भाषण [वापस जाएं]

February 2, 2012
नई दिल्ली


महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट सम्मेलन 2012

जैसा कि आप सब जानते हैं, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के 6 साल पूरे हो गए हैं। मेरा मानना है कि इस कानून को लागू करते हुए हम एक ऐतिहासिक सफर तय कर रहे हैं।

हम इस कानून को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में हमारे गरीब भाइयों और बहनों को राहत देने में यह एक कारगर उपाय है। और इसीलिए आर्थिक परेशानियों के बावजूद हम इस योजना के लिए हर साल लगभग 40 हजार करोड़ रुपये की राशि आवंटित कर रहे हैं। यह किसी भी दूसरी स्कीम के आवंटन से ज्यादा है।

साल 2010-11 में मनरेगा के तहत साढ़े 5 करोड़ परिवारों के लिए रोज़गार पैदा किया गया। 25,600 करोड़ रूपये की मजदूरी लोगों को दी गई। गरीब लोगों की आमदनी बढ़ी है। साथ-साथ यह स्कीम community assets बनाने, सिंचाई और खेती को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने की क्षमता भी रखती है।

हम यह चाहते हैं कि छोटे किसानों और गरीब परिवारों को ख़ास तौर पर इस स्कीम का फायदा मिले। इसीलिए हाल ही में, हमने यह फैसला लिया है कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों या बी.पी.एल. लोगों की जमीनों पर मनरेगा के तहत सिंचाई, बागवानी और भूमि विकास से जुड़े कार्य किए जा सकते हैं।

मुझे बताया गया है कि इस योजना की वजह से कई जगहों पर जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ा है और खेती पहले से अच्छी होने लगी है। मनरेगा के द्वारा जमीन के विकास और सिंचाई की सुविधाएं देकर हम एक दूसरी हरित क्रांति लाने में मदद कर सकते हैं।

जिन क्षेत्रों में मनरेगा कृषि को बढ़ावा देने में सफल होता है, वहां लोगों को मनरेगा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। राजस्थान में पिछले दो सालों में अच्छी फसल होने के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग में कमी आई है। इसका मतलब यह है कि वहां पर लोगों को खेती-बाड़ी के काम में ही रोज़गार मिल रहा है।

मैं, श्री जयराम रमेश को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने समेकित कार्य योजना (Integrated Action Plan) वाले जिलों में मनरेगा को लागू करने पर जोर दिया है। इससे इन जिलों में मजदूरी पाने वालों की तादाद बढ़ी है। इन इलाकों के लोगों में आशा की किरण जगी है। हाल ही में हमने यह फैसला लिया है कि इन जिलों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान भी मनरेगा के तहत बन सकते हैं।

मेरा विश्वास है कि इन जिलों में मनरेगा लागू होने से विकास की रफ्तार बढ़ेगी और वे कारण कम होंगे जिनकी वजह से कभी-कभी लोग हिंसा का रास्ता अपनाते हैं।

पिछले 6 सालों में हमने मनरेगा के अमल में काफी कामयाबियां हासिल की हैं। लेकिन अभी भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि मजदूरों को वक्त पर पैसा मिले। इसके लिए देश के गांवों में डाकघरों और बैंकों को अपनी पहुंच बढ़ानी होगी। हमारी कोशिश होगी कि 15 दिनों के भीतर मजदूरों को उनकी मजदूरी मिल सके। इसमें देरी होने से उन्हें मंहगा कर्ज़ लेकर अपना काम चलाना पड़ता है।

मज़दूरी का भुगतान करने से पहले कुछ कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है। इसमें मस्टर रोल और कार्य-स्थल पर कार्यों का verification करना शामिल है। हमने पाया है कि पर्याप्त स्टाफ न होने की वजह से इन कार्यों को निपटाने में अक्सर देरी होती है। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि वे इस मसले को हल करें।

हमें मनरेगा कामगारों को यह बताना होगा कि इस अधिनियम के तहत उनके क्या कानूनी अधिकार हैं और रोज़गार पाने के लिए उन्हें क्या करने की जरूरत है। मनरेगा की विशेषता यह है कि अगर अर्जी देने के 15 दिनों के भीतर किसी eligible व्यक्ति को काम नहीं दिया जाता तो उसे बेराजगारी भत्ता दिया जाएगा। राज्यों को चाहिए कि वे खुद ही ऐसे आसान तरीके अपनाएं, जिनसे काम के लिए ज्यादा से ज्यादा अर्जियां प्राप्त हों।

गांवों के चौतरफा विकास के लिए मनरेगा की अहम भूमिका हो सकती है। लेकिन इसके लिए ग्रामीण विकास की दूसरी योजनाओं के साथ मनरेगा का तालमेल बिठाने की जरुरत होगी। मुझे इस बात की खुशी है कि मनरेगा के तहत अब घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्द्रों में Toilets बनाए जा सकते हैं। हाल में लिए गए इस फैसले से देश में लागू किए जा रहे संपूर्ण सफाई अभियान को काफी बढ़ावा मिलेगा।

हमें ग्रामीण भारत में क्रांति लाने के लिए मिलकर काम करना होगा। सही मायने में भारत का विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि विकास का फायदा हर गांव तक नहीं पहुंचता।

हम समझते हैं कि मनरेगा का जो बुनियादी मक़सद है और इसमें जो potential है, उनका फायदा अभी तक पूरी तरह नहीं उठाया गया है। इस योजना को जनता का अच्छा समर्थन मिला है। मुझे यकीन है कि इस योजना के अमल में जो मसले सामने आए हैं उन्हें हम सुलझा सकते हैं। मुझे बताया गया है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा स्कीम के कामकाज की समीक्षा शुरू कर दी है। मुझे विश्वास है कि यदि मनरेगा योजना को ठीक से चलाया जाए, और जमीनी स्तर पर उसका बेहतर अमल किया जाए तो यह एक मॉडल ग्रामीण विकास योजना बन सकती है।

भाइयों और बहनों,

मैं उन सभी लोगों को मुबारकबाद देना चाहता हूं जिन्हें आज पुरस्कार मिले हैं और जिनकी वजह से इस ग्रामीण रोज़गार स्कीम का फायदा आम आदमी तक पहुंचा है।

जय हिंद।