भाषण [वापस जाएं]

March 21, 2012
नई दि‍ल्‍ली


आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के शताब्‍दी समारोह में प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह का उद्बोधन

प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह ने आज आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के शताब्‍दी समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार है :-

“आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के शताब्‍दी समारोह के अवसर पर उपस्थित इस विशिष्‍ट जनसमूह के बीच आकर मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है। मुझे लगभग पांच दशक पहले के वे दिन याद आते हैं जब मैंने यह खुशी की खबर सुनी थी कि ओयूपी ने प्रकाशन के लिए मेरा डॉक्‍टोरल शोध निबंध स्‍वीकार कर लिया है। मैं सौभाग्‍यशाली था कि प्रसिद्ध जॉन हिक्‍स मेरे परीक्षक थे। वे ओयूपी के न्‍यासी भी थे। इसने अपने शोध निबंध को प्रकाशित कराने के मेरे कार्य को ज्‍यादा आसान बना दिया था। मैं यह कहने का साहस कर सकता हूं कि आज यहा उपस्थित अनेक विशिष्‍ट व्‍यक्तियों का भी लेखक और पाठक के रूप में ओयूपी से ताल्‍लुक रहा होगा।

एक सदी से आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया ने हमारे बौद्धिक जीवन में सशक्‍त और विविधतापूर्ण योगदान दिया है तथा भारत में बौद्धिक विचारों की सम्‍पूर्ण श्रृंखला उपलब्‍ध कराई है। प्रारंभिक वर्षों में इसने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और डी आर गाडगिल जैसे राजनीतिक एवं आर्थिक विद्वानों के लेख प्रकाशित किए। इसने 1940 के दशक में सलीम अली और जिम कार्बेट की पुस्‍तकें भी प्रकाशित कीं। 1980 के दशक में इसने सुबाल्‍टर्न सीरीज में उपनिवेशकालीन और उपनिवेशकाल के बाद के इतिहास के बहुत प्रसिद्ध लेखकों की पुस्‍तकें प्रकाशित कीं। मैं समझता हूं कि इस वर्ष बाद में समकालीन भारतीय व्‍यवसाय का आक्‍सफोर्ड इतिहास प्रकाशित किया जाएगा।

इन दिनों माता-पिता प्राय: अपने बच्‍चों में पढ़ने की आदत में कमी होने का विलाप करते हैं। लेकिन हमारे पुस्‍तक मेलों में दिखाई देने वाली भीड़ और भारत में प्रकाशन उद्योग की वृद्धि के मद्देनजर मुझे यकीन है कि हम इस भय को बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं। उदाहरण के लिए मैं समझता हूं कि ओयूपी इंडिया की बिक्री पिछले दस वर्ष में तीन गुणा हो चुकी है।

मुझे अपने देश में ज्ञान की बहुत भूख दिखाई देती है। हमें अपनी जनता को खासतौर से युवकों को अच्‍छी पुस्‍तकें सुलभ करानी चाहिए। प्रकाशन घराने बिकने वाली पुस्‍तकों की संख्‍या के बारे में चिंतित हो सकते हैं लेकिन सरकार में हमें पढ़ी जाने वाली पुस्‍तकों की संख्‍या पर ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए । हमारे सामने पाठकों की बढ़ती आबादी है सिर्फ पुस्‍तकों के लिए बाजार नहीं।

इस उद्देश्‍य के मद्देनजर हमने हाल ही में अपने संस्‍कृति मंत्रालय के तहत राष्‍ट्रीय पुस्‍तकालय मिशन शुरू किया है। यह मिशन देश में खासतौर से ऐसे राज्‍यों की सार्वजनिक पुस्‍तकालय व्‍यवस्‍था में सुधार पर ध्‍यान देगा जहां पुस्‍तकालय विकास पीछे छूट गया है। राष्‍ट्रीय मिशन के तहत तीन वर्ष में करीब 9,000 पुस्‍तकालयों को लाने की आशा है। इसके तहत पुस्‍तकालयों की राष्‍ट्रीय गणना की जाएगी तथा यह पठन-पाठन के संसाधनों के बुनियादी ढांचे के उन्‍नयन की दिशा में कार्य करेगा और पुस्‍तकालयों के नेटवर्क के आधुनिकीकरण एवं प्रोत्‍साहन के लिए काम करेगा।

मैं इस अवसर पर प्रत्‍येक राज्‍य सरकार और हर नगर पालिका तथा पंचायत से समुदाय, स्‍थानीय और ग्रामीण पुस्‍तकालयों सहित सार्वजनिक पुस्‍तकालयों की स्‍थापना और अनुरक्षण पर विशेष ध्‍यान देने का अनुरोध करता हूं।

जिस मिशन की मैं बात कर रहा हूं वह मिशन सिर्फ सरकारी प्रयासों से सफल नहीं हो सकता। हमें समुदाय, निजी क्षेत्र और स्‍वयं सेवी संगठनों में उपलब्‍ध संसाधनों का इस्‍तेमाल करना होगा। किफायती आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी आज अपने पुस्‍तकालयों के संसाधनों के विस्‍तार के लिए इस्‍तेमाल की जा सकती है। अपने ग्रामीण सार्वजनिक पुस्‍तकालय में बैठे युवा पाठक को दुनिया भर की पुस्‍तकें और जानकारी सुलभ होनी चाहिए।

दशकों से विकास अर्थशास्त्री कहते रहे हैं कि भारत की आबादी शापित है। आज जब अनेक विकसित देश बड़ी उम्र के लोगों की आबादी की चुनौती का सामना कर रहे हैं तब दुनिया स्‍वीकार कर रही है कि भारत में युवा आबादी और कुशल श्रमशक्ति के पास वैश्विक ज्ञान अर्थव्‍यवस्‍था में मानव संसाधनों की कमी को पूरा करने की क्षमता है।

मैं अपने देश में ज्ञान के प्रकाश के प्रसार में आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के कार्य की सराहना करता हूं। मैं आक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया को शुभकामना देता हूं तथा आशा करता हूं कि वे अनेक अनेक वर्षों तक देश में प्रकाशन उद्योग को नेतृत्‍व उपलब्‍ध कराना जारी रखेंगे।”