साक्षात्कार[वापस जाएं]

सऊदी अरब के पत्रकारों द्वारा लिया गया प्रधानमंत्री का साक्षात्कार

प्रश्ऩ 1. माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत और सऊदी अरब दोनों देशों  ने मक्का-मदीना स्थित दो पवित्र मस्जिदों के संरक्षक किंग अबदुल्ला की जनवरी 2006 में नई दिल्ली की  यात्रा को दोनों देशों के बीच सामरिक संबधों की शुरूआत के लिए एक युगान्तकारी घटना के रुप में देखा। आज उस घटना के लगभग चार साल बाद, किंग अबदुल्ला की “पूरब की ओर देखो” नीति (लुक ईस्ट पॉलिसी) के अंग के रुप में की गई पहल की प्रगति का आकलन किस प्रकार करते है। अब तक इस संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियां क्या रहीं?

उत्तर: 26 जनवरी, 2006 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मक्का-मदीना स्थित दो पवित्र मस्जिदों के संरक्षक किंग अबदुल्ला विन अब्दुल अजीम की हमारे मुख्य अतिथि के रूप में यात्रा तो हमारे लिए युगांतकारी घटना थी। पिछले पचास सालों में सऊदी अरब के किसी शासक की यह पहली यात्रा थी । मैने और महामहिम किंग अब्दुल्ला ने दिल्ली घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे जिससे क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को तथा सामान्य सामरिक विजन के प्रति  राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्रों में  संबंधों को और बेहतर बनाने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और मजबूत हुई।

हमने द्विपक्षीय साझेदारी को और अधिक मजबूती देने के अपने लक्ष्य को  हासिल करने में पर्याप्त प्रगति की है। हमने आपस में मंत्री स्तर की कई नियमित उच्च स्तरीय बातचीत तथा इसके साथ ही कारोबारी समुदाय अकादमिक वर्ग और समाज के अन्य वर्गों के बीच भी तेजी से परस्पर संपर्क स्थापित किए । भारत –सऊदी अरब संयुक्त आयोग की बैठक नवंबर 2009 में हुई। बैठक में कार्यसूची द्विपसीय सहयोग के लिए मह्त्वाकांक्षी एजेंडा प्रस्तुत किया गया था ।  सउदी अरब भारत का चौथा सबसे बडा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों के बीच 25 बिलियन डालर से भी अधिक का व्यापार होता है। सउदी अरब में इस समय 500 से भी ज्यादा संयुक्त उद्यमों पर काम चल रहा है जिनमें 2 बिलियन अमेरिकी डालर से भी अधिक का अनुमानित पूंजी निवेश हुआ है। हम चाहते हैं कि सउदी अरब भारत में इससे भी ज्यादा पूंजी निवेश करें , विशेषकर वुनियादी ढांचे के क्षेत्र में जहॉ दोनों ही देशों के लिए  हितकारी अवसर मौजूद हैं।

प्रश्ऩ 2. क्या आप हमें इस माह अपनी सउदी अरब की यात्रा के दौरान किंग अबदुल्ला और सउदी अरब के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुई बातचीत के बारें मे संक्षेप में बताएंगे । यह यात्रा रियाद के लिए और अधिक मह्त्वपूर्ण हो जाती है क्योकि 20 वर्षो के बाद भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने यहाँ यात्रा की है।

उत्तर: भारत और सउदी अरब दोनों ही समान भौगोलिक विस्तार वाले  पड़ौसी मुल्क है। नई दिल्ली घोषणा में हमने न केवल  पारस्परिक लाभ के लिए बल्कि इस क्षेत्र तथा विश्व में शांति,स्थायित्व और सुरक्षा को बढावा देने पर भी बल दिया है।

मैंने और सउदी अरब के किंग अबदुल्ला दोनो ने ही इस बात को पूर्णतया अस्वीकृत कर दिया कि निर्दोष व्यक्तियों के संबंध में जानबूझ कर की गई हिंसा को किसी भी कारण से न्यायोचित ठहराया जा सकता है हम उग्रवाद और आतंकवाद के खिलाफ एक जुट होकर खड़े है क्योंकि आतंकवाद विश्व शांति और सुरक्षा का दुश्मन है।

अपनी यात्रा के दौरान मेरा उद्देश्य किंग अब्दुल्ला के साथ क्षेत्र में और अधिक स्थायित्व और सुरक्षा को बढावा देने के तरीकों पर बातचीत करना था। हमारे एजेड़ा में व्यापार और निवेश, ऊर्जा  रक्षा सुरक्षा, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सहयोग और लोगों को परस्पर आदान प्रदान जैसे विविध क्षेत्रो में द्विपक्षीय संबंधो को अधिक मजबूत बनाना भी शामिल था । मै सउदी अरब के व्यापारी समुदाय के सदस्यों से सीधे बात करना चाहता हूँ और उन्हे प्रमुख बुनियादी ढांचे,ऊर्जा, उद्योग और सेवा से जुडी परियोजनों के माध्यम से भारत के तेजी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में साझीदार होने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

प्रश्ऩ 3. आपकी सउदी अरब की यात्रा के दौरान भारत किन -किन करारों और समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करेगा? कृपया उनके नाम और उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।

उत्तर: मेरी इस यात्रा के दौरान विभिन्ऩ सहयोगी करारों पर हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है जो आर्थिक सहयोग, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत-सउदी सहयोग की व्यापक  रेंज का प्रतिनिधित्व करेंगें । मुझे पूरा विश्वास है कि इनसे हमारे रिश्तों में और अधिक प्रगाढता आएगी।

प्रश्ऩ 4. आप सउदी अरब की यात्रा ऐसे समय पर कर रहे है जब ईरान और ईराक तथा अफगानिस्तान के कारण इस क्षेत्र में तनाव व्याप्त है। अमेरिका तथा पश्चिमी देश ईरान पर परमाणु मुद्दे पर लगातार दबाव बना रहे है। सउदी अरब के साथ भागीदारी करते समय इस मुद्दे पर भारत की  क्या भूमिका होगी?

उत्तर:  हम भू-राजनीतिक घटनाक्रम की कई घटनाओं के साक्षी  जिसका सीधा प्रभाव इस क्षेत्र की शांति और स्थायित्व पर पड़ेगा। इन मुद्दो को निरंतर प्रयास करके सुलझाना होगा। मेरा मानना है कि भारत और सउदी अरब इस क्षेत्र के ऐसे दो बड़े देश है जिनका इसमें बहुत बड़ा हित है और उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है । मक्का और मदीना दो पवित्र मस्जिदों के संरक्षक किंग अबदुल्ला विन अब्दुल अजीज के साथ होने वाली अपनी बातचीत में क्षेत्रीय परिदृश्य की समीक्षा करना चाहूंगा और चर्चा करूगां कि हमारे संमक्ष जो जटिल समस्याएं मौजूद हैं उसे हम मिलकर कैसे दूर कर सकते है।

प्रश्ऩ 5. आतंकवाद से लड़ने के मुद्दे पर आप खाड़ी  देशों विशेषकर आतंकवाद से लड़ाई के मुद्दे पर सउदी अरब के साथ भारत के सहयोग का किस प्रकार आकलन करते हैं? भारत इस समस्या का मुकाबला करने के लिए दक्षेस (सार्क)के देशों और खाड़ी देशों के साथ मिलकर कौन से सामूहिक उपाय कर रहा है।
 
उत्तर:  हमारी शांति, स्थायित्व और प्रगति की राह का सबसे बड़ा रोड़ा केवल और केवल आतंकवाद ही है के साथ मिलकर कौन से सामूहिक प्रधान कर रहा है।
विभिन्ऩ पंथों की मान्यताओं की रक्षा करने,शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व,और कानून के राज को बनाए रखने के लिए पूरे विश्व को प्रयास करने होगें।

उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर जी.सी.सी के सभी सदस्य देशों को भारत का साथ देना होगा । हम इस बात को पूर्णतया अस्वीकृत करते हैं कि किसी धर्म या मान्यता के लिए निर्दोष लोगों का खून बहाना न्यायोचित ठहराया जाए। हमनें प्रत्यर्पण संधियां करके तथा सुरक्षा सहयोग करार एवं उपाय करके खाड़ी देशों के साथ अपने सहयोगी रिश्तों को मजबूती प्रदान की है।

दक्षेस (सार्क) एक संगठन के रूप में आतंकवाद से लड़ने के लिए कटिबद्ध है। फरवरी 2009 में हुई दक्षेस मंत्रीपरिषद की बैठक में आतंकवाद से लड़ने के लिए सहयोग के संबंध में एक मंत्रीपरिषद घोषणापत्र जारी किया गया था। इस तथ्य का उल्लेख करते हुए कि मौजूदा समय में उग्रवाद और आतंकवादी गतिविधियों ने दक्षेस और पश्चिम एशिया को हिलाकर रख दिया है तथा ये गतिविधियां हमारे लोगों की जान के लिए गंभीर खतरा बन गई हैं। मैं मानता हूँ कि दक्षेस(सार्क)और जी सी सी देशों को अपने आतंकरोधी प्रयासों को और अधिक कारगर ढंग से समन्वित करना होगा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: जी हॉं, हमें शिक्षा पर अधिक धन खर्च करने की जरुरत है और साथ ही उच्चतर शिक्षा पर भी । हमने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आई आई टी) की संख्या में वृद्धि की है । हमने भारतीय सूचना और प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या में भी काफी वृद्धि की है । हम अपने उन विश्वविद्यालयों की संख्या में भी वृद्धि करने जा रहे हैं जिन्हें हम अभिनव (इन्नोवेशन) यूनिवर्सिटी कहते हैं । इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि अगले पांच से दस वर्षों के दौरान भारत के उच्चतर शिक्षा के परिदृश्य में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिलेगा ।

हमारी असली समस्या शिक्षण-स्टाफ की गुणवत्ता को लेकर है। हम और अधिक लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में पी एच डी करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहे है। मुझे लगता है कि हमारे प्रयास का कुछ प्रभाव पड़ा भी है लेकिन उस रफ्तार से नहीं जितना हमें अपनी उच्चतर शिक्षा प्रणाली की जरुरतों को पूरा करने के लिए जरुरी है। इसलिए हमे विदेशी विश्वविद्यालयों विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यरत भारतीयों को अपने देश में शिक्षण कार्यों से जुड़ने के लिए कुछ समय निकालने के लिए आकर्षित करने की दिशा में नवीनतम उपाय खोजना भी आवश्यक होगा।

प्रश्न: आपने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अपने भाषण में अनुसंधान के जरिए भारत की विकासपरक जरुरतों का और अधिक समाधान करने का उल्लेख किया था। इस संबंध में एक अच्छा उदाहरण (कृषि वैज्ञानिक) श्री एम.एस. स्वामीनाथन के प्रयासों का है जिन्होंने विज्ञान के लाभों को भारतीय गांवों तक पहुंचाने की बात की है । क्या भारत को उस प्रकार के विज्ञान में और अधिक निवेश करने की जरुरत है, यदि हां, तो इसे कैसे किया जा सकेगा?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: जी हां, हमें अपनी कृषि के विकास पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरुरत है। कृषि से ग्रामीण क्षेत्र के विकास को गति प्राप्त होगी जिससे हमारे वैज्ञानिकों को जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के विकास के क्षेत्र में, पर्यावरणानुकूल प्रौद्योगिकियों के विकास में और संचारी रोगों से संबंधित अनुसंधान के विकास पर कार्य करने का अवसर प्राप्त होगा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साइंस पत्रिका के प्रधान संपादक ब्रूस अलबर्ट्स तथा सहयोगियों के साथ इंटरव्यू में जी एम खाद्य पदार्थों”, परमाणु कार्यकलापों और चीन के संबंध में अपने विचारों को स्पष्ट तथा निष्पक्ष रुप से प्रस्तुत करते हुए।

हमें अनुसंधान और विकास पर बहुत अधिक ध्यान देना है ताकि संचारी रोगों की समस्या से निपटा जा सके। हम दोहरी मार का शिकार हैं। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो केवल विकासशील देशों में ही देखने के मिलती हैं लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां भी होती हैं जिनका विकास के स्तर से कोई लेना-देना नहीं है और इन दोनों ही क्षेत्रों में हमारे लिए काम करने के अवसर मौजूद हैं।

मैं प्राय: दूसरी हरित क्रांति के संबंध में जिन समस्याओं का जिक्र करता रहा हूं भारतीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को अधिक उत्पादक बनाने में  उन्हीं समस्याओं पर अधिक रचनात्मक रुप से चिंतन करना होगा । हमे शुष्क भूमि में की जाने वाली खेती की उत्पादकता को बढ़ाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसका अर्थ है कि हमें पानी और ऊर्जा दोनों की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों पर अधिक ध्यान तथा महत्व देना होगा।

प्रश्न: बी टी बैंगन की खेती के मामले पर आपकी सरकार ने चुप्पी क्यों साध रखी है?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह:  जैव प्रौद्योगिकी में अपर संभावनाएं मौजूद हैं । समय आने पर हमें अपनी कृषि पैदावार को बढ़ाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग टैक्नोलोजी का सहारा लेना ही होगा । लेकिन इस संबंध में कुछ विवाद भी हैं । कुछ गैर सरकारी संगठन ऐसे हैं जिन्हें अक्सर संयुक्त राज्य और स्केंडेदियाई देशों से पैसा मिलता है और वे हमार देश की विकास संबंधी उन चुनौतियों का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं जिसका भारत सामना कर रहा है । लेकिन हम चीन की तरह नहीं है, हमारे यहां लोकतंत्रिक व्यवस्था है।

आपको पता ही होगा कि भारत में कुडनकुलम (दक्षिण भारत) में क्या हो रहा है। यहां पर एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन के कारण 1000 मेगावाट वाले दो परमाणु रिएक्टरों के चालू करने का कार्य रोकना पड़ा है । इन गैर सरकारी संगठनों के कारण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम खटाई में पड़ गया है । मैं समझता हूं कि ये अधिकांश गैर सरकारी संगठन संयुक्त राष्ट्र अमरीका में स्थित हैं और वे हमारे देश के लिए ऊर्जा की आपूर्ति को बढ़ाने की जरुरत पर ध्यान ही नहीं देना चाहते हैं।

प्रश्न: जापान में फुकुशिमा परमाणु आपदा के बाद भी क्या आप भारत में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को स्वीकार करना चाहेंगे ?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: जी हां, जहां तक भारत का संबंध है, हमारे समाज का चिंतनशील वर्ग निश्चित रुप से परमाणु ऊर्जा के समर्थन में है।

प्रश्न: विज्ञान कांग्रेस में आपने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि विज्ञान में चीन भारत से आगे है । क्या आप चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह:  इस सवाल का जवाब हां भी है और न भी । भारत और चीन दोनों ही विकास की अवस्था में हैं जहां हमें एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा भी करनी है और सहयोग भी करना है । हम दोनों देश विश्व के सबसे बड़े विकासशील देश हैं ओर साथ ही सबसे अधिक तेजी से प्रगति करने वाले देश भी हैं । चीन हमारा निकटतम पड़ोसी है। ये बात और है कि विगत में साठ के दशक में हम दोनों देशों के बीच कुछ समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं । परंतु आज हम आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं।

प्रश्न: भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान पर बहुत भारी धनराशि खर्च की है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: जी, और हमें इसके बेहतर परिणाम भी प्राप्त हुए है।

प्रश्न: भारत भारत भूमि से भारतीय राकेटों का प्रयोग करके भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजना चाहता है । क्या आप इसका समर्थन करते है ।

प्रधानमंत्री मनमाहेन सिंह: जी, हमने ‘चंद्रयान चंद्र मिशन’ का समर्थन किया हैं । जहां तक मैं समझता हूं, उपग्रह प्रौद्योगिकी और रॉकेट प्रौद्योगिकी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के बेहतरीन उदाहरण हैं । और इस दिशा में हमें और अधिक कार्य करने की जरुरत है।

प्रश्न:  लेकिन भारतीयों के अंतरिक्ष में जाने के कार्यक्रम के बारे में आपका क्या कहना है ? भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 2.5 विलियन डालर की मांग कर रहा है । आप समेकित विकास की बात कर रहे हैं । इस समेकित विकास में मानव भारतीय यात्री अंतरिक्ष में भेजने को आप कैसे समायोजित करेंगे ?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: देखिए, अंतत: विज्ञान और प्रौद्योगिकी को हमारे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने के एक साधन के रुप में देखा जाना जरुरी है। अब यदि सूचना प्रौद्योगिकी को हमारे देश के विकास, विशेषकर, विकास के समेकित स्वरुप को बढ़ावा देने के रुप में देखा जा सकता है, तो मैं समझता हूं कि लोग अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को भी प्राचीन समय से व्याप्त हमारी निर्धनता, अज्ञानता और बीमारियों को दूर करने वाली नई तकनीक के रुप में देखेंगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी हमारी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के नए सार्थक मार्गों की तलाश करने के आधार भूत साधन हैं।

प्रश्न: आप अगले बीस वर्षों में भारतीय विज्ञान का भविष्य कैसा देखते हैं?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: भारतीय विज्ञान का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि हम नई ऊंचाइयों को छुएंगे, हम नए-नए क्षेत्रों की खोज करेंगे और अधिक से अधिक युवा वर्ग विज्ञान को कैरियर के रुप में अपनाएंगे। और पहले की तुलना में बेहतर परिवर्तन दिखाई देने लगे हैं।

हमें आशावादी बनना होगा। गरीब देशों में जब तक कोई आशावादी नहीं होगा तब तक वह विकास के अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के विचार से अभिभूत नहीं होगा।