भाषण [वापस जाएं]

August 21, 2012
नई दिल्‍ली


पदोन्‍नति में आरक्षण पर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषण

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का आज नई दिल्‍ली में सर्वदलीय बैठक में पदोन्‍नति में आरक्षण पर उद्घाटन भाषण का अनुदित पाठ इस प्रकार है:

प्रिय साथियों मैने यह बैठक पदोन्‍नति में आरक्षण के मुद्दे पर विशेषकर उच्‍चतम न्‍यायालय के उत्‍तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम राजेश कुमार और ओआरएस के मामले के निर्णय के संदर्भ में चर्चा के लिए बुलाई है जिसमें अदालत ने उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पदोन्‍नति में आरक्षण के प्रावधान को नामंज़ूर कर दिया था।

आप यह जानते हैं कि सरकार हमेशा से ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध रही है तथा इस संबंध में कई बार संवैधानिक संशोधन करने में भी उसने संकोच नहीं किया।

आप स्‍मरण कर सकते हैं कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने इंद्रा साहनी के मामले में 16.11.1992 के अपने फैसले में अन्‍य विषयों के साथ यह कहा था कि पदोन्‍नति में आरक्षण अधिकारतीत है लेकिन विशेष मामले के रूप में फैसले की तिथि से 5 वर्ष के लिए इसे जारी रखने की अनुमति दी थी। पांच वर्ष समाप्‍त होने से पहले 1995 में संविधान में 77वां संशोधन अनुच्‍छेद 16 में धारा (4 ए) जोड़कर किया गया था जिसमें सरकार को पदो‍न्‍नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण जारी रखने का अधिकार दिया गया था।

आरक्षण द्वारा पदोन्‍नत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति उम्‍मीदवारों को अनुवर्ती वरिष्‍ठता का लाभ देने के लिए संविधान के 85 संशोधन के जरिए धारा (4 ए) में बदलाव किया गया।

संविधान में 81वां संशोधन अनुच्‍छेद 16 में धारा (4/बी) जोड़कर किया गया जिसमें आरक्षण के तहत पहले से खाली चली आ रही रिक्तियों को अलग और विशिष्‍ट समूह में रखने की अनुमति दी गई जिस‍के लिए 50 प्रतिशत की सीमा लागू नहीं हो सकती। इसने सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के तहत पहले से खाली चली आ रही रिक्तियों को भरने हेतु विशेष भर्ती अभियान चलाने का अधिकार दिया। 2004 के अभियान के दौरान 60,000 से अधिक आरक्षण के तहत पहले से खाली चली आ रही आरक्षित रिक्तियों को भरा गया है। विशेष भर्ती अभियान, 2008 के जरिए 43,781 रिक्तियों को भरा जा चुका है।

संवि‍धान में 82वां संशोधन के माध्‍यम से संवि‍धान के अनुच्‍छेद 335 में एक प्रावधान जोड़ा गया था जि‍ससे पदोन्नति के मामले में अनुसूचि‍त जाति‍ और अनुसूचि‍त जनजाति‍ के उम्‍मीदवारों को छूट/रि‍यायतें देने के लि‍ए राज्‍यों को सक्षम बनाया गया था। उपर्युक्‍त चार संवैधानि‍क संशोधनों को अनुसूचि‍त जाति‍ और अनुसूचि‍त जनजाति‍ सहि‍त पि‍छड़े वर्गों के हि‍तों को सुरक्षि‍त रखने के क्रम में कि‍या गया था। इन सभी चार संशोधनों की वैधता को कई याचि‍काओं के माध्‍यम से उच्‍चतम न्‍यायालय में चुनौती दी गई जो एम.नागराज और अन्‍य बनाम भारत सरकार एवं अन्‍य के साथ है जि‍समें इस संशोधनों को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि‍ ये संवि‍धान के मूल ढांचे में कि‍या गया बदलाव है।

इसे सुनि‍श्‍चि‍त करने के क्रम में कि‍ सरकार के मामले को उच्‍चतम न्‍यायालय के समक्ष प्रभावी ढंग से रखने के लि‍ए कमजोर तबकों के हि‍तों की रक्षा के मामले में अनुभवी एक प्रख्‍यात अधि‍वक्‍ता श्री के. परासरन को कानून मंत्री की स्‍वीकृति‍ से रखा गया। सरकार के प्रयासों के माध्‍यम से उच्‍चतम न्‍यायालय ने एम. नागराज और अन्‍य बनाम भारत सरकार एवं अन्‍य के मामले में 19 अक्‍टूबर 2006 को दि‍ए गये अपने नि‍र्णय में इन सभी चार संशोधनों की वैधता को बरकरार रखा। हालांकि‍, न्‍यायालय ने नि‍र्धारि‍त किया कि‍ संबंधि‍त राज्‍यों को प्रत्‍येक मामले में आरक्षण प्रदान करने के प्रावधान से पूर्व तर्कसंगत कारण, नाम, पि‍छड़ापन, समग्र प्रशासनि‍क दक्षता को दि‍खाना होगा। यदि‍ पदोन्‍नति‍ के मामले में अनुसूचि‍त जाति‍ और अनुसूचि‍त जनजाति‍ के लि‍ए आरक्षण के प्रावधान की इच्‍छा रखती है तो राज्‍य सरकार को अनुच्‍छेद 335 के अनुरूप श्रेणी के पि‍छड़ेपन और सार्वजनि‍क रोजगार में उस श्रेणी के प्रति‍नि‍धि‍त्‍व की अपर्याप्‍तता के लि‍ए उपयुक्‍त आंकड़ों को एकत्र करना होगा।

इस आधार पर वि‍भिन्‍न राज्‍यों ने कुछ मामले दाखिल किए गए कि श्री नागराज के मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निर्धारित की गई पूर्व शर्तों का पदोन्‍नति में आरक्षण प्रदान करने के मामले में पालन नहीं किया जा सकता। हाल के पिछले दिनों में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कुछ राज्‍यों में पदोन्‍नति में आरक्षण के मामले को खारिज कर दिया। सरकार वर्तमान स्थिति पर संभावित हल की तलाश कर रही है। आपके सुझाव इस मुद्दे पर फैसले के लिए सरकार को महत्‍वपूर्ण मदद प्रदान करेंगे। मैं आप सबसे इस मामले में उपयोगी सुझाव देने की गुजारिश करता हूं कि ताकि एक कानून सम्‍मत स्‍थायी हल पर पहुंचा जा सके।