भाषण [वापस जाएं]

April 21, 2012
नई दिल्‍ली


लोक सेवा दिवस, 2012 के अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

लोक सेवा दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार हैः

सातवें लोक सेवा दिवस के इस अवसर पर मैं अपनी लोक सेवाओं के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकानाएं देता हूं। यह वार्षिक आयोजन हमारी लोक सेवाओं को हमारे देश और हमारी जनता की अपनी पूरी क्षमता के साथ सेवा करने की सामूहिक प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करने का अवसर उपलब्ध कराता है। यह लोकसेवकों के लिए भी अंतर्निरीक्षण करने और अपनी भूमिका और परफोरमेन्स में उसे प्रदर्शि‍त करने तथा यह जानने का भी अवसर है कि उन्हें ज्यादा प्रभावशाली एवं ज्यादा सार्थक कैसे बनाया जा सकता है।

मैं आजकल तीन बातों पर विचार-विमर्श देख रहा हूं। उनमें ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो देश के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा हमारे लोकसेवकों की कार्यप्रणाली के लिए बहुत प्रासंगिक हैं। मुझे यकीन है कि आप इस दिन सार्थक चर्चा करेंगे। लेकिन मुझे यह भी विश्वास है कि आज के आयोजन का महत्व यह संदेश भेजने में समान रूप से निहित है कि हम सब अपनी लोक सेवाओं को ज्यादा दक्ष, ज्यादा पेशेवर बनाने और 21वीं सदी की जरूरतों के अनुकूल बनाने तथा अपने देश में तीव्र सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति को सुगम बनाने के वास्ते सक्षम बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं।

मेरा हमेशा विश्वास रहा है कि हमारी लोक सेवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। हमारे बहुत से लोक सेवकों को दुनिया में श्रेष्ठ स्थान हासिल है। उन्होंने उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्होंने विपरीत हालात में बेहतरीन परिणाम हासिल किए हैं। अनेक लोक सेवक ईमानदारी और सत्यनिष्ठा, जनता की भलाई के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने के देदीप्यमान उदाहरण रहे हैं। हमने अभी-अभी कुछ उत्कृष्ट लोक सेवकों को पुरस्कृत किया है। मैं आज के पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं और भविष्य में उनके लिए ज्यादा सफलता की कामना करता हूं।

जैसा कि मैंने पहले कहा लोक सेवा दिवस अंतर्निरीक्षण का भी अवसर होना चाहिए। अपनी सफलताओं का जश्न मनाते समय हमें अपनी नाकामियों और अपनी कमियों को भी ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए। मैं आज इस अवसर पर लोक सेवाओं के बारे में कुछ मुद्दों को उठाना चाहूंगा और मुझे विश्वास है कि वे जनता के दिमाग को परेशान करते हैं।

पता नहीं सही है या गलत लेकिन यह अवधारणा बढ़ती जा रही है कि हमारे लोक सेवकों का नैतिक ताना-बाना और सामान्य तौर पर लोक सेवक, अब उतने सशक्त नहीं रहे जितने कुछ दशकों पहले थे तथा हमारे लोक सेवकों के अब अपने काम में बाहरी दबाव से परास्त होने की आशंका है। हो सकता है यह अवणारणाएं बढ़ा-चढ़ा कर पेश की गई हों लेकिन मुझे लगता है कि उनमें थोड़ी बहुत तो सच्चाई है।

लोक सेवक जो निर्णय लेते हैं वे निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ होने चाहिएं तथा वे ठोस प्रमाण और गहन विश्लेषण पर आधारित होने चाहिए तथा हमारे देश के श्रेष्ठ हित में लिए जाने चाहिए। उनका न्याय और सलाह राजनीतिक नेतृत्व की प्रकृति और रंग से प्रभावित नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो सार्वजनिक प्रशासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया की निष्पक्षता एवं औचित्य से समझौता करना पड़ता है तथा हमारे परिणाम की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इसलिए मुझे लगता है कि लोक सेवकों को स्थिर रूप से यह सावधानी रखनी चाहिए। मुझे यह यकीन भी है कि जनता में यह अवधारणा बनती जा रही है कि इन वर्षों में काम करने में वस्तुनिष्ठता के अवयव क्षीण हो गए हैं। मैं इसे लोक सेवकों पर छोड़ता हूं कि वे इस पर विचार करें कि इस अवधारणा में कितनी सच्चाई है तथा वे सभी मिलकर जनता के दिमाग से इसे दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं।

यह दिन मुझे आज एक अन्य मुद्दा उठाने का अवसर देता है। हम महान बदलाव के दौर में रहते हैं। हमारा समाज और हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रही हैं। हर दिन हमारा सामना नई प्रौद्योगिकी से होता है तथा काम करने के नए तरीके सामने आते हैं। यही नहीं प्रौद्योगिकी ने दुनिया बहुत छोटी बना दी है तथा काम करने की श्रेष्ठ परिपाटियों का अब पहले से कहीं ज्यादा तेजी से प्रचार-प्रसार होता है। इसलिए हमें स्वयं से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या काम करने के अपने तरीके में हम उस चहुंमुखी बदलाव से कदमताल कर रहे हैं। मुझे लगता है कि आमतौर पर महसूस किया जाता है कि इस क्षेत्र में लोक सेवाएं कहीं न कहीं पीछे छूट गई हैं। मैं जानता हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र में प्रणालियों, प्रक्रियाओं और कार्य विधियों को बदलना बहुत आसान नहीं है। लेकिन इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए तथा हमारे लोक सेवकों को अति आधुनिक विधियां और परिपाटियां अपनाने के लिए दुगुने प्रयास करने चाहिए।

पिछली बार 21 अप्रैल, 2011 को लोक सेवा दिवस पर मैंने उन उपायों का उल्लेख किया था जो हमारी सरकार ने सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की बुराई से निपटने के लिए किए हैं या विचार कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि तब से हमने विधायी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है तथा भ्रष्टाचार से बेहतर ढंग से संघर्ष करने में खुद को सक्षम बनाने के लिए अपनी प्रशासनिक परिपाटियों का जीर्णोद्धार किया है। आज भी हमारी सरकार इन प्रयासों की दिशा में आगे बढ़ रही है जिनके बारे में, मैं यहां विस्तार से नहीं बताना चाहता। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि भ्रष्टाचार से संघर्ष के नाम पर किसी को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारी सरकार ऐसी प्रणाली तैयार करने और ऐसा माहौल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है जहां हमारे लोक सेवक निर्णायक ढंग से काम करने के लिए प्रोत्साहित हों तथा किसी को भी फैसले लेने में बिना किसी दुर्भावना के भूल हो जाने पर उत्पीड़ित न किया जाए। हम ईमानदार एवं उचित ढंग से काम करने वाले लोक सेवकों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं जिनसे हो सकता है कि अपने कामकाज के दौरान सही मायने में भूल हो गई हो। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारी सरकार के इसी इरादे पर राज्य सरकारें भी काम करेंगी।

अपने स्तर पर हमारे देश में लोक सेवकों को निर्णय न लेने की प्रवृत्ति में इस भय से संघर्ष करना चाहिए कि चीजें गलत हो सकती हैं और उनके लिए उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है। हमारे पास ऐसी नौकरशाही नहीं हो सकती है जो शत प्रतिशत जोखिम से मुक्त हो। दरअसल हमें फैसले लेने में दृढ़ता को बढ़ावा देना चाहिए बशर्ते फैसले सुविचारित हों तथा कानून के अनुरूप हों। कोई नौकरशाह जो फैसले नहीं लेता, हो सकता है, वह हमेशा सुरक्षित रहे लेकिन अंततः समाज और देश के प्रति उसका योगदान कुछ भी नहीं होगा।

मैं उस विषय पर भी संक्षिप्त टिप्पणी करना चाहता हूं जिस पर आज विचार किया जाएगा। पहले थीम ” सीमांतीकृत के लिए सुरक्षाः जिम्मेदार भारत के लिए विजन “अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकृत करने की दिशा में हमारी प्रतिबद्धता और प्रयासों के संदर्भ में हम सबके लिए यह विशेषरूप से प्रासंगिक है। हम बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में प्रवेश कर रहे हैं इसलिए हमें ऐसे समाज एवं देश के निर्माण के लिए अपने प्रयास दुगुने कर देने चाहिए जिसमें विकास का लाभ प्रत्येक नागरिक को मिले। हमारी वृद्धि का कोई खास मतलब नहीं होगा यदि हम सही मायने में समावेशी समाज एवं देश का निर्माण करने में नाकाम रहे। यही नहीं, समावेशी समाज और अर्थव्यवस्था के बिना हमारी वृद्धि प्रक्रियाओं के टिकाऊपन पर भी सवालिया निशान लगता है। अन्य दो थीम हमारी लोक सेवाओं को भ्रष्टाचार मुक्त और ज्यादा पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने तथा हमारे नागरिकों को परिष्कृत सेवाएं प्रदान करने के लिए समर्थ बनाने से भी संबंधित हैं। ये मुद्दे हम सबके लिए अटल रूप से प्रासंगिक हैं। मैं एक बार फिर कामना करता हूं कि इन सभी मुद्दों पर आप बहुत सार्थक चर्चा करें।

अंत में, मैं यह कहना चाहता हूं कि अपनी लोक सेवाओं में हमारा पूरा विश्वास है। उन्होंने हमारे देश की अच्छी सेवा की है। हमारे लोक सेवकों ने हमारे देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैं उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें बधाई देता हूं। मैं उन सबके बेहतर भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन मुझे यह आशा भी है कि वे उन प्रणालियों और प्रक्रियाओं को सुधारने, उन्नयन और आधुनिक बनाने के निरंतर प्रयास करते रहेंगे जो वे हमारे देश के श्रेष्ठ हितों में अपनाते हैं और संचालित करते हैं।