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प्रधानमंत्री का मैक्किंज़े क्वार्टरली साक्षात्कार

भारत का आर्थिक एजेंडा : प्रधानमंत्री का मैक्किंज़े क्वार्टरली साक्षात्कार

प्रधानमंत्री ने भारत से गरीबी और बीमारी को समाप्त करने के लिए बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने से संबंधित अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा की।

रजत के. गुप्ता

मैक्किंज़े क्वार्टरली, 2005 विशेष संस्करण: भारत का वादा पूरा करना

भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने उस काम को पूरा करना चाहते हैं, जो उन्होंने 1991 में शुरू किया था।  तब, नई सरकार में वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की पहल की, जो भारत को दिवालिएपन के कगार से वापस ले आए और इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया। जो परिवर्तन किए गए, उनमें रुपए का अवमूल्यन करना, नौकरशाही व्यापार परमिट प्रणाली के दोषों को समाप्त करना, जिसे लाइसेंस राज कहा जाता है, और पूरी तरह से बंद अर्थव्यवस्था को विदेशी कंपनियों के लिए खोलना है।  उनके द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को बाद की राष्ट्रीय सरकारों द्वारा भी आगे बढ़ाया गया, जिनसे भारत की समृद्धि और सम्मान बढ़ा।

श्री सिंह मई, 2004 में प्रधानमंत्री बने, जब कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में आश्चर्यजनक रूप से विजय मिली। लेकिन कांग्रेस की विजय ऐसे आर्थिक सुधारों के खिलाफ लोकलुभावन प्रतिक्रिया का परिणाम था, जिन्हें कुछ लोगों को ही लाभ पंहुचाने वाले के रूप में देखा जा रहा था, जबकि भारत के 1.1 अरब लोगों में से अधिकांश गरीब बने रहे, और पार्टी कमजोर गठबंधन के माध्यम से सत्ता में बनी हुई है। इस पृष्ठभूमि में, कुछ लोगों ने प्रश्न किया कि क्या सिंह, देश के पहले सिख प्रधानमंत्री और अनुभवी अर्थशास्त्री, सुधार कार्यक्रम को बनाए रख पाएंगे, इसे कमोबेश आगे बढ़ा पाएंगे।

मई 2005 में, प्रधानमंत्री के रूप में एक वर्ष पूरा करने के बाद, सिंह ने स्वमूल्यांकन करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियों को दस में से छह अंक दिए और इसे असंतोषजनक प्रदर्शन कहा।  रजत के. गुप्ता, मैक्किंज़े स्टामफोर्ड ऑफिस के निदेशक, ने 16 अगस्त, 2005 अर्थात स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्र के नाम अपने वार्षिक संबोधन के एक दिन बाद सिंह से देश की संभावनाओं के बारे में बात की।

द क्वार्टरली: प्रधानमंत्री महोदय, देश के लिए आपकी क्या आकांक्षाएं हैं और आपके विचार से भारत ने क्या प्रगति की है? आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?

मनमोहन सिंह: पहली और सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता उन अधूरे कार्यों को पूरा करने की है, जो हमारे गणराज्य के संस्थापकों ने आजादी के समय हमारे लिए नियत किए थे । फिर चिरकालिक गरीबी, अज्ञानता और बीमारी से छुटकारा पाने की जिससे हमारे लाखों और करोड़ों लोग पीड़ित हैं।  काफी प्रगति कर ली गई है। विशेष रूप से, पिछले 20 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ, सामाजिक स्तरों और विकास में सुधार हुआ है, लेकिन हमें जहां होना चाहिए था वहां हम अभी भी नहीं हैं। अगले 5 से 10 साल न केवल आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अपितु यह सुनिश्चित करने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है कि इस त्वरित आर्थिक विकास का लाभ वस्तुतः हमारे समाज के सबसे गरीब तबके तक पहुंचे। हमें प्रतिवर्ष लगभग 7 से 8 प्रतिशत विकास दर की जरूरत है, जो अगले 10 से 15 साल तक लगातार बनी रहनी चाहिए। हम कृषि क्षेत्र में और भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचे के मजबूत प्रदर्शन के द्वारा इस विकास दर को प्राप्त कर सकते हैं।  ये हमारी मुख्य प्राथमिकताएं हैं।

द क्वार्टरली: जब हम अपने क्लाइंटों से बात करते हैं, तो उनका पहला प्रश्न बुनियादी ढांचे के बारे में होता है।  क्या भारत ने इस क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति की है?

मनमोहन सिंह: हमें अपने बुनियादी ढांचे में सुधार करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।  हमने काफी प्रगति की है।  सड़क प्रणाली का आधुनिकीकरण सुनिश्चित करने के लिए कार्य किया जा रहा है।  हमारी रेलवे प्रणाली को भी बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। हम मुंबई - दिल्ली, मुंबई - चेन्नै और दिल्ली - कोलकाता के बीच फ्रेट कॉरिडोर का आधुनिकीकरण करने के लिए जापान सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हमारा अनुमान है कि इसमें 25 हजार करोड़ रुपये [5.7 बिलियन डॉलर] खर्च होंगे, और जहां तक रेलवे प्रणाली का संबंध है, यह हमारी उच्च प्राथमिकता है।  हमें बड़े पैमाने पर अपने हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बंगलौर में एयरपोर्ट सुविधाओं का आधुनिकीकरण और विस्तार करने के लिए योजनाओं पर पहले से ही कार्य चल रहा है।  हम अपने बंदरगाहों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में भी जुट गए हैं। निजीकरण, सरकारी- निजी भागीदारी, और नई पहल के कार्य की कोशिश की गई है।

मेरा अपना अनुमान है कि हमें अपने देश में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए अगले सात से आठ वर्षों में लगभग 150 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी, जो आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के बराबर है जिसका सामना हम कर रहे हैं।  मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सब कुछ अपनी जगह ठीक है, लेकिन मैं सोचता हूं कि पिछले वर्ष, जब हम सत्ता में थे तब हमने सरकारी-निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से नए तरीके तलाशने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी थी, ताकि बुनियादी ढांचा तैयार करने की जो हमारी महत्वाकांक्षा है, उसे प्राप्त करने योग्य लक्ष्य बनाया जा सके।

द क्वार्टरली: आपने '90 के दशक की शुरूआत में सुधार की प्रक्रिया शुरू की थी, और इसमें कुछ उतार-चढ़ाव भी आए थे। उस एजेंडे का एक मद निजीकरण था। मैं जानना चाहता हूं कि आपकी प्राथमिकताओं में यह कहां आता है और आप इस दिशा में कैसे आगे बढ़ते हैं?

मनमोहन सिंह: हम गठबंधन सरकार हैं, और किसी न किसी रूप में यह हमारे विकल्पों को सीमित कर देता है। निजीकरण ऐसा ही क्षेत्र है। जैसा कि किसी ने कहा है, राजनीतिज्ञ बनने से पहले राजनेता के लिए लंबे समय तक पद पर बने रहना आवश्यक है,  इसलिए हमें ये समझौते करने पड़े। जहाँ तक लाभप्रद सार्वजनिक उद्यमों का संबंध हैं, खासकर उनका, जो बेहद अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, हमें नहीं लगता कि उनका निजीकरण किया जाना चाहिए। लेकिन यदि ये उद्यम अपने विस्तार के लिए संसाधन जुटाना चाहते हैं, तो वे बाजार में उतरने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यूनतम साझा कार्यक्रम, जिसे हमने अपने कामों के लिए बेंचमार्क बनाया है, उसमें नवरत्नों के बारे में कहा गया है। ये नवरत्न मूलतः तेल क्षेत्र और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियां हैं, जो वास्तव में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं,  उनके खुद के विस्तार के लिए धन जुटाने के लिए बाजार में उतरने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हमारे विकल्प सीमित हैं, जैसा न्यूनतम साझा कार्यक्रम में वर्णित है।

लेकिन नवरत्नों के अलावा, जैसा मैं इसे देखता हूं, यह क्षेत्र व्यापक रूप से खुला है। ऐसे उद्यम जो, नवरत्न नहीं हैं, यदि हम उनका निजीकरण करना चाहते हैं, अगर हम चाहते हैं कि उनमें अधिक निवेश हो, तो मुझे लगता है कि सभी विकल्प खुले हैं। लेकिन मैं आपके सामने यह अवश्य स्वीकार करना चाहूंगा कि मौजूदा परिवेश में, हमारे गठबंधन की सोच है कि जो उद्यम प्रतिस्पर्धात्मक स्थितियों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, तो हमारे पास, अपने गठबंधन सहयोगियों को यह साबित करने का विशेष औचित्य होता है कि निजीकरण एक आवश्यकता है।

द क्वार्टरली: क्या आप विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की प्रगति से खुश हैं? और विशेष रूप से, आप खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बारे में क्या महसूस करते हैं?

मनमोहन सिंह: मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि भारत को वर्तमान की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की जरूरत है, और हमारी इच्छा भी उसी लीग (समूह) में शामिल होने की है, जिसमें हमारे कई पड़ोसी देश शामिल हो रहे हैं।  संभवतः हम वहां तक नहीं पहुंच पाए जहां आज चीनी पंहुच गए हैं, लेकिन ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भूमिका के बारे में नहीं सोचें, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में, जहां निवेश की बहुत अधिक आवश्यकता है।  हमें नई पहल, प्रबंधन कौशल की जरूरत है, और मुझे विश्वास है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

खुदरा व्यापार के संबंध में, मैं आश्वस्त हूं कि हम एक ऐसे उचित पैकेज पर काम कर सकते हैं, जिसमें विदेशी उद्यमों के खुदरा व्यापार में प्रवेश से हमारे छोटे दुकानदारों के हितों को चोट नहीं पहुंचेगी, बल्कि इससे बहुत अधिक रोजगार पैदा होगा।  हमें अपने राजनीतिक सहयोगियों को विश्वास दिलाना है।  मुझे विश्वास है कुछ समय बीतने पर हम ऐसा कर सकते हैं। फिलहाल, हमें अपने राजनीतिक सहयोगियों को यह विश्वास दिलाना है कि यह रास्ता अर्थव्यवस्था को विकास पथ पर अग्रसर करने का और रोजगार के नए अवसर सृजित करने का है - न कि हमारे देश के छोटे दुकानदारों के हितों को नुकसान पहुंचाने की रणनीति। अभी मैं यह काम नहीं कर रहा हूं। अगले चार या पांच महीनों में, मैं इस कार्य में जुट जाऊंगा।

द क्वार्टरली: सुधार की प्रक्रिया में श्रमिक सुधार भी अवश्य शामिल होंगे। मैं जानना चाहता हूं कि आप इस के बारे में क्या महसूस करते हैं, खासकर अर्थव्यवस्था को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए श्रमिकों को नए सिरे से प्रशिक्षण और दिशा निर्देश देने के बारे में।

मनमोहन सिंह: सब से पहले, हमे इसमें अंतर करना होगा। जब हम श्रम सुधारों के बारे में बात करते हैं, तो हम मूलतः अपने लगभग 10 प्रतिशत श्रमिकों के बारे में बात कर रहे होते हैं, जो तथाकथित संगठित क्षेत्र से हैं। इस 10 प्रतिशत के अलावा, शेष 90 प्रतिशत के लिए हमारा श्रम बाजार पूरी तरह से लचीला है। बाजार में सामान्य कानून ही चलते हैं। यहां तक कि इस संगठित क्षेत्र के अंतर्गत भी, सार्वजनिक क्षेत्र में यह समस्या काफी गंभीर है। निजी क्षेत्र में, ज्यादातर लोगों ने मुझे बताया कि वे मजदूर संघों के साथ स्वैच्छिक समझौते करने के तौर-तरीके ढूंढ सकते हैं, जिससे जरूरी श्रम संबंधी कानूनों में लचीलेपन की शुरूआत की जा सके।  सार्वजनिक क्षेत्र में, हमारे कानून कठोर हैं, और इसलिए वहां यह समस्या है।

नए उद्यम, विशेष रूप से यदि वे विदेशी-सहायता प्राप्त उद्यम हैं, यह प्रश्न पूछ सकते हैं। और यह वैध प्रश्न है।  अगर साफ-साफ कहें तो, हम जब नौकरी पर रखने और चाहे जब निकालने (हायर और फायर करने) के पश्चिमी या अमेरिकी मॉडल को सीधे-सीधे लागू नहीं कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि आज कोई ऐसी सामूहिक राय बन रही हो, जो इस चरम स्थिति का समर्थन करेगी।  हमें दक्षिण-पूर्व एशियाई और शायद जापान के उदाहरण को देखना चाहिए। जापानियों की लंबे समय तक श्रम प्रबंधन प्रणाली भिन्न थी।

हां, ये हमारी समस्या है, इसमें कोई शक नहीं है।  ऐसे विश्व में, जहां मांग की स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है, प्रौद्यौगिकी की स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है, श्रम बाजार की अत्यंत कठोरता, श्रम बाजार की अनम्यता हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के अनुरूप नहीं है। लेकिन अभी इसकी सीमाएं हैं। हमारे गठबंधन में इस संबंध में व्यापक सहमति नहीं है, जिससे मैं इस दिशा में दृढ़तापूर्वक बड़ा कदम उठा सकूं।  लेकिन मैं मानता हूं कि हमें भरोसेमंद कदम उठाने होंगे । हमारे सहयोगी जो पश्चिम बंगाल में सरकार में हैं. . . श्रम क्षेत्र में लचीलेपन की जरूरत अवश्य महसूस करेंगे।  मेरा काम दिल्ली में हमारे वामदल के सहयोगियों को विश्वास में लेना है। मैंने प्रयास छोड़ा नहीं है, और मुझे विश्वास है कि जब सब बातों पर विचार किया जाता है, तो मैं सोचता हूं कि सुधार को और अधिक व्यापक आधार प्राप्त होगा। हमारा गठबंधन आज लगभग 70 प्रतिशत भारतीय मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है, हमारी गति धीमी हो सकती है, लेकिन अगर हम आम सहमति बना लेते हैं, तो यह किसी अन्य तंत्र की तुलना में, जिसकी मुझे जानकारी है, अधिक टिकाऊ होगा।

द क्वार्टरली: पश्चिम बंगाल सरकार के बारे में यह प्रोत्साहित करने वाली बात है।  मैं समझता हूँ कि वह कई श्रम मुद्दों पर प्रगतिशील है, भले ही वह कम्युनिस्ट सरकार है।

मनमोहन सिंह: यहां तक कि निजीकरण के क्षेत्र में भी वे आगे बढ़ते जा रहे हैं। हमारी भूमिका उनके राष्ट्रीय नेतृत्व को यह आश्वस्त करने की है कि जो पश्चिम बंगाल के लिए अच्छा है, वह बाकी देश के लिए भी अच्छा हो सकता है। मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। मुझे अपने वामपंथी सहयोगियों की देशभक्ति पर पूर्ण भरोसा है और मेरा मानना है कि अंतिम विश्लेषण में, भारत के लिए जो भी अच्छा होगा, वे उसे भी स्वीकार करेंगे।

द क्वार्टरली: सरकार रोजगार के अवसर कैसे पैदा कैसे करेगी, विशेष रूप से यह सुनिश्चित कैसे करेगी कि युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पर्याप्त हैं?

मनमोहन सिंह: हमारी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में हमें रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। अभी भी हमारे श्रम बल का 60 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से जुड़ा है, और मुझे विश्वास है कि हमें अपना उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए दूसरी हरित क्रांति की जरूरत होगी, और मुझे आशा है, इस प्रक्रिया में हम और अधिक रोजगार सृजित करेंगे। लेकिन कुछ समय के बाद लोगों को कृषि से बाहर निकालने में ही हमारा उद्धार है।  आज हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत सेवा क्षेत्र से आता है। बहुत से लोग मुझे बताते हैं कि विनिर्माण क्षेत्र में हो रहा है सेवाएं उससे आगे नहीं बढ़ सकती हैं और यही असंतुलन मेरी चिंता का कारण है।  मुझे लगता है कि हमें विनिर्माण क्षेत्र में और अधिक कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि अंततः सेवाएं उत्पादन क्षेत्र में जो भी घटित होता है, उसका प्रतिफल है।

इसलिए कृषि से हटकर, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में, हमें काफी रोजगार सृजित करने होंगे। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सामान्य शिक्षा और तकनीकी शिक्षा प्रणालियां कार्य की अपेक्षाओं के अनुरूप होनी चाहिए, जिनकी अपेक्षाकृत आधुनिक विनिर्माण क्षेत्र और आधुनिक सेवा क्षेत्र में आवश्यकता होगी।  हमें दोनों पैरों पर चलना होगा। हमें ऐसी स्थितियां सृजित करनी होंगी, जिनमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों - कृषि से बाहर अर्थव्यवस्था - का विकास तेजी से हो।  और इसी समय में ऐसा कुशल कार्य बल उपलब्ध होना चाहिए, जो मांग के अनुरूप कार्य के लिए उपयुक्त हो।

द क्वार्टरली: सरकार विनिर्माण आधार के रूप में भारत को बढ़ावा देने के लिए क्या कर रही है, विशेष रूप से कृषि-व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण को, जो महत्वपूर्ण होने चाहिए?

