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न्यूजवीक़

साक्षात्कारकर्ता (मिस एलिजाबेथ ग्राहम वेमाउथ): प्रधानमंत्री महोदय आप संयुक्त राज्य अमरीका जाने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।

प्रधानमंत्री (डा. मनमोहन सिंह): हां, चार दिन में।

साक्षात्कारकर्ता: जब आप अमरीकी-राष्ट्रपति ओबामा से मिलेंगे तो आप क्या कहना चाहेंगे ?

प्रधानमंत्री: हम रणनीतिक भागीदार हैं। हमारे अच्छे संबंध हैं। लेकिन अमरीका में नया प्रशासन है । यह हमारी दूसरी पंचवर्षीय अवधि है। इसलिए यह उचित होगा कि मैं अपनी भागीदारी को पुन: प्रारंभ करुं । मुझे विश्वास है कि विश्व में ज्यादा सुरक्षा एवं सतत विकास के लिए परस्पर सहमति से चिरस्थायी भागीदारी बनाने के लिए राष्ट्रपति ओबामा एवं उनके प्रशासन के साथ हम काम कर सकते हैं ।

साक्षात्कारकर्ता: अच्छा, आपका वाशिंगटन जाने का यह उद्देश्य होगा ?

प्रधानमंत्री: हां, इस बात को मैं संक्षेप रुप में प्रस्तुत करना चाहूंगा।

साक्षात्कारकर्ता: लेकिन लोगों का कहना है कि आप अंतरिक्ष में भागीदारी यानि आप एक नई हरित क्रांति की घोषणा कर सकते हैं । महोदय, क्या आप मुझे और मेरे पाठकों को इस संबंध में अपने विचार बताएंगे कि भविष्य में भारत और संयुक्त राज्य अमरीका एक दूसरे को किस प्रकार सहयोग करेंगे ।

प्रधानमंत्री: सर्वप्रथम,  हमारा परमाणु सहयोग पर अमरीका के साथ समझौता और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक करार हुआ था। हम इसे कार्यान्वित करना चाहेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि परमाणु करार पूर्णतया फलीभूत हो जाए। मुझे विश्वास है कि जब हमारे लिए दोहरे प्रयोग वाली प्रौद्योगिकी के अंतरण की बात होगी तो हम अमरीकी प्रशासन को ज्यादा उदार बनाने के लिए राजी कर सकते हैं। अब जबकि हम रणनीतिक भागीदार हैं तो इन प्रतिबंधों के कोई मायने नहीं हैं। सामूहिक विनाश के लिए प्रचुर मात्रा में हथियारों के निर्माण में भारत के भागीदार न होने का, बेदाग रिकॉर्ड रहा है। इसलिए यह मेरे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है।

साक्षात्कारकर्ता:  तो आप उस समझौता करार के बारे में बात कर रहे हैं जिस पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करेंगे और काग्रेंस के पास भेजेंगे।

प्रधानमंत्री: जी हों।

साक्षात्कारकर्ता: और आपकी तरफ से, मुझे विश्वास है, आपकी संसद एक देयता करार पारित करने वाली है। क्या यह सही है?

प्रधानमंत्री: हम ऐसा करेंगे । हमारा मंत्रिमंडल निर्णय लेगा । मुझे नहीं लगता कि हमारी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में कोई कठिनाई होगी।

साक्षात्कारकर्ता: क्या आप को यह चिंता है कि अमरीका इस करार पर सहमत होगा या नहीं ?

प्रधानमंत्री: हमें कोई चिंता नहीं है लेकिन हम इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए इस प्रशासन का सकारात्मक समर्थन चाहेंगे।

साक्षात्कारकर्ता: असैनिक परमाणु सौदे को आगे बढ़ाने के लिए?

प्रधानमंत्री: हां, मैंने यह भी कहा कि यह भारत के सतत विकास एवं नई वैश्विक व्यवस्था के लिए भागीदारी है जिसे एक नए संतुलन की तलाश है । भारत और अमरीका मिलकर साम्य पूर्ण, संतुलित, वैश्विक व्यवस्था पर ध्यान देगें । 

साक्षात्कारकर्ता:  इसका सही अर्थ क्या है?

प्रधानमंत्री: सतत विकास के कर्इ संघटक हैं । ऊर्जा सहयोग है- हम अमरीका के साथ ऊर्जा सहयोग, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को सुदृढ़ करना चाहेंगे। इसी प्रकार खाद्य सुरक्षा चिंता का विषय है । हम अपने देश में दूसरी हरित क्रांति लाना चाहते हैं । प्रथम हरित क्रांति प्रोद्योगिकी ने, जो अमरीका के सरकारी क्षेत्र का उपोत्पाद थी, भारतीय कृषि का रुप बदलने में प्रमुख भूमिका निभार्इ । हमें अब भी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दूसरी हरित क्रांति लानी होगी । इसलिए कृषि के क्षेत्र में सहयोग, विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी के क्षेत्र मे सहयोग, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग, देशव्यापी महामारी से निपटने में हम दो देशों के बीच में सहयोग सुनिश्चित करना, मैं इन सभी मुद्दो पर राष्ट्रपति ओबामा के साथ बातचीत करने का प्रस्ताव रखूंगा और मुझे विश्वास है कि हम दोनों इन प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने के लिए सहमत हो सकेंगे ।

साक्षात्कारकर्ता: मुझे आज सुबह जनरल पेट्रॉस से ई-मेल प्राप्त हुआ । जिन्होंने कहा कि वे आपसे कभी नहीं मिले लेकिन उन्होंने अपनी शुभकामनाएं आपको भेजी ।

प्रधानमंत्री: कृपया मेरी शुभकामनाएं उन्हें भेजें ।

साक्षात्कारकर्ता: मैं स्पष्ट रुप से यह प्रश्न पूछना चाहता हूं कि आप अफगानिस्तान को किस नज़रिए से देखते हैं। क्या आपको लगता है कि अमरीका इस विवाद में शामिल नहीं होगा ?  और भारत के लिए इसमें क्या मुश्किलें है ?

प्रधानमंत्री: मुझे पूरा भरोसा है कि अमरीका और पूरा विश्व अफगानिस्तान के मुद्दे पर एकजुट होगा । अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से विश्व भर के लिए विशेषकर दक्षिण एशिया, मध्य एशिया ओर मध्य पूर्व के लिए गंभीर परिणाम होंगे। अफगानिस्तान में धार्मिक कट्टरता की जीत से विश्व मे शांति और स्थायित्व के लिए दूरगामी परिणाम होंगे ।

साक्षात्कारकर्ता: और आप यह सोचते हैं कि यदि हम अपनी प्रतिबद्धता को पूरा नहीं करते है तो ऐसा होगा ।

प्रधानमंत्री: मैं इस बात को इस प्रकार से कहूंगा, 1980 के दशक में धार्मिक कट्टरता का प्रयोग सोवियत संघ को हराने के लिए किया गया था । यह उन्हीं लोगों का समूह है। यदि उन्होंने सोवियत संघ को हराया और अब वे दूसरी प्रमुख शक्ति को हराते हैं, तो उन्हें बढ़ावा मिलेगा । जिसके पूरे विश्व के लिए व्यापक स्तर पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं ।

साक्षात्कारकर्ता: हां दूसरे शब्दों में कहें तो यदि अब उन्होंने अमरीका को हटाया तो इससे उन्हें बढ़ावा मिलेगा और इसलिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।

प्रधानमंत्री: हां, यह बात सही है ।

साक्षात्कारकर्ता: इसीलिए यह अफगानिस्तान के भविष्य के बारे में आपकी चिंता का विषय है ।

प्रधानमंत्री: नि:संदेह हमारी कोई तात्कालिक चिंता नहीं है क्योंकि हम आतंकवाद के शिकार हैं। इस प्रकार की उग्रवादी विचारधाराएं जो तालिबान की हैं यदि उन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो हमारे देश में भी अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।

साक्षात्कारकर्ता: दूसरे शब्दों में कहें तो  आपकी राय से क्या राष्ट्रपति सैन्य दल भेजेंगे जैसे कि जनरल एम सी क्रिस्टल ने मांग की है ।

प्रधानमंत्री: मैं सैन्य रणनीतियों का विशेषज्ञ नहीं हूं । मुझे यह जानकारी नहीं है कि जमीनी सैन्य स्थिति क्या है । हालांकि मुझे सुनने को मिला है कि सैन्य स्थिति काफी चिंताजनक है । अमरीका के सैन्य दलों की संख्या के बारे में मुझे निश्चित जानकारी नहीं हैं, लेकिन यह बहुत जरुरी है कि सुरक्षा प्रदान करने और सतत विकास के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और पूरे विश्व को अफगानिस्तान के साथ जुड़े रहना होगा।

साक्षात्कारकर्ता: क्या आपके ख्याल से अमरीका में लोग अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान के बीच संबंध होने की बात मानते हैं ? आपके ख्याल से क्या उनके बीच निकट संबंध हैं?

प्रधानमंत्री: बिल्कुल हैं, मेरा मतलब है कि ये दोनों शाखाएं है, यानि एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं ।

साक्षात्कारकर्ता: कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है’ लेकिन मेरा मानना है इनका बहुत गहरा संबंध है, जैसा कि आपने कहा ।

प्रधानमंत्री: यह बिल्कुल सही है ।

साक्षात्कारकर्ता: राष्ट्रपति करज़र्इ के बारे मे आपके क्या विचार हैं ? अमरीका में इनकी बहुत आलोचना होती रही है । मेरे ख्याल से भारत इनका समर्थक रहा है ।

प्रधानमंत्री: मेरा मानना है कि राष्ट्रपति करजई की शासन व्यवस्था सही नहीं है । उसमें खामियां हैं, यहां शासन व्यवस्था में सुधार से जुड़ी समस्याएं हैं । लेकिन आप एक रात में अफगानिस्तान का चेहरा नहीं बदल सकते । इसमें लंबा समय लगेगा । लोकतंत्र को, जैसा कि पश्चिमी देश समझते हैं, अफगानिस्तान में कम समय में ले आना मुमकिन नहीं है । लेकिन यह सच्चार्इ है कि अब लाखों अफगानी बच्च़े, लाखों लड़कियां स्कूलो में पढ़ रही हैं लेकिन जब तालिबान सत्ता में था तब कोई स्कूल नहीं जा पाता था । मानव स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए एक संतुलित राय रखनी होगी । अब राष्ट्रपति करजई पुन: निर्वाचित हुए हैं । मेरे विचार से समय आ गया है जब वैश्विक समुदाय को अफगानिस्तान को एक स्थायी, उद्देश्यपूर्ण और अपेक्षाकृत भ्रष्टाचार रहित प्रशासन व्यवस्था प्रदान करने के लिए उनके पीछे एकजुट हो जाना चाहिए ।

साक्षात्कारकर्ता: अब आपके उत्तरी क्षेत्र के पड़ोसी देश पाकिस्तान के बारे में आपके क्या विचार हैं ? वहां की स्थिति के बारे में आपका क्या कहना है ? कुछ लोगों का कहना है कि वहां असैनिक शासन व्यवस्था वस्तुत: सत्ता खोती जा रही है । इस स्थिति के बारे में आपकी क्या राय है ?

प्रधानमंत्री:- हम पाकिस्तान में आंतकवाद के बढ़ने से चिंतित हैं। हम लंबे समय से पाकिस्तान द्वारा पोषित आंतकवाद के शिकार रहे हैं। और यदि अब इसके अलावा तालिबान और अलकायदा प्रकार का आंतकवाद, जो पहले पाकिस्तान के एफ.ए.टी.ए क्षेत्र में स्थित था, पाकिस्तान के मुख्य इलाके यानि पंजाब में स्थानांतरित हो गया, जो कि हमारे पंजाब के पड़ोस में है – तो इससे हमारी अपनी सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

साक्षात्कारकर्ता: यानि, आपका कहना है कि एफ.ए.टी.ए में एक प्रकार की अस्थिरता है.................

प्रधानमंत्री:- हम नहीं चाहेंगे कि आतंकवाद उस हालात में पहुंचा दे जहां असैनिक शासन नाममात्र का शासन बन कर रह जाए ।

साक्षात्कारकर्ता: आपके ख्याल से अभी भी यही स्थिति नहीं है ?

प्रधानमंत्री:- मैं यह नहीं कहता कि अभी यह स्थिति है। हम चाहेंगे कि पाकिस्तान में लोकतंत्र कामयाब हो। हम चाहेंगे कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की सामान्य प्रक्रिया पूर्ण रुप से लागू हो। लेकिन साफ तौर पर अब अलकायदा और आतकवादियों ने पाकिस्तान के कई इलाकों में अपनी पकड़ बना रखी है जो हमारे लिए चिंता का विषय है।

साक्षात्कारकर्ता: यह गंभीर मुद्दा है ?

प्रधानमंत्री:- बिल्कुल, यह गंभीर मुद्दा है ।

साक्षात्कारकर्ता: अत: यह जानना नामुमकिन है लेकिन क्या आपके ख्याल से पाकिस्तानी इस समस्या से उबरने की भरसक कोशिश कर रहे हैं ? या आपके ख्याल से जितनी कोशिश उन्हें करनी चाहिए उतनी नहीं कर रहे ?

प्रधानमंत्री: मैं कहना चाहूंगा कि जहां तक अफगानिस्तान का संबंध है हमारा मानना यह है कि मै पक्के तौर पर यह नहीं कह सकता हूं कि अमरीका तथा पाकिस्तान के इरादे एक ही हैं । पाकिस्तान चाहेगा कि अफगानिस्तान उसके नियंत्रण में रहे, उसके भारी दबाव में रहे। वे चाहेंगे कि अमरीका जितनी जल्दी हो सके इस मामले से बाहर हो  जाए।

साक्षात्कारकर्ता: पाकिस्तान चाहेगा कि अमरीका बाहर हो जाए।

प्रधानमंत्री:- मेरे ख्याल से अमरीका का इरादा और पाकिस्तान का इरादा एक नहीं है।

साक्षात्कारकर्ता: क्योंकि पाकिस्तान चाहेगा कि अमरीका बाहर हो जाए तथा अमरीका चाहेगा कि पाकिस्तान किसी नियंत्रण मे रहे। आप यही कहना चाह रहे हैं न प्रधानमंत्री महोदय ?

प्रधानमंत्री: मेरा यह कहना है कि अमरीका का उद्देश्य अफगानिस्तान में तालिबान के संबंध में कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान का सहयोग प्राप्त करना है। लेकिन पाकिस्तान को मैं पूरे मन से अफगानिस्तान में तालिबान के विरुद्ध कार्रवाई करने के समर्थन में नहीं देखता। नि:संदेह वे तालिबान के विरुद्ध तभी कार्रवार्इ करते है जब सेना की आधिपत्य खतरे में हो । लेकिन है ऐसा ही।

साक्षात्कारकर्ता: दूसरे शब्दों में, वे केवल पाकिस्तानी तालिबान के विरुद्ध कार्रवाई कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री:- बिल्कुल सही।

साक्षात्कारकर्ता: अत: निर्णयात्मक रुप से संभवत: भारत और अमरीका दोनों देश अपने शत्रुओं, अर्थात् तालिबान के विरुद्ध किसी न किसी प्रकार के सहयोग के साथ आगे आ पाएंगे ।

प्रधानमंत्री:- मैं कहना चाहूंगा कि हमने अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जबरदस्त मौजूदगी का समर्थन किया है । हमने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण तथा विकास के लिए पर्याप्त राशि यानि लगभग 1.2 बिलियन डालर की राशि के संसाधन मुहैया कराए है । निस्संदेह हम सेनाएं उपलब्ध नहीं करा पाए लेकिन हम अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास के लिए और अधिक सहायता करना चाहेंगे । हमें विश्वास है कि हम इस क्षेत्र के लिए और अधिक कर सकते हैं तथा अफगानिस्तान के अन्य बहुत से सहायतादाताओं की अपेक्षा ज्यादा कारगर ढंग से कर सकते हैं ।

साक्षात्कारकर्ता: आपका मतलब अमरीकी और नाटो सेनाओं को रसद पहुंचाना? या यह गलत उदाहरण है ?

प्रधानमंत्री: हम अफगानिस्तान में बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में सक्रिय हैं । हम स्कूलों, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, बिजली संबंधी सुविधाओं को सुदृढ़ करने में लगे हुए हैं । ये वे क्षेत्र हैं जहां हम अफगानिस्तान की मदद करने में सक्षम हैं और हम इसके लिए और अधिक करना चाहेंगे ।

साक्षात्कारकर्ता: मेरे विचार से अमरीका में लोग, जो समझदार लोग है, वस्तुत: नहीं समझ पा रहे हैं कि हम अफगानिस्तान में क्या कर रहे हैं । मैं यह जानने का इच्छुक हूं कि जब आप अमरीका में होते हैं तो आप क्या सोचते हैं । मैं स्टेट विभाग या रक्षा विभाग में लोगों के बारे में बात नहीं कर रहा हूं बल्कि आम जनता की बात कर रहा हूं जो कि मेरे ख्याल से राष्ट्रपति के लिए एक समस्या होगी ।

प्रधानमंत्री:- मैं आशा करता हूं कि अमरीका जनता सब समझती है कि इन सबकी शुरुआत कहां से हुई, यानि 9/11 के बाद से । यदि अल कायदा को अफगानिस्तान में आश्रय नहीं मिलता तो हो सकता है  9/11 की घटना न घटती । ईश्वर न करे कि अल-कायदा को अफगानिस्तान में एक बार फिर आश्रय मिले ।

साक्षात्कारकर्ता: और आपका मानना है कि यही होगा?

प्रधानमंत्री:- हां, यह हो सकता है। मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि ऐसा हो सकता है ।

साक्षात्कारकर्ता: मेरे ख्याल से यह निराशाजनक है क्योंकि बहुत ज्यादा परस्पर समझ नहीं है। मैं कहना चाहूंगा कि इस समय अमरीका ने अपनी बातें बहुत गोपनीय रखी हैं। क्या आप सोचते हैं कि यदि हम मदद वापिस ले लें तो अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ जाएगा।

प्रधानमंत्री: इस बात का खतरा है।

साक्षात्कारकर्ता: मेरा मानना है कि आपके विचार से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान में आतंकवादी गुट हैं।
 
प्रधानमंत्री:- जैसा कि मैंने कहा कि हम लगभग 25 वर्षों से पाकिस्तान द्वारा सहायता प्राप्त, उकसाए गए और उत्तेजित आंतकवाद के शिकार रहे हैं। हम चाहेंगे कि संयुक्त राज्य अमरीका पाकिस्तान को इस रास्ते से हटाने के लिए अपने हर प्रकार के प्रभाव का इस्तेमाल करे। पाकिस्तान को भारत से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैंने कई सार्वजनिक समारोहों में यह कहा है कि हम दोनों देशों की मंजिल एक है । हम दोनों ही गरीबी, अज्ञानता ओर बीमारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं जिनके हम दोनो देशों के करोड़ो लोग शिकार हैं । यह एक त्रासदी है कि पाकिस्तान राज्य नीतियों के साधन के रुप में आंतक का प्रयोग करके इस रास्ते पर आया है। हमें पूरी उम्मीद है कि अमरीका पाकिस्तान के प्राधिकारियों और सशस्त्र बलों के साथ मिलकर पाकिस्तान को इस रास्ते से हटाने के लिए अपने हर प्रकार के प्रभाव का इस्तेमाल करेगा।

साक्षात्कारकर्ता : आपकी ये बात ठीक है। लेकिन यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि आप वॉशिंगटन के दौरे के बाद क्या पाते हैं। आपने शुरूआत में अमरीका-भारत संबंधों पर आतंकवाद से लड़ने में सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग के बारे में कहा था। आपके एजेंडे में और क्या शामिल होगा।?
 
प्रधानमंत्री : परमाणु सहयोग, शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग, हमारे दोनों देशों की विश्वविद्यालयी शिक्षा प्रणाली के बीच बेहतर घनिष्ठ संपर्क, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग, नए टीके विकसित करने के लिए साथ-साथ काम करना।
 
साक्षात्कारकर्ता : कोपेनहेगन और उत्सर्जन (एमिशन) के बारे में आप क्या महसूस करते हैं? क्या आपको लगता है कि उत्सर्जन से निपटने के लिए हमें आपको उपकरण भेजने चाहिए?
 
प्रधानमंत्री : जलवायु परिवर्तन और क्योटो प्रोटोकॉल पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के अनुसार विकसित देशों का यह दायित्व है कि वे भी उत्सर्जन में कमी करने की दिशा में ठोस कार्रवाई करें। और मुझे पूरी उम्मीद है कि कोपेनहेगन में इस बात की पुन: पुष्टि होगी। मैं जानता हूँ, इसमें कठिनाइयां हैं। लेकिन संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व के बिना कोपेनहेगन में कोई सफलता मिलेगी, इसमें मुझे संदेह है।  हम अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं। हालांकि हमारे यहां उत्सर्जन दर संयुक्त राज्य अमरीका की तुलना में 1/10 है, जो वैश्विक औसत के 1/ 10 के बराबर हैं, अगर मुझे सही याद है, तो हमने पहले ही स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की जिम्मेदारी संपूर्ण मनुष्य जाति की है।  इसलिए हमने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई है। हमारे पास आठ जलवायु परिवर्तन मिशन हैं, यदि वे सफल हुए तो उनसे उत्सर्जन में सामान्य रूप से काफी कमी आएगी। 
 
साक्षात्कारकर्ता : दिलचस्प! बड़ी संख्या में अमरीकी लोग ईरान द्वारा परमाणु हथियार प्राप्त करने के बारे में काफी चिंता करते हैं और यह चर्चा का विषय बना हुआ है। मैं जानता हूं कि भारत के ईरान से संबंध हमसे बेहतर हैं। क्या आपको इसकी चिंता है? मुझे पता है कि एक और अघोषित साइट अभी कल पाई गई थी।
 
प्रधानमंत्री : कल मेरे साथ ईरान के विदेश मंत्री थे।
 
साक्षात्कारकर्ता : दिल्ली में?
 
प्रधानमंत्री : हाँ।
 
साक्षात्कारकर्ता : अहा! क्या बात है!
 
प्रधानमंत्री : वह कल दिल्ली में थे।
 
साक्षात्कारकर्ता : अच्छा! बदलाव के लिए अच्छा है!
 
प्रधानमंत्री : हमने परमाणु के प्रश्न पर भी चर्चा की। उन्होंने यह संदेश भी दिया था कि वे ओबामा प्रशासन से प्राप्त हो रहे संदेशों से प्रोत्साहित महसूस करते हैं।  और ईरान के मंत्री ने कल मुझे जो बताया उसमें मुझे आशा की किरण दिखाई पड़ती है।
 
साक्षात्कारकर्ता: हां,  मुझे ऐसा लगता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे देखते हैं।  यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपका लक्ष्य क्या है? क्या आपका लक्ष्य ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकना है?
 
प्रधानमंत्री: मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने प्रासंगिक दृष्टिकोण अपनाया है। ईरान परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्ता है। उसे भी वे सभी विशेषाधिकार प्राप्त होने चाहिए, जो पररमाणु अप्रसार संधि के सदस्य को प्राप्त होते हैं जैसे परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग। परमाणु अप्रसार संधि का सदस्य होने के नाते उसके अपने दायित्व भी हैं। इसलिए, मैं सोचता हूं कि परमाणु अप्रसार संधि की अपनी सदस्यता के तहत ईरान के पास परमाणु हथियार का विकल्प नहीं है ।
 
साक्षात्कारकर्ता : आपके पास मुझसे अधिक जानकारी है, लेकिन बाहर के सभी पर्यवेक्षकों को और आईएईए को जिन्होंने कल एक और अघोषित साइट ढूंढ निकाली - लगता है और निश्चित रूप से लगता है, और आईएईए की रिपोर्ट से भी स्पष्ट होता है - मानो वे परमाणु हथियार कार्यक्रम चला रहे हैं।
 
प्रधानमंत्री : मुझे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के महानिदेशक से मिलने का अवसर मिला, जो कुछ सप्ताह पूर्व हमारे यहां दौरे पर आए थे। और वे निश्चित नहीं थे कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की दिशा में निश्चित रूप से काम कर रहा है।
 
साक्षात्कारकर्ता : यह दिलचस्प बात है। उन्होंने जो रिपोर्ट कल जारी की - मैं नहीं जानता कि तुमने इसे देखा है या नहीं, लेकिन मैं सो नहीं पाया इसलिए मैंने इसे आधी रात में जगकर पढ़ा - आईएईए की यह रिपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है।
 
प्रधानमंत्री : मैंने उसे नहीं देखा है।
 
साक्षात्कारकर्ता : ठीक, जब कोई कारण हो, तो आप ठीक से सो नहीं सकते। लेकिन उन्हें एक और अघोषित साइट मिली है और उन्होंने विशेष रूप से एक संवेदनशील रिपोर्ट जारी की है।  अब, मैं जानता हूं कि आपने जनरल मुशर्रफ के साथ बातचीत की थी, जब वह दो साल के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। तब जहाँ तक मैं समझ सकता हूँ, आप शर्म अल-शेख गए थे और आपने आशा व्यक्त की थी, जैसा कि आपने अभी-अभी कहा, पाकिस्तान और भारत में एक न एक दिन शांति समझौता होगा।  क्या इस दिशा में कोई कार्रवाई की जा रही है या आपको लगता है कि स्थिति .........
 
प्रधानमंत्री : मैं आपको बताना चाहूंगा कि हम पाकिस्तान के साथ उद्देश्यपूर्ण, सार्थक, द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सभी मुद्दों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारी एकमात्र शर्त यह है कि पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई करने के लिए नहीं करने दे।  यही प्रतिबद्धता जनरल मुशर्रफ ने मेरे पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के समक्ष भी दर्शाई थी, जब उन्होंने 2004 में पाकिस्तान का दौरा किया था। यही प्रतिबद्धता, जब भी मेरी जनरल मुशर्रफ से मुलाकात हुई है, उन्होंने मेरे सामने भी जताई है। प्रधानमंत्री गिलानी ने भी शर्म अल-शेख में यही प्रतिबद्धता मुझसे जताई। यदि पाकिस्तान वास्तव में उस प्रतिबद्धता का सम्मान करता है, तो हमारे बीच लंबित पड़े सभी मुद्दों को सुलझाने के लिए हम फिर से उद्देश्यपूर्ण, सार्थक वार्ता शुरू कर सकते हैं।
 
साक्षात्कारकर्ता : और, यदि आप मुंबई और लश्कर-ए- तैयबा पर नजर डालें, तो स्पष्ट है कि वे समझौते का सम्मान नहीं कर रहे हैं।
 
प्रधानमंत्री : जहाँ तक मुंबई नरसंहार के अपराधियों का संबंध है, उन्होंने कुछ कदम तो उठाए हैं, किंतु वे पर्याप्त नहीं हैं। जहां तक लश्कर-ए-तैयबा का संबंध है, एक अलग नाम जमात – उद - दावा ...
 
साक्षात्कारकर्ता : उन्होंने उस आदमी को जेल से रिहा कर दिया है, है ना?
 
प्रधानमंत्री : उन्होंने हाफिज सईद को जेल में नहीं डाला। न्यायालय ने उसे रिहा कर दिया। यह बहाना है। लेकिन हमारी नजर में लश्कर - ए - तैयबा, जमात - उद - दावा, हाफिज सईद, मसूद अजहर, हमारे देश में आतंक फैलाने वाले अपराधी हैं और पाकिस्तान का दायित्व है कि उन्हें इन अवांछनीय कार्यों में लिप्त रहने से रोकने के लिए कारगर कदम उठाए।
 
साक्षात्कारकर्ता : क्या आपको इस बात की चिंता है कि मुंबई जैसी घटना दोबारा न हो जाए?
 
प्रधानमंत्री : मुझे हर दिन खुफिया रिपोर्ट मिलती है कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी इसी तरह की घटनाओं को अंजाम देने की योजना बना रहे हैं।
 
साक्षात्कारकर्ता : खौफनाक! पाकिस्तान स्थित आतंकवादी और योजनाएं बना रहे हैं?
 
प्रधानमंत्री : हाँ, यह बिल्कुल सही है।
 
साक्षात्कारकर्ता : क्या आपकी सरकार और पाकिस्तानी सरकार के बीच कोई संपर्क है?
 
प्रधानमंत्री : हमारे बीच सामान्य संपर्क है। वहाँ हमारा उच्चायोग है। उनका उच्चायोग हमारे यहाँ है।
 
साक्षात्कारकर्ता : लेकिन यह चैनल वैसा काम नहीं कर रहा है, जैसा आप चाहते हैं।
 
प्रधानमंत्री : लेकिन अमरीका के साथ हमारा बहुत अच्छा सहयोग है और हमें मित्र देशों से काफी जानकारी मिलती है, और यह इन आतंकवादी समूहों लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा द्वारा हमारे देश के खिलाफ चलाई जा रही आतंकवादी गतिविधियों की ओर इशारा करती है।
 
साक्षात्कारकर्ता : आप चीन को किस रूप में देखते हैं? आप इसे खतरे के रूप में देखते हैं, या व्यापारिक भागीदार या दोनों रूप में देखते हैं?
 
प्रधानमंत्री : मैं बताना चाहूंगा कि चीन की शांतिपूर्ण प्रगति से विश्व के समक्ष चीन से जुड़ने के लिए अवसर पैदा हुए है। चीन हमारे साथ एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरा है, और हम इसका स्वागत करते हैं। लेकिन चीन से हमारा विवाद सीमा को लेकर है। हम दोनों ने इस पर चर्चा की है। हम सीमा विवाद पर बातचीत कर रहे हैं।  हम दोनों इस बात से सहमत हैं कि यह जटिल मुद्दा है और इसे सुलझाने में समय लगेगा और सीमा विवाद का समाधान होने तक सीमाओं पर शांति बनाए रखने का दायित्व हम दोनों का है।  मैंने चीन में भी और अन्यत्र भी यही कहा है, हमारा विश्वास है कि भारत और चीन दोनों के विकास की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दुनिया में पर्याप्त जगह है। लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र अवश्य होंगे, जैसे व्यापार में, निवेश में प्रतिस्पर्धा होगी और यह हितकर भी है।
 
साक्षात्कारकर्ता : यह दिलचस्प है। चूंकि आप एक अर्थशास्त्री हैं, तो क्या आपको लगता है कि पिछले साल हम पर आई आर्थिक आपदा से पैदा हुई आर्थिक कमजोरी ने एशिया में संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व को कमजोर किया है या उसे प्रभावित किया है?
 
प्रधानमंत्री : मुझे पूरी उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमरीका पिछले वर्ष की आपदा से उबर जाएगा। अमरीकी व्यापारी वर्ग के उद्यमशील कौशल और अभिनव प्रयोग तथा अमरीकी शिक्षा प्रणाली, जो अभिनव प्रयोग और आविष्कार को प्रोत्साहन देती है, इन सबको देखते हुए, मुझे कोई संदेह नहीं है कि अमरीका इस अस्थायी बाधा को पार कर लेगा। हम चाहते हैं कि संयुक्त राज्य अमरीका अपने इस प्रयास में सफल हो ।
 
साक्षात्कारकर्ता : यहां तक कि अमरीका में भी कुछ लोग कह रहे हैं कि इतनी बड़ी मात्रा में वित्तीय घाटे के कारण हमने निश्चित रूप से अपनी कुछ ताकत, और कुछ नेतृत्व करने की क्षमता खो दी है ।
 
प्रधानमंत्री : यह मैंने भी पहले कई बार सुना है। जब मैं 1960 के दशक के आखिरी वर्षों में संयुक्त राज्य अमरीका में था तब येल के प्रो. रॉबर्ट ट्रिफिन ने ‘गोल्ड एंड द डॉलर क्राइसिस’ (Gold & the Dollar Crisis) नाम से प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा कि आरक्षित मुद्रा के रूप में डॉलर की भूमिका समाप्त होने जा रही है और संयुक्त राज्य अमरीका को इसे अवश्य समझना चाहिए।  यह 1968 में कहा गया था। इसके बाद ज़ाहिर है 1971 में जब अमरीका ने गोल्ड एक्सचेंज टेंडर बंद कर दिया था। लेकिन संयुक्त राज्य अमरीका ने इससे अपने को उबार लिया। मुझे आशा है कि यह बात एक बार फिर से होगी।
 
साक्षात्कारकर्ता : लेकिन अगर आप उद्देश्यपरक तथ्यों को देखें, तो आप मुझसे भी अधिक जान जाएंगे। मैंने व्यापारियों के साथ काफी समय व्यतीत किया है और वे सब भी ऐसे ही चिंतित हैं।
 
प्रधानमंत्री : मुझे लगता है, यह अच्छा है कि वे इसके बारे में चिंता करते हैं, क्योंकि पिछले साल अमरीकी बैंकिंग प्रणाली में जो अनियंत्रण देखा गया, वह चिंता का विषय था। इनका पता बहुत पहले चल जाना चाहिए था।
 
साक्षात्कारकर्ता : ये बात तो है। लेकिन लगता है भारत मूल रूप से ...
 
प्रधानमंत्री : सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी बैंकिंग प्रणाली अधिक नियंत्रित है। हम अपनी बैंकिंग प्रणाली को उस प्रकार की संपत्तियों पर भारी निवेश करने की अनुमति नहीं देते है।
 
साक्षात्कारकर्ता : आपका मतलब डेरिवेटिव्ज़, सीडीओ और स्क्वैयर्ड तथा इसी तरह की चीजों से है। आपकी अर्थव्यवस्था मूल रूप से इससे सुरक्षित निकल गई।
 
प्रधानमंत्री : नहीं, हम पर भी प्रभाव पड़ा, क्योंकि हमारा निर्यात प्रभावित हुआ। हमारी निर्यात वृद्धि दर में तेजी से गिरावट आई है। इसके अलावा पूंजी का प्रवाह भी प्रभावित हुआ है। लेकिन हाल ही में, हमारे देश में पूंजी का वापस आना आरंभ हो गया है।  कुल मिलाकर, संकट से पहले हमारी विकास दर पिछले चार सालों में 8.5 से 9 प्रतिशत तक प्रतिवर्ष थी।
 
साक्षात्कारकर्ता : अविश्वसनीय!
 
प्रधानमंत्री : तब से इसमें 6.7 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई है। इस वर्ष यह लगभग 6.5 प्रतिशत हो जाएगी। हम मानते हैं कि घरेलू मांग - खपत मांग और निवेश मांग, दोनों के आधार पर, दो साल के समय में हम 9 फीसदी की विकास दर वापस प्राप्त सकते हैं। मैं यह विश्वास के साथ कह रहा हूं, क्योंकि हमारी घरेलू बचत दर हमारे सकल घरेलू उत्पाद के 35 प्रतिशत के बराबर है।
 
साक्षात्कारकर्ता : आप कैसी बच्चों जैसी बात कर रहे हैं! आपने यह सब कैसे किया?
 
प्रधानमंत्री : वैसे, मैं समझता हूं कि भारतीय लोग अधिक बचत में विश्वास करते हैं।
 
साक्षात्कारकर्ता : यह आश्चर्यजनक है!
 
प्रधानमंत्री : और 4:1 के पूंजीगत आउटपुट अनुपात से, हम कुछ समय में 8 से 9 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर बनाए रखने में सक्षम हो जाएंगे।
 
साक्षात्कारकर्ता : यह अविश्वसनीय है! काश हम भी आपकी तरह हो सकते! यह अद्भुत है! माओवादी उग्रवाद को आप किस तरह लेते हैं? उन क्षेत्रों के बारे में आपकी क्या राय है, जो लोगों के अनुसार नियंत्रण से बाहर हैं? आपके दोस्त मोंटेक सिंह अहलूवालिया कल रात मुझे बता रहे थे कि आपके यहां घने जंगल हैं जिनमें लोग रहते हैं, आदि-आदि और इसीलिए आपके यहां माओवादी पलते हैं।
 
प्रधानमंत्री : बेशक, यह सच है कि विकास का लाभ हमारी जनसंख्या के सभी वर्गों तक नहीं पहुँचा है। मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में, जहां बहुत अधिक गरीबी है, वहां इसका लाभ इन असामाजिक तत्वों द्वारा उठाया जाता है, जिन्हें हम माओवादी कहते हैं।  हम उनसे निपट लेंगे। यह दोहरी रणनीति है। पहली बात तो यह है कि हमारे देश के इन सुदूर हिस्सों में राज्य की कानून और व्यवस्था की मशीनरी जल्दी नहीं पहुँच पाती। हम इसे मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि विकास का लाभ, इसके बाद और समान अनुपात में सबको मिले, ताकि सामाजिक असंतोष और अशांति का भी समाधान हो सके, जो इस असमान विकास का परिणाम है।
 
साक्षात्कारकर्ता : आपका मतलब कुछ कानून और व्यवस्था और कुछ समृद्धि बढ़ने से इस समस्या से पार पाया जा सकता है?
 
प्रधानमंत्री : तेज विकास से, बिलकुल।  
 
साक्षात्कारकर्ता : जब आप अपने देश की बात करते हैं, तो अगले कुछ वर्षों में आप और क्या हासिल करना चाहेंगे?
 
प्रधानमंत्री : प्रतिवर्ष 9 प्रतिशत की विकास दर, और यह सुनिश्चित करना कि यह विकास समावेशी विकास हो, जिससे विकास का लाभ हमारी जनसंख्या के सभी वर्गों तक पहुंचे, और कि ग्रामीण भारत और शहरी भारत के बीच असमानताएं घटते-घटते अंततः समाप्त हो जाएं।
 
साक्षात्कारकर्ता: क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री के रूप में आपने देश में कुछ अलग किया है। आपकी विरासत क्या होगी? क्या आपको लगता है कि आप अपने देश में बदलाव ला पाए हैं?
 
प्रधानमंत्री : मुझे विश्वास है कि मैं कुछ बदलाव ला सका हूं। भावी पीढ़ी इसका मूल्यांकन करेगी।
 
साक्षात्कारकर्ता : सच, ये तो मुश्किल काम है। क्या आप परीