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September 26, 2012
नई दिल्ली


वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के स्थापना दिवस समारोह पर नई दिल्ली में आज प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संबोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है-

"वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के 70वें स्थापना दिवस के अवसर पर आप लोगो के बीच आकर मुझे बेहद खुशी है। डॉ. ब्रह्मचारी ने परिषद के साथ मेरे एक विशिष्ट रिश्ते का मुझे अभी स्मरण कराया.......हम दोनों का जन्म 26 सितंबर को हुआ। इस खास दिन मेरी प्रथम सार्वजनिक उपस्थिति के रुप में विज्ञान जगत से जुडे पुरुषों और महिलाओं की इस प्रतिष्ठित सभा से बेहतर संगत के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता।

आप लोगों के सहयोग से मैं परिषद के साथ अपने रिश्ते को और आगे बढ़ा पाया हूं। डॉ. शांति स्वरुप भटनागर, एक ऐसे महापुरुष जिनकी स्मृति को हम आज संजोए हुए हैं, वह सीएसआईआर राष्ट्रीय प्रयोगशाला की श्रृंखला के निर्माण के स्वप्न के साथ लाहौर से इस शहर में आए। स्वतंत्र भारत में एक नवीन शुरुआत के बेहद विनीत स्वप्न के साथ मैने उनका अनुसरण किया, हालांकि विभाजन की त्रासदी और अव्यवस्था के माहौल में यह स्वप्न सच्चाई में तब्दील होने से परे था। "

विभाजन हमारे व्यक्तिगत नुकसानों से कई मायनों में कहीं अधिक हृदय विदारक राष्ट्रीय त्रासदी थी। मुश्किलों से भरे उन दिनों में भारत की गरीबी, व्यापक अज्ञानता, महामारी और पूर्ववर्ती पांच दशकों की निष्क्रिय अर्थव्यवस्था के साथ भारत की प्रगति को नकारना बेहद आसान था।

परंतु हम भाग्यशाली थे कि हमें जवाहरलाल नेहरु जैसे पथ प्रदर्शक मिले जिन्होंने भारत के विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का पथ चुना और डॉ भटनागर जवाहरलाल नेहरु के दृष्टिकोण को क्रियान्वित करने की विशिष्ट सांगठनिक योग्यता तथा क्षमता वाले वैज्ञानिक थे।

वैज्ञानिक अनुसंधान की क्षमता को पहचानते हुए जवाहरलाल नेहरु ने परिषद को अपने व्यक्तिगत प्रभार के तहत रखा और इस परंपरा को आगे आने वाले प्रधानमंत्रियों ने जारी रखा। विज्ञान हमेशा ही हमारे नीति निर्धारकों की प्रमुख वरीयता में रहा है। इस विशिष्ट संगठन के राष्ट्र की सेवा में समर्पण के सातवें दशक में इसकी अध्यक्षता करना मेरी खुशकिस्मती है।

मुझे खुशी है कि राष्ट्रीय नीतियों और राष्ट्रीय वरीयताओं के अनुसार भारत के विकास के हर चरण में इस परिषद ने अपनी पेशेवर क्षमता को साबित किया है। कमी और संसाधनों की मुश्किल स्थितियों का सामना करते हुए हमारे औद्योगिक आधार का पुनर्गठन करते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरुआती दिनों में यह आयात विकल्पों में माहिर रहा। जब भारत प्रौद्योगिकी अलगाव का शिकार हुआ तब भारत के प्रथम सुपर कंप्यूटर, विकिरण रक्षक शीशे और एयरोस्पेस तथा उपग्रकह घटकों जैसे उन्नत उत्पादों और प्रोद्योगिकियों का निर्माण करते हुए सीएसआईआर प्रयोगशालाएं हमारे सामरिक क्षेत्र में विश्वसनीय साझेदार के रुप में उभरी। इस दौरान परिषद ने भारत को प्रमुख जेनेरिक दवा उत्पादक के रुप में स्थापित किया।

भारत में वैश्विकरण तथा आर्थिक सुधारों और विश्व व्यापार संगठन का हिस्सा बनने के पश्चात सीएसआईआर जल्द ही हमारे देश की बौद्धिक संपदा आंदोलन के प्रमुख भागीदार के रुप में उभरा और अमेरिकी तथा यूरोपियाई पेटेंटों का एकमात्र सबसे बडा धारक बना। हाल के वर्षों में जैव प्रौद्योगिकी और डीएनए उत्पादों के क्षेत्रों में परिषद विश्व में अग्रणी स्थान रखता है।

मुक्त स्रोत दवा खोज की शक्ति की पहचान कर किफायती स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में विशिष्ट प्रयास के लिए मैं खास तौर पर परिषद की सराहना करना चाहूंगा। एक अवधारणा के रुप में यह विश्व में प्रथम पहल थी और शुरुआत में आशंका के बाद अब यह विश्व भागीदारी तक पहुंच गया है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि टीबी और मलेरिया जेसे अब तक उपेक्षित रहे रोगों के लिए दवा की खोज में तेजी के लिए परिषद ने अपने पेटेंट का द्वारा खोला है।

अपने देश के लिए विज्ञान के क्षेत्र में हम वैश्विक उत्कृष्टता और प्रतिस्पर्धी बढ़त का ध्येय रखते है किंतु परिषद को हमारे देश में विज्ञान के संदर्भ में उस दृष्टिकोण से दिशारहित नहीं होना चाहिए जिसकी चर्चा जवाहरलाल नेहरु ने 1947 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में की थी।

उन्होंने कहा था, "विज्ञान को भारत के 400 मिलियन लोगों के संदर्भ में विचार करना चाहिए।" मुझे खुशी है कि परिषद अपनी परियोजनाओं के चयन और क्रियान्वयन में देश के सामाजिक परिवेश के प्रति दृढ़ स्थापित रहा है। मैं हाल के सीएसआईआऱ 800 कार्यक्रम की सराहना करता हूं जिसका उद्देश्य हमारे आर्थिक ढांचे के निम्नतम स्तर पर रह रहे लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए किफायती वैज्ञानिक आविष्कार करना है। अक्षय उर्जा, जल, पर्यावरण और अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार के प्रति परिषद का रुझान हमारे देश के समक्ष मौजूदा चुनौतियों के प्रति उसकी जागरुकता दर्शाता है।

हाल के समय में पारंपरिक वैज्ञानिक शाखाएं और नजरिया जटिल विकासात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए काफी नही है। पारंपरिक सीमाओं से आगे नवीन शाखाएं सामने आ रही है। नवनिर्मित वैज्ञानिक और नवाचार अनुसंधान अकादमी सीएसआईआर के संपूर्ण संसाधनों और अवसंरचना का इस्तेमाल करते हुए हमारे युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के कौशल प्रशिक्षण का वादा करता है। यह एक अच्छी पहल है और मैं इसके जल्द नतीजो की ओर आशावान हूं।

पिछले सप्ताह परिषद के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटेड बायोलॉजी के नवीन परिषद का उद्घाटन करते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान में सार्वजनिक निजी भागीदारी की शक्ति और क्षमता से मैं काफी प्रभावित हुआ। मुझे बताया गया है कि सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में नवाचार परिसर जैसे नवीन परितंत्र का निर्माण किया जा रहा है ताकि उद्योग, शैक्षणिक समुदाय और अन्य अनुसंधान और विकास संस्थानों की साझेदारी के ज़रिए नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके। भारतीय उद्योगों की ज़रुरत की पहचान और सीएसआईआर के युवा प्रतिभाओं के तेज विचारों का उपयोग करने के लिए प्रणाली तैयार की गयी है। अतिरिक्त उत्पादों औऐर नवीन उपक्रमों के निर्माण के लिए युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए परिषद ने नीतियों की घोषणा की है। इसके अलावा लघु और मझौले उद्यमों को प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करने के लिए यह राष्ट्रीय नवाचार परिषद के साथ साझेदारी कर रहा है।

हालांकि अपनी इन सभी उपलब्धियों के साथ हम यही पर रुक नहीं सकते। एक राष्ट्र के रुप में हम वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में निजी निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत तक नहीं ला सके हैं। हम अपने विशाल वैज्ञानिक मानवशक्ति का प्रभाव विश्व स्तर के अनुपात में स्थापित नहीं कर सके है। इसलिए सीएसआईआर को आने वाले वर्षों में इन राष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए स्वयं को समर्पित करना होगा। इसे विज्ञान, आभांयत्रिकी और प्रौद्योगिकी में राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान करना होगा।

इस यात्रा में यहां पर उपस्थित बहुत से युवा लोग राष्ट्र की आशा और भविष्य हैं। पुरस्कार प्राप्त करने वालों की प्रतिभा, कार्य के प्रति उनके समर्पण तथा भारतीय विज्ञान के लिए उनकी महत्वकांक्षाओं के लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं। युवा वैज्ञानिकों को बडा सोचना चाहिए और निराशा को बाधक नहीं बनने देना चाहिए। मैं उन्हें डॉ. शांति स्वरूप भटनागर के अनुकरणीय दृढ़ संकल्प और निःस्वार्थ देशभक्ति का स्मरण कराना चाहूंगा जिसकी बदौलत हमारे महान देश के श्रेष्ठ वैज्ञानिक संस्थानों में से एक- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की स्थापना हुई।

इन शब्दों के साथ मैं आप सभी को सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।

जय हिंद।"