मनमोहन सिंह: कृषि-व्यवसाय और खाद्य प्रसंस्करण हमारी अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के और हमारी कृषि के आधुनिकीकरण के महत्वपूर्ण अंग हैं और ऐसे चरण की ओर बढ़ रहे हैं, जहां अपेक्षाकृत आधुनिक कृषि से न केवल किसानों को, बल्कि उपभोक्ताओं को भी मदद मिलेगी। मैंने कई उत्पादक कंपनियों से बात की - हिंदुस्तान लीवर से लेकर अन्य तक - तो उन्होंने मुझे बताया कि भारत को एकीकृत खाद्य कानून की जरूरत है। हमने अब बिल तैयार कर लिया है, और इसे संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। इसी मोर्चे पर अगली आवश्यकता के रूप में हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की जरूरत होगी और साथ ही कोल्ड-स्टोरेज सुविधाओं की भी। हमारे पास अगले चार से पांच साल के लिए विस्तार की बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत सभी गांवों में बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। मुझे आशा है कि इससे कृषि-व्यवसाय के प्रबंधन में नई क्रांति आएगी।
 
द क्वाटरली: हमने दुनिया के कई हिस्सों में अनियंत्रित शहरीकरण देखा है, जिससे जीवन-स्तर में वस्तुतः कोई सुधार नहीं होता। सही अर्थों में, कारगर शहरीकरण को बढ़ावा देने की योजना क्या है, क्योंकि आवश्यकता के कारण ग्रामीण आबादी निरंतर शहरों की ओर आ रही है?
 
मनमोहन सिंह: इस काम को बड़े ही नियंत्रित तरीके से किया जाना है।  बड़ी संख्या में लोगों का समय से पहले ग्रामीण क्षेत्रों से आकर शहरी क्षेत्रों में बसने से शहरी बुनियादी ढांचे पर काफी दबाव पड़ सकता है, जो अपराध - कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकता है।  लेकिन हमें स्वीकार करना होगा कि यह [शहरीकरण] विकास की प्रक्रिया और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का अपरिहार्य परिणाम है।
 
हमारे शहरी क्षेत्रों में निवेश पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कल अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में मैंने कहा था कि भारत की 30 प्रतिशत जनसंख्या पहले से ही शहरों में रहती है। महाराष्ट्र जैसे राज्यों में 40 से 45 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है। मुझे उम्मीद है कि अगले 10 से 15 सालों में हम ऐसी स्थिति में होंगे, जहां हमारी 50 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में होगी। हमें शहरी परिवहन प्रणालियों, शहरी ठोस कचरे के प्रबंधन, नई सीवरेज प्रणालियों के लिए नई रणनीतियां बनानी होंगी।
 
इसमें निवेश के लिए अत्यधिक प्रयास करने होंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसमें संसाधनों की कमी आड़े आएगी।  हमारे सांख्यिकीविदों ने मुझे बताया है कि हमारी बचत दर दो-एक वर्ष में बढ़कर हमारे सकल घरेलू उत्पाद के 27 से 28 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसके अलावा, हमारे देश की कुल जनसंख्या में युवा लोगों का अनुपात बढ़ता जा रहा है। सभी जनसांख्यिकी विशेषज्ञ मुझे बताते हैं कि यदि हम इस युवा श्रम बल के लिए उत्पादक रोजगार मुहैया करा सकें, तो इससे ही अगले पांच से दस वर्षों में भारत की बचत दर में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। यदि हमारी बचत दर में, मान लो, अगले दस वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5 प्रतिशत तक वृद्धि होती है, तो हम इस नए शहरी बुनियादी ढांचे के प्रबंधन में निवेश के लिए इतने संसाधन जुटा लेंगे, जिसकी हमें आधुनिकीकरण और विकास की दिशा में हमारे प्रयासों को कामयाब बनाने के लिए आवश्यकता है।

द क्वार्टरली : भारत अपनी आर्थिक सफलता को जारी रखने के लिए प्राथमिक शिक्षा प्रणाली और उच्च शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए क्या कर रहा है? यही प्रश्न स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए भी है। सरकार स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे पर बहुत ही कम व्यय करती है।

मनमोहन सिंह: आप सही कह रहे हैं। राष्ट्र के रूप में, हमें स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक कार्य करना है। लेकिन सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य पर हमारा कुल व्यय अन्य दक्षिण–पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में बहुत कम है और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6 प्रतिशत है। सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में से स्वास्थ्य पर व्यय निजी क्षेत्र में अत्यधिक है। स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारा सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत से भी कम है। कुछ ऐसे उपेक्षित क्षेत्र हैं, जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख जिम्मेदारी है, ये क्षेत्र हैं- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल। हमारे साझा न्यूनतम कार्यक्रम में हमारी महत्वाकांक्षा प्रतिबिंबित होती है, जिसमें अगले चार या पांच वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद के न्यूनतम 2 % करने का लक्ष्य है।

जहां तक शिक्षा का संबंध है, मैं समझता हूं कि उच्चस्तरीय संस्थानों में उत्कृष्ट व्यवस्था (सुपरस्ट्रक्चर) है। भारतीय प्रबंध संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, क्षेत्रीय इंजीनियरी कॉलेज अच्छा कार्य कर रहे हैं। बावजूद इसके, यदि शैक्षिक पिरामिड ठीक नहीं है, तो उससे सीमित लाभ ही मिल पाएगा। इसलिए हम पहली बार यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ प्रयास कर रहे हैं कि अगले चार या पांच वर्षों में सभी बच्चों, विशेष रूप से वंचित परिवारों के बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों को न्यूनतम प्राथमिक शिक्षा का लाभ मिल सके। किंतु इसके परिणामस्वरूप हमें माध्यमिक विद्यालयों की गुणवत्ता में सुधार करना होगा। हमने अपनी माध्यमिक विद्यालय प्रणाली में सुधार की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, और हमारा अगला कदम इस ओर ध्यान देना है। पिछले एक वर्ष में हमने जो कुछ किया है, उससे हमारी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली बेहतर हुई है। अब हमारे पास एक ऐसी प्रणाली है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि स्कूल जाने की उम्र के सभी बच्चे प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हों। किंतु माध्यमिक विद्यालय प्रणाली के लिए व्यापक प्रयास करने की जरूरत होगी और इसके लिए मैं चिंतित हूं।

हम यह प्रयास करेंगे क्योंकि मैं जनता की शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करके जनता के सशक्तीकरण में विश्वास करता हूँ।

मैं दक्षिण कोरिया जैसे देशों की ओर देखता हूं, वहां माध्यमिक विद्यालय जाने की उम्र के सभी बच्चे विद्यालय जाते हैं; हमारे देश के बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही बीच में पढ़ना छोड़ देते हैं। इसलिए, कल, राष्ट्र के नाम संबोधन में, मैंने प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा – दोनों स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने पर अत्यधिक बल दिया है। मैं जनता की शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करके जनता के सशक्तीकरण में विश्वास करता हूं।

जहां तक उच्च शिक्षा और अनुसंधान प्रणाली का संबंध है, मैंने हाल ही में सैम पित्रोदा के अधीन ज्ञान आयोग का गठन किया है, जो यह पता करेगा कि हमारी जरूरत क्या है, हम कहां है, और हमें कहां होना चाहिए। अगले एक या दो वर्षों में हम ज्ञान के क्षेत्र में अपेक्षित ध्यान दे पाएंगे। मैं यह मानता हूं कि जहां तक ज्ञान संबंधी अर्थ तंत्र का प्रश्न है, भारत को संपूर्ण गतिविधियों का केंद्र बनना होगा। हम इस अवसर को खोना नहीं चाहते।

द क्वार्टरली : क्या मैं एक कठिन प्रश्न पूछ सकता हूं? जब भी लोग भारत के विषय में चर्चा करते हैं, प्रत्येक व्यक्ति आवश्यक परिवर्तनों के बारे में स्पष्ट रूप से बात करता है। किंतु अंततः कार्यान्वयन की गति और वास्तविक परिणाम अकसर पीछे रह जाते हैं। आपको नहीं लगता कि देश में पूर्वाग्रह से ग्रसित इस प्रकार का कार्य परिवेश है? क्या आप इससे सहमत हैं, और इसमें बदलाव लाने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?

मनमोहन सिंह: आप सही कह रहे हैं, किंतु यह समझना जरूरी है कि राजनैतिक शून्यता में आर्थिक नीति तैयार करना और निर्णय लेना संभव नहीं है। किसी मूलभूत निर्णय लेने में हमें काफी समय लग जाता है। इसके अलावा, चूंकि समारे यहां संघीय व्यवस्था है, केंद्र सरकार बहुत कुछ करती है, किंतु कई मामले राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण के अधीन हैं, जैसे जमीन, जल, बिजली आदि। राजनैतिक प्रबंधन की दृष्टि से, हम संघीय व्यवस्था के बिना शासन नहीं चला सकते, किंतु मैं मानता हूं कि कई बार इससे लगता है कि हमारी व्यवस्था धीमी गति से चल रही है। ऐसी दुनिया में जहां प्रौद्योगिकी तेजी से बदल रही है, जहां मांग की स्थिति तेजी से बदल रही है, हमें निर्णय लेने की बहुस्तरीय निरर्थक प्रक्रिया को कम करने के लिए एक नवीनतम व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत है।

मैं ऐसे क्षेत्रों की पहचान के बारे में सोच रहा रहूं, जहां हमें अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, इस्पात एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हम भारी मात्रा में धन निवेश करने के बारे में सोच रहे हैं। हमारे घरेलू इस्पात निर्माता इस क्षेत्र में भारी मात्रा में निवेश कर रहे हैं। हमने (दक्षिण) कोरिया को 12 मिलियन टन क्षमता वाले इस्पात संयंत्र निर्माण का कार्य सौंपा है। आरंभ से ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन महत्वपूर्ण निर्णयों पर हम सहमत हुए हैं, उन पर ध्यान दिया जाए - उन्हें कैसे कार्यान्वित किया जाए, क्या कार्य की प्रगति हो रही है, यदि कार्यान्वयन में कोई बाधा आ रही है, तो उन बाधाओं की पहचान की जाए और उन बाधाओं को दूर किया जाए। सभी प्रमुख परियोजनाओं के लिए, मैं इसी तरह कार्रवाई करना चाहता हूं। मैं ऐसा तंत्र विकसित करना चाहता हूं, जिसके अंतर्गत राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मिल कर काम करें - इसके लिए समर्पित अधिकारियों के समूह को मिल कर काम करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सरकार की त्रिस्तरीय प्रणाली बाधा न बने।

द क्वार्टरली: आप वैश्विक प्रबंधकों को क्या संदेश देना चाहेंगे, जैसा कि वे भारत के बारे में सोचते हैं।

मनमोहन सिंह: हमारी महत्वाकांक्षा है कि हमारा देश उभरती वैश्विक आर्थिक शक्ति बने – यह मेरा संदेश भी है। हम वैश्वीकरण के तर्क को स्वीकार करते हैं। हम यह मानते हैं कि वैश्वीकरण हमें विकास की प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा (लीपफ्रॉग रेस) के लिए अनेक अवसर देता है। यह हमें प्रतिस्पर्धा की दौड़ में स्थापित भी करता है जिससे जोखिम कम हो जाता है।

मैं समझता हूं, समग्र रूप से, भारत आज प्रगति के पथ पर है। आर्थिक सुधारों में ही हमारी प्रगति निहित है और इसके लिए उदार समाज, उदार राजनैतिक व्यवस्था, उदार अर्थनीति, अर्थ व्यवस्था की जरूरत है, जिसके लिए व्यापक जन समर्थन है। भारत को विश्व अर्थ व्यवस्था की धारा में शामिल करने के लिए, पंद्रह वर्ष पहले, कांग्रेस सरकार ने आर्थिक उदारीकरण कार्यक्रम प्रारंभ किया था। उसके बाद तीन सरकारें सत्ता में आईं और चली गईं। किंतु आर्थिक नीति की दिशा वर्ष-दर-वर्ष और अधिक उदारीकरण की ओर उन्मुख है। इसकी गति हो सकता है धीमी हो, हो सकता है इतनी भी तेज न हो, जितनी कुछ लोग चाहते हैं, किंतु गति स्पष्ट और निरंतर है। भारत का भविष्य उदार समाज, उदार राजनैतिक व्यवस्था, कार्यकारी लोकतंत्र में निहित है, जहां मानवीय स्वतंत्रता के सभी मूल अधिकारों का सम्मान हो, साथ ही, जहां कानून का शासन हो, ताकि भारत सफल, अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धात्मक बाजार अर्थव्यवस्था के रूप में उभर सके।

लेखक का परिचय

रजत गुप्ता पहले मैककिनसे के प्रबंध निदेशक रहे हैं और स्टैमफोर्ड कार्यालय में निदेशक रहे हैं।