भाषण [वापस जाएं]

August 27, 2012
नई दिल्‍ली


कोल ब्लॉकों के आवंटन और कोयला उत्पादन बढ़ाने पर कार्य-निष्पादन लेखा परीक्षा रिपोर्ट के संबंध में संसद में प्रधान मंत्री का वक्तव्य

1. मैं कोल ब्लॉक आवंटन के मुद्दों पर वक्तव्य देने के लिए सदन की सम्मति चाहता हूं। ये मुद्दे प्रेस में काफी चर्चा में रहे हैं और इन पर कई माननीय सदस्यों ने भी चिंता जताई है।

2. ये मुद्दे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट के सदन पटल पर रखे जाने और उसे लोक लेखा समिति को भेजे जाने से उठे हैं। कैग की रिपोर्ट पर सामान्यतः लोक लेखा समिति में विस्तारपूर्वक चर्चा होती है, जब संबंधित मंत्रालय उठाए गए मुद्दों पर जवाब देता है। इसके बाद लोक लेखा समिति लोक सभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है और इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होती है।

3. जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं उन्हें देखते हुए और क्योंकि रिपोर्ट में उल्लिखित अवधि में से कुछ समय के लिए मेरे पास कोयला मंत्री का प्रभार था, मैं इस स्थापित प्रक्रिया से हटकर अपनी बात रखने के लिए सदन की सम्मति चाहता हूं। मैं माननीय सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि प्रभारी मंत्री होने के नाते मैं मंत्रालय के निर्णयों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं यह कहना चाहता हूं कि अनियमितताओं के जो भी आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं।

4. कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 में संशोधन के बाद 1993 में कैप्टिव(captive) उपयोग के लिए निजी कंपनियों को कोल ब्लॉकों का आवंटन शुरु किया गया। यह आवंटन निश्चित उद्देश्यों के लिए निजी निवेश आकर्षित करने के प्रयोजन से किया गया। जैसे-जैसे हमारी अर्थ-व्यवस्था का विकास हुआ, कोयले की मांग भी बढ़ी और यह स्पष्ट हो गया कि अकेले कोल इंडिया लिमिटेड इस बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर पाएगा।

5. साल 1993 से एक अंतर मंत्रालयी जांच समिति की सिफारिशों के आधार पर कैप्टिव(captive) कोल ब्लॉकों का आवंटन किया जा रहा था। इस समिति में राज्य सरकारों के भी प्रतिनिधि थे। कोल ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदकों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र सरकार ने आवंटन में पारदर्शिता और एकसमानता लाने के लिए 2003 में दिशानिर्देशों का एक समेकित सेट तैयार किया।

6. कोयला एवं कैप्टिव(captive) कोल ब्लॉकों की तेज़ी से बढ़ती मांग को देखते हुए यूपीए-1 सरकार ने पहली बार जून 2004 में प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से आवंटन करने पर विचार किया।

7. कैग की रिपोर्ट में आवंटन पर आपत्ति मुख्यतः तीन कारणों से की गई है। प्रथम – जांच समिति ने कोल ब्लॉकों के आवंटन के लिए सिफारिश करते समय पारदर्शी और निष्पक्ष पद्धति नहीं अपनाई।

8. दूसरा, रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मौजूदा प्रशासनिक अनुदेशों में संशोधन करके वर्ष 2006 में ही प्रतिस्पर्धी बोली शुरु की जा सकती थी। इसके बजाए कानूनी जांच की लंबी प्रक्रिया अपनाई गई जिससे निर्णय लेने में विलंब हुए।

9. अंत में, रिपोर्ट में यह उल्लेख है कि प्रतिस्पर्धी बोली शुरू करने में विलम्ब के कारण मौजूदा प्रक्रिया से कई निजी कंपनियों को फायदा हुआ। कैग द्वारा की गई धारणा और गणना के अनुसार निजी पार्टियों को लगभग 1.86 लाख करोड़ रूपये का आर्थिक लाभ हुआ।

10. कैग की टिप्पणियां स्पष्ट रूप से विवादास्पद हैं।

11. निजी पार्टियों को कोल ब्लॉक आवंटित करने की नीति, जिस पर कैग ने आपत्ति की है, यूपीए द्वारा शुरू की गई कोई नई नीति नहीं थी। यह नीति वर्ष 1993 से चली आ रही थी और पिछली सरकारों ने भी ठीक उसी तरीके से कोल ब्लॉकों का आवंटन किया था, जिस पर कैग ने अब आपत्ति की है।

12. यूपीए ने वर्ष 2005 में आवंटन से संबंधित दिशानिर्देशों और शर्तों के साथ-साथ ऑन-ऑफर कोल ब्लॉकों का ब्यौरा उपलब्ध कराने के बाद खुले विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित करते हुए प्रक्रिया में सुधार किया था। इन आवेदन-पत्रों की जांच और मूल्यांकन एक विस्तृत आधार वाली संचालन समिति ने किया था। इस समिति में राज्य सरकारों, केन्द्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों और कोयला कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल थे। आवेदन-पत्रों का मूल्यांकन एन्ड यूज प्रोजेक्ट(end-use project) की तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता, एन्ड यूज प्रोजेक्ट(end-use project) के निर्माण संबंधी तैयारी की स्थिति, परियोजनाएं निष्पादित करने का पिछला रिकार्ड, आवेदक कंपनियों की आर्थिक और तकनीकी क्षमताएं, राज्य सरकारों और संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय की अनुशंसा जैसे मानदण्डों के आधार पर किया गया था।

13. किसी भी प्रशासनिक आवंटन प्रक्रिया में कुछ निर्णय शामिल होते हैं और इस मामले में जांच समिति में सामूहिक रुप से काम करने वाले कई सदस्यों ने मिलकर निर्णय लिया था। उस समय समिति पर अनुचित रुप से कार्य करने का कोई आरोप नहीं था।

14. कैग का कहना है कि मौजूदा प्रशासनिक अनुदेशों में संशोधन करके वर्ष 2006 में प्रतिस्पर्धी बोली शुरू की जा सकती थी। कैग का यह कथन दोषपूर्ण है।

15. कैग की यह टिप्पणी कि प्रशासनिक अनुदेशों में संशोधन करके प्रतिस्पर्धी बोली की प्रक्रिया शुरू की जा सकती थी, विधि कार्य विभाग द्वारा जुलाई और अगस्त 2006 में दी गई राय पर आधारित है। लेकिन, कैग ने यह टिप्पणी विधि कार्य विभाग द्वारा दी गई राय के केवल चुनिंदा हिस्सों को पढ़कर दी है।

16. आरंभ में सरकार ने उचित नियम बनाकर प्रतिस्पर्धी बोली शुरू करने का एक प्रस्ताव तैयार किया था। इस मामले को विधि कार्य विभाग को भेजा गया था, जिसने शुरू में यह राय दी कि इस प्रयोजन के लिए कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक होगा।

17. 25 जुलाई, 2005 को प्रधान मंत्री कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें कोयला एवं लिग्नाइट वाले राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। बैठक में राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों ने प्रतिस्पर्धी बोली अपनाने के प्रस्ताव का विरोध किया था। बाद में यह देखा गया कि प्रस्तावित बदलाव के लिए जरूरी विधायी परिवर्तन को लाने में काफी समय लगेगा और कैप्टिव (captive) खनन के लिए कोल आवंटन प्रक्रिया को कोयले की बढ़ती मांग को देखते हुए इतने लंबे समय तक रोककर नहीं रखा जा सकता। इसलिए, बैठक में यह निर्णय लिया गया कि नई प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया जब तक प्रचालित नहीं हो जाती तब तक मौजूदा जांच समिति प्रक्रिया से माध्यम से कोल ब्लॉक आवंटन को जारी रखा जाए। यह केन्द्र एवं संबंधित राज्य सरकारों का सामूहिक निर्णय था।

18. अगस्त 2006 में ही विधि कार्य विभाग ने राय दी कि प्रतिस्पर्धी बोली प्रशासनिक अनुदेशों के माध्यम से शुरू की जा सकती थी। लेकिन, इसी विभाग ने यह भी राय दी कि प्रस्तावित प्रक्रिया को मज़बूत कानूनी आधार देने के लिए कानूनी संशोधनों की आवश्यकता होगी। सितम्बर 2006 में आयोजित की गई एक बैठक में सचिव, विधि कार्य विभाग ने स्पष्ट रूप से यह राय दी थी कि संगत कानून की प्रकृति और दायरे का सम्मान करते हुए खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधन करके इस लक्ष्य को हासिल करना सबसे उपयुक्त होगा।

19. किसी भी स्थिति में लोकतंत्र में इस बात को स्वीकार करना कठिन है कि नीति में बदलाव को लागू करने के लिए सरकार के कानूनी सुधार संबंधी किसी निर्णय पर लेखा परीक्षा में प्रतिकूल टिप्पणी की जाए। यह मुद्दा विवादित था और प्रतिस्पर्धी बोली के प्रस्तावित बदलाव के लिए अलग-अलग राय रखने वाले विभिन्न स्टेकहोल्डरों के साथ सर्वसम्मति बनाने की आवश्यकता थी, जैसा कि विधायी प्रक्रिया में निहित होता है। 

20. जैसा कि ऊपर उल्लिखित है सर्वाधिक कोयला और लिग्नाइट वाले राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा और राजस्थान में विपक्षी दलों का शासन था और उन्होंने प्रतिस्पर्धी बोली की प्रक्रिया अपनाने का पुरजोर विरोध किया था क्योंकि उन्हें ऐसा लगा कि इससे कोयले की कीमत बढ़ेगी, मूल्य संवर्धन तथा उनके क्षेत्रों में उद्योगों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और पट्टेधारी का चयन करने संबंधी उनके विशेषाधिकार कम होंगे।

21. राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अप्रैल 2005 में मुझे लिखे अपने पत्र में प्रतिस्पर्धी बोली का विरोध करते हुए यह कहा था कि यह सरकारिया आयोग की सिफारिशों की भावना के विपरीत होगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जून 2005 में मुझे लिखे पत्र में मौजूदा नीति को जारी रखने को कहा था और यह अनुरोध किया था कि कोयला नीति में कोई भी बदलाव केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच सर्वसम्मति होने के बाद ही किया जाए। पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सरकारों ने भी प्रतिस्पर्धी बोली पद्धति का औपचारिक रूप से विरोध करते हुए पत्र लिखा था।

22. विद्युत मंत्रालय का भी यह मानना था कि कोयले की बोली लगाने से ऊर्जा पैदा करने की कीमत बढ़ जाएगी।

23. यह उल्लेखनीय है कि निजी कंपनियों द्वारा वाणिज्यिक खनन को आसान बनाने से संबंधित कोयला खान राष्ट्रीयकरण (संशोधन) विधेयक, 2000  स्टेकहोल्डरों के कड़े विरोध के कारण लंबे समय से संसद में लंबित था।

24. संशोधन विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से पहले विस्तार से विचार-विमर्श करने की प्रक्रिया अपनाई जाने के बावजूद स्थायी समिति ने कोयला मंत्रालय को राज्यों के साथ एक बार और चर्चा करने की सलाह दी थी। यह फिर इस बात को दर्शाता है कि व्यापक विचार-विमर्श करने और संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से सर्वसम्मति बनाने का निर्णय सही था।

25. कैग की रिपोर्ट में इस निर्णय को तेजी से लागू न करने के लिए सरकार की आलोचना की गई है। मैं इस बात से पूर्णतः सहमत हूं कि यदि आदेश मात्र से काम करना संभव होता तो हम यह काम ज़्यादा तेज़ी से कर सकते थे। लेकिन हमारी संसदीय व्यवस्था में सर्वसम्मति बनाने की जटिल प्रक्रिया को देखते हुए ऐसा करना कठिन है।

26. मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि यदि हम कैग के इस विचार को मान भी लें कि निजी कंपनियों को लाभ हुआ, उनके द्वारा किए गए आकलन पर कई तकनीकी बिंदुओं के आधार पर प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है। कैग ने निजी पार्टिेयों को हुए आर्थिक लाभ की गणना आवंटित कोल ब्लॉकों के अनुमानित खनन योग्य भंडार पर कोल इंडिया लिमिटेड के औसत विक्रय मूल्य और उत्पादन मूल्य के बीच के अंतर के आधार पर की है। प्रथमतः, औसत के आधार पर खनन योग्य भंडारों की गणना करना सही नहीं होगा। दूसरा, भू-खनन की अलग-अलग परिस्थितियों, खनन की पद्धति, सतह की विशिष्टताओं, सेटलमेंट्स की संख्या, आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता इत्यादि के कारण कोल इंडिया लिमिटेड के लिए भी कोयला उत्पादन की लागत हर खान में अलग-अलग होती है। तीसरा, कोल इंडिया लिमिटेड सामान्य तौर पर बेहतर आधारभूत सुविधा वाले और खनन के लिए ज्यादा अनुकूल परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में कोयले का खनन करता है, जबकि कैप्टिव(captive) खनन के लिए दिए जाने वाले कोल ब्लॉक आम तौर पर अधिक कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में हैं। चौथा, लाभ का एक अंश हर हालत में सरकार द्वारा कराधान के जरिए संग्रहीत किया जाएगा एवं एमएमडीआर बिल के अंतर्गत, जो इस समय संसद में विचाराधीन है, कोयला खनन प्रचालनों पर होने वाले लाभ का 26% स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए रखना होगा। अतः केवल कोल इंडिया लिमिटेड की औसत उत्पादन लागत और विक्रय मूल्य के आधार पर निजी कंपनियों के संभावित आर्थिक लाभ का आकलन करना बहुत ही भ्रामक हो सकता है। इसके अतिरिक्त, चूंकि निजी कंपनियों को स्पेसिफाइड एन्ड यूजेज (specified end-uses) हेतु केप्टिव(captive) उद्देश्य के लिए ही कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे, इसलिए कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्धारित कोयले की कीमत से आवंटित ब्लॉकों को जोड़ना उपयुक्त नहीं होगा।

27. अन्य महत्वपूर्ण तकनीकी मुद्दे भी हैं, जिन्हें कोयला मंत्रालय द्वारा लोक लेखा समिति को प्रस्तुत किए जाने वाले अपने विस्तृत जवाब में पूर्ण रूप से शामिल किया जाएगा। मैं इन मुद्दों की चर्चा यहां नहीं करना चाहता हूं।

28. यह सही है कि जिन निजी पार्टियों को कैप्टिव(captive) कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे, वे अपने उत्पादन लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए। इसका कारण आंशिक तौर पर वे जटिल प्रक्रियाएं हो सकती हैं जो सांविधिक मंजूरियां प्राप्त करने से संबंधित हैं। इस विषय पर हम अलग-से कार्रवाई कर रहे हैं। हमने उन आवंटनों को समाप्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी है, जहां पर पार्टियों ने उत्पादन शुरू करने हेतु पर्याप्त अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा सी.बी.आई कदाचार संबंधी आरोपों की अलग-से जांच कर रही है जिसके आधार पर कदाचार करने वालों, यदि कोई हो, के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

माननीय सदस्यगण,

29. वर्ष 1993 के बाद की सरकारों ने कैप्टिव(captive) उपयोग के लिए कोल ब्लॉकों के आवंटन की नीति को जारी रखा तथा इन आवंटनों को राजस्व बढ़ाने का क्रियाकलाप नहीं समझा। मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि इस संबंध में नीलामी शुरू करने का विचार पहली बार यूपीए सरकार ने कैप्टिव(captive)  ब्लॉकों की बढ़ती मांग के मद्देनज़र किया। सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस विचार की समीक्षा करने हेतु कार्रवाई शुरु की गई और 2010 में आवश्यक कानूनी संशोधन का अनुमोदन कर संसद में प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। कानून बनाने की प्रक्रिया में उन कई कारणों से काफी समय लगा, जिनका उल्लेख मैं पहले कर चुका हूं।

30. जब कानूनी बदलाव लाने की प्रक्रिया चल रही थी, तब सरकार के सामने केवल यही एक विकल्प था कि जांच समिति तंत्र के माध्यम से मौजूदा प्रणाली को तब तक जारी रखा जाए जब तक नीलामी आधारित प्रतिस्पर्धी बोली की नई प्रणाली तैयार नहीं हो जाती। यदि आवंटन की प्रक्रिया को रोककर रखा जाता तो कोयले की आपूर्ति के अत्यावश्यक विस्तारण में विलम्ब होता। यद्यपि निजी क्षेत्र को आवंटित ब्लॉकों से अब तक उत्पादित कोयला लक्ष्य से कम है, फिर भी यह अपेक्षा करना सही होगा कि मंजूरी देने के कार्य में तेजी आने के साथ बारहवीं योजना के दौरान उत्पादन शुरू हो जाएगा। नई प्रणाली शुरु होने तक कोल ब्लॉकों के आवंटन को स्थगित रखने से ऊर्जा उत्पादन, जीडीपी वृद्धि एवं राजस्व संग्रहण में कमी आ जाती। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कैग ने इन पहलुओं पर गौर नहीं किया है।

31. मैं यह दृढ़तापूर्वक कहना चाहता हूं कि सरकार की सदैव यह मंशा रही है कि पारदर्शी प्रक्रियाओं एवं दिशानिर्देशों के माध्यम से कैप्टिव(captive) खनन के लिए कोल ब्लॉक उपलब्ध करवाकर कोयला उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जाए, जिसमें राज्य सरकारों सहित सभी स्टेकहोल्डरों के वाजिब हितों का भी ध्यान रखा जाए। कैग के इस परोक्ष सुझाव कि सरकार को कई राज्य सरकारों, जिनमें विपक्षी दलों की सरकारें भी शामिल थीं, द्वारा दर्ज आपत्तियों के बावजूद, प्रशासनिक अनुदेशों द्वारा विधायी प्रक्रिया से बचना चाहिए था, के अनुसार यदि कार्रवाई की जाती तो वह अलोकतांत्रिक होती और हमारी संघीय व्यवस्था की भावना के विपरीत होती। जो तथ्य हैं वह स्वयं स्पष्ट हैं और यह दर्शाते हैं कि कैग के निष्कर्ष कई मायनों में दोषपूर्ण हैं।

32. यह संक्षेप में सरकार के कार्येां की पृष्ठभूमि है, उनकी सही स्थिति है और उनका युक्तिपूर्ण आधार है। अब, जबकि कैग की रिपोर्ट सदन के समक्ष है, इस रिपोर्ट की सिफारिशों एवं टिप्पणियों पर स्थापित संसदीय कार्यविधियों द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी।