाली बनाने की है जो 21वीं सदी में भारत में आधुनिक, समृद्धशाली और प्रगतिशील अर्थव्यवस्था और समाज बनाने में सहायक हो।

मेरा विश्वास है कि हमारी सरकार ने शिक्षा को उचित महत्व दिया है। हमने शिक्षा तक पहुंच का विस्तार इस तरह किया है, जो पहले नहीं था। हमने पहले की तुलना में शिक्षा में अधिक निवेश किया है। शिक्षा के लिए कुल परिव्यय 10वीं योजना के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 11वीं योजना में 19.4 प्रतिशत हो गया। हमने देश के विभिन्न भागों में शिक्षा के क्षेत्र में समरूपता लाने, छात्रवृत्ति बढ़ाने और संस्थाएं स्थापित करने का प्रयास किया है। जिस तरह 11वीं योजना में शिक्षा पर जोर दिया गया, उसी के कारण मैं अक्सर 11वीं योजना का शिक्षा योजना के रूप में उल्लेख करता हूं।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हमने विशेष प्रयास किए हैं, जिनमें 2004 के बाद अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। 11वीं योजना में हमारी सरकार ने 51 संस्थानों की स्थापना की, जो किसी भी योजनावधि के मुकाबले सबसे अधिक हैं। इनमें केंद्रीय विश्वविद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) शामिल हैं।

वर्ष 2004-05 के बाद केंद्रीय विश्वविद्यालयों की संख्या दोगुनी से अधिक यानि 17 से बढ़कर 44 हो गई है। गोवा को छोड़कर, जहां की सरकार नहीं चाहती थी, हर राज्य में कम से कम एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। वर्तमान केंद्रीय संस्थानों को, सामान्य सीटों की संख्या को प्रभावित किए बिना, अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए विशेष वित्तीय सहायता दी गई।

वर्ष 2004-05 में आईआईटी संस्‍थानों की संख्या 7 से बढ़कर 16 और आईआईएम संस्‍थानों की संख्या 6 से बढ़कर 13 हो गई। पांच नए आईआईएसईआर स्थापित किए गए। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या भी दोगुनी होकर 4 हो गई है। हमने उच्च शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दिया है। आईसीटी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन का उद्देश्य विश्वविद्यालयों और कालेजों को हाईस्पीड ब्राडबैंड से जोड़ना, विभिन्न विषयों में ई-सामग्री विकसित करना और कम लागत में उपकरण उपलब्ध कराना है। लगभग 400 विश्वविद्यालयों और 19000 कालेजों को मिशन के तहत कनेक्टिविटी प्रदान की जा चुकी है।

उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्‍य से हमने कदम उठाए हैं और इन प्रयासों के नतीजे भी सामने आए हैं। उच्च शिक्षा प्राप्‍त करने वालों की संख्या 11वीं योजना में 16.6 करोड़ से बढ़कर 25.9 करोड़ हो गई । उच्च शिक्षा प्राप्‍त करने वालों का अनुपात 2006-07 के 12.3 प्रतिशत से बढ़कर 2011-12 में 17.9 प्रतिशत हो गया। लेकिन यह विश्व के 26 प्रतिशत के औसत से अब भी बहुत कम है।

आगे का मार्ग क्‍या है? 12वीं योजना में पिछले दस वर्षों के दौरान प्राप्‍त गति को अगले पांच वर्षों में भी जारी रखने और उत्‍कृष्‍टता पर लगातार ध्‍यान रखने पर जोर दिया गया है। उच्‍च शिक्षा की बढ़ती मांग को ध्‍यान में रखते हुए उच्‍च शिक्षा प्रणाली का विस्‍तार करना आवश्‍यक है, लेकिन गुणवत्‍ता में सुधार लाए बिना शिक्षा के विस्‍तार का कोई लाभ नहीं है। हमें अब गुणवत्‍ता पर अधिक ध्‍यान देना होगा। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे अधिकतर उच्‍च शिक्षा संस्‍थान अपेक्षित स्‍तर के नहीं हैं। उनमें से अधिकतर हाल के वर्षों में विश्‍व में तेजी से हुए परिवर्तनों के अनुरूप बदलाव नहीं ला पाए हैं। वे अभी भी उन विषयों में स्‍नातक तैयार कर रहे हैं, जिनकी रोजगार बाजार में कोई मांग नहीं है।

यह हमारे लिए गंभीर सोच का विषय है कि आज विश्‍व के 200 शीर्ष विश्‍वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्‍वविद्यालय शामिल नहीं है।

हमारे उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में गुणवत्‍ता सुधारना और उत्‍कृष्‍टता को बढ़ावा देना एक गंभीर चुनौती है, जिसका हमें मिल-जुलकर सामना करना चाहिए। हमारी उच्‍च शिक्षा प्रणाली की अक्‍सर शिक्षकों और छात्रों, दोनों के लिए अनावश्यक रूप से कठोर होने के लिए आलोचना की जाती है। मैं समझता हूं‍की यह पता लगाना आवश्‍यक है कि हम कैसे अपने संस्‍थानों में लचीलापन लागू करें, ताकि वे अच्‍छे शिक्षकों को आकर्षित करने, शिक्षा स्‍तरों को ऊंचा करने, अतिआधुनिक अनुसंधान को प्रोत्‍साहित करने और प्रतिभा विकसित करने में समर्थ हो सकें। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस सम्‍मेलन की कार्य सूची में एक बिन्‍दु केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्‍ता सुधरने और अच्‍छे शिक्षकों के विकास के बारे में है। मुझे पूर्ण आशा है कि आगामी विचार-विमर्श में इस बारे में कुछ अच्‍छी सिफारिशें सामने आएंगी।

हम जैसे आगे बढ़ेंगे, तो हमें शिक्षा में समरूपता के बारे में चिंता को भी ध्‍यान में रखना होगा। हम राज्‍यों, क्षेत्रों और अपने समाज के सभी वर्गों में असंतुलनों को दूर करने के लिए काम करेंगे। हम उच्‍च शिक्षा के क्षेत्र में समरूपता लाने से संबंधित अपनी योजनाओं को कारगर बनाएंगे, उन पर बेहतर ध्‍यान देंगे और उनके लिए अधिक बजट सहायता उपलब्‍ध कराएंगे।

देशभर में उच्‍च शिक्षा के लिए मानक स्‍थापित करने में केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । हम चाहते हैं कि यह विश्‍वविद्यालय आदर्श और प्रतिमान स्‍थापित करें और आसपास के क्षेत्र में उच्‍च शिक्षा के अन्‍य संस्‍थानों को मजबूती प्रदान करने में योगदान दें । दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित कुछ केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय हमारे देश में शैक्षिक असंतुलनों को दूर करने में भी योगदान दे सकते हैं। हम केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों से गुणवत्‍ता वाले शीर्ष संस्‍थान बनने की उम्‍मीद रखते हैं और चाहते हैं कि 12वीं योजना में सभी केन्‍द्रीय संस्‍थान वैसे बनें।

आपके सामने बहुत अच्‍छी तरह से सोची गई कार्य सूची रखी गई है। केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में गुणवत्‍ता और संकाय विकास के मुद्दों के इनमें आसपास क्षेत्रों में विस्‍तार कार्य के माध्‍यम से शिक्षा की पहुंच का प्रसार करने के लिए आवश्‍यक कदम भी शामिल हैं। इनकी भूमिका का एक महत्‍वपूर्ण भाग है और सरकार चाहती है कि वे इस जिम्‍मेदारी को निभाएं। मैं आप सभी से उन नये तरीकों के साथ सामने आने का अनुरोध करता हूं, जो ज्ञान के प्रसार, नवीकरण को प्रोत्‍साहित करने, पर्यावरण को संरक्षित करने और कौशल विकास के द्वारा अपने विश्‍वविद्यालय के आसपास के क्षेत्र में लोगों को लाभ पहुंचा सकें।

यहां एकत्र केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों के कुलपति प्रतिभा के बड़े समूह का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। आप सब देश में उच्‍च शिक्षा के क्षेत्र में जानेमाने बुद्धिजीवी हैं। मुझे विश्‍वास है कि आगामी विचार-विमर्श में आप केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में शिक्षा और अनुसंधान का स्‍तर सुधारने के नये और अभिनव तरीकों को खोजने में अपनी योग्‍यता और विशेषज्ञता का उपयोग करेंगे। मैं एक बार फिर राष्‍ट्रपति जी को इस पहल के लिए धन्‍यवाद देता हूं। मेरी कामना है कि उच्‍च शिक्षा के उद्देश्‍य के लिए आप सब उपयोगी विचार विमर्श करें और अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त करें।