भाषण [वापस जाएं]

October 12, 2012
नई दिल्‍ली


सूचना आयुक्‍तों के वार्षिक सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज नई दिल्‍ली में सूचना आयुक्‍तों के सातवें वार्षिक सम्‍मेलन को संबोधित किया। प्रधानमंत्री के भाषण का आलेख नीचे दिया जा रहा है-

हमारे देश में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुए सात वर्ष हो चुके हैं। किसी भी नजरिये से देखें, इसने सार्वजनिक अधिकारियों के काम में ज्‍यादा पारदर्शिता और ज्‍यादा जवाबदेही सुनिश्चित की है। मेरे विचार में इस बात से देश का भला हुआ है कि इसके जरिये अब सरकार के कार्यों की सार्वजनिक रूप्‍से ज्‍यादा छानबीन हो पाती है। मैं उन सभी लोगों को बधाई देता हूं जो इस बहुत ही महत्‍वपूर्ण कानून, सूचना के अधिकार अधिनियम से पिछले सात वर्षों से इसे कार्यान्वित करने से जुडे रहे हैं।

पिछले एक वर्ष के दौरान इस कानून के तहत केंद्र सरकार के प्राधिकारियों से लगभग 10 लाख लोगों ने देश के सभी क्षेत्रों में सूचना मांगी। आज, हर जगह नागरिक इस सूचना के अधिकार कानून के तहत अपने को सशक्‍तीकृत समझते हैं। यह सरल और जटिलतारहित कानून है जिसे समझना और इस्‍तेमाल करना आसान है और मेरे विचार में यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।

सूचना के अधिकार की सफलता का एक सूचक यह है कि केंद्र सरकार के अधिकरियों के समक्ष आए सिर्फ 4.5 प्रतिशत आवेदन ही सूचना आयुक्‍तों के पास भेजे जाते हैं। अनुमान लगाया गया है कि हर साल औसतन 20 हजार अपीलें और शिकायतें केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा निपटाई जाती हैं और इनमें से कुछ सौ को ही अदालतों में चुनौती दी जाती है।

इसके सफल होने के बावजूद, मेरा विश्‍वास है कि अपने देश में सूचना का अधिकार अब भी विकसित हो रहा है। यह अच्‍छी संभावनाओं का संकेत है कि जैसा वर्तमान स्थिति से संकेत मिल रहे हैं इसका रचनात्‍मक इस्‍तेमाल हो रहा है लेकिन इसकी संभावित उपयोगिता से अपने आप ही लाभ नहीं मिल जायेंगे। इसके रास्‍ते में आडे आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए जमकर कोशिशें करनी होंगी, तभी यह प्रभावी सिद्ध हो पायेगा। जिस तरह से वर्तमान में इसका इस्‍तेमाल किया जा रहा है उससे कुछ स्‍पष्‍ट चिंताओं के संकेत मिलते हैं। पिछले साल भी इस सम्‍मेलन को मैंने संबोधित किया था और तब उनमें से कुछ की चर्चा की थी। इस अधिनियम के अंतर्गत सूचनायें मांगना और खास तौर से ऐसी सूचनाएं मांगना जिनसे कोई सार्वजनिक उद्देश्‍य पूरा नहीं होता, चिंता की बात है। कभी-कभी बहुत लंबे समय तक की सूचनायें जिनमें बहुत बड़ी संख्‍या में मामले शामिल होते हैं, मांगी जाती हैं। ये मामले युक्तिसंगतता में गलती ढूंढने अथवा आलोचना करने के लिए इस्‍तेमाल किये जाते हैं। ऐसे मामले सामाजिक रूप से उत्‍पादक उद्देश्‍य नहीं पूरे करते और इनके कारण सार्वजनिक अधिकारियों के संसाधन और उनका बहुमूल्‍य समय नष्‍ट होता है। यही समय किसी बेहतर इस्‍तेमाल के लिए लगाया जा सकता है। सूचना के लिए ऐसे अनुरोध भी सामने आये हैं, जिनकी उच्‍चतम न्‍यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग ने कटु आलोचना की है।

उन बातों पर भी चिंता प्रकट की गई है जिनके कारण सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना देने से व्‍यक्तिगत निजता भंग होने की संभावना बनती है। सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार के बीच एक सूक्ष्‍म संतुलन बनाये जाने की जरूरत है। निजता का अधिकार जीवन और स्‍वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुडा हुआ है। किसी नागरिक का जानने का अधिकार निश्‍चय ही तब भंग होगा जब कोई मांगी गई सूचना किसी की व्‍यक्तिगत निजता का उल्‍लंघन करती हो। लेकिन जटिल प्रश्‍न यह है कि इसकी विभाजक रेखा कहां खींची जाये। मुझे खुशी है कि इस सम्‍मेलन में ‘’निजता और प्रकटन’’ जैसे मुद्दों पर अलग से सत्र रखा गया है जो मुझे उम्‍मीद है कि उपयोगी और रचनात्‍मक सिफारिशें देगा। इस मुद्दे और निजता पर अलग से एक कानून बनाने पर न्‍यायमूर्ति ए पी शाह की अध्‍यक्षता में अलग से एक समूह विचार कर रहा है।

और भी अनेक मुद्दे हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ के आधार पर गठित संगठन कितनी जानकारी देने को सहमत किये जायें। अगर इस अधिनियम को इन संस्‍थाओं तक बिना सोचे समझे विस्‍तारित किया गया तो ये निकाय सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के साथ भागीदारी करने से हिचकिचाएंगे। दूसरी तरफ, अगर इन्‍हें बिना सोचे-समझे इस कानून के दायरे से बाहर कर दिया गया तो इससे सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों की जवाबदेही कम हो सकती है। मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि यह सम्‍मेलन इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करके कोई रास्‍ता निकालने पर चर्चा करेगा।

मुझे पता है कि उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा हाल ही में केंद्रीय और राज्‍य सूचना आयोगों के गठन संबंधी आदेश के निहितार्थों को लेकर कुछ भ्रम पैदा हुआ है। जैसा कि आप सबको मालूम ही होगा, सरकार ने इस मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय से आदेश की समीक्षा का अनुरोध करने का फैसला किया है।

सार्वजनिक अधिकारियों को सूचना के अधिकार के कार्यान्‍वयन में कुछ सुधार लाने की दिशा में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभानी है। सूचना तक पहुंच प्रस्‍तुत करने से कुछ खर्च भी जुड़े हैं। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि इन खर्चों को कम से कम किया जाये। कर्मचारियों को बेहतर प्रशिक्षण, आधुनिक टैक्‍नोलॉजी का ज्‍यादा इस्‍तेमाल और अधिकतम सूचना बिना मांगे ही दे देना लोगों को सूचना तक पहुंच का अधिकार देने के उपयुक्‍त उपाय हैं। अनेक स्‍थानों पर इस अवधारणा को बदलने की जरूरत भी पड़ सकती है कि सूचना के अधिकार को एक बाधक तत्‍व नहीं, बल्कि सामूहिक कल्‍याण का एक अंग माना जाना चाहिए।

यह बात भी सच है कि अधिकार सिर्फ अधिकार ही नहीं होते, बल्कि उनके बदले कुछ कर्त्‍तव्‍य भी निभाने होते हैं। मैंने 2008 में इसी सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए इनका जिक्र किया था कि अपने अधिकार मांगते समय हमें अपनी प्रतिबद्धताओं और जिम्‍मेदारियों के प्रति भी बराबर सचेत रहने की जरूरत है। मेरा विश्‍वास है कि हम सभी की यह जिम्‍मेदारी बनती है कि सूचना के अधिकार अधिनियम को बढावा देना हम सबका उत्‍तरदायित्‍व है। इस महत्‍वपूर्ण कानून का इस्‍तेमाल किसी की आलोचना करने, मजाक बनाने अथवा सार्वजनिक अधिकारियों को नीचा दिखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्‍य ज्‍यादा पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्‍साहित करना, सूचनाओं का प्रसारण और नागरिकों को सूचित और सचेत करना होना चाहिए। मेरे विचार में यह वक्‍त की जरूरत है और हम सबको मिलकर ऐसा माहौल बनाना है जहां हर नागरिक सरकार को अपना विरोधी नहीं बल्कि भागीदार समझे।

सूचना का अधिकार अधिनियम उन अनेक उपायों में से एक है जिसे हमारी सरकार ने भ्रष्‍टाचार नियंत्रण, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने और लोगों को दी जाने वाली सेवाओं में सुधार लाने के लिए किये हैं। इस दिशा में अन्‍य जो महत्‍वपूर्ण कानून प्रस्‍तावित हैं उनमें व्हिसल ब्‍लोअर्स प्रोटेक्‍शन बिल, समयबद्ध तरीक से सामान और सेवाओं की सुपुर्दगी और शिकायत निवारण विधेयक और इलैक्‍ट्रॉनिक रूप से सेवाओं की सुपुर्दगी विधेयक शामिल हैं और इन सभी पर संसद द्वारा विचार किया जा रहा है। हमने एक राष्‍ट्रीय सांख्यिकी और पहुंच नीति भी बना दी है। हाल ही में हमने सार्वजनिक खातों से लाभार्थियों तक सरकारी स्‍कीमों के पैसे उनके खातों तक पहुंचाने को आसान बनाने के भी उपाय किये हैं। इससे पैसे की बर्बादी रुकेगी और नागरिकों के लिए सरकारी सहायता प्राप्‍त करना आसान हो जायेगा।

मेरा विश्‍वास है कि सूचना के अधिकार अधिनियम का उपयोग हमारे देश और हमारी जनता को लाभान्वित करने के बेहतर नतीजों के लिए किया जा सकता है। यह याद रखने की बात है कि इस कानून का उद्देश्‍य सरकार के काम में कुशलता बढाना और जनता की बेहतर सेवा करना है। मुझे उम्‍मीद है कि आप सब इस सम्‍मेलन का इस्‍तेमाल इस उद्देश्‍य को प्रभावी ढंग से पूरा करने में करेंगे। मैं आप सबको इस काम में सफलता की कामना करता हूं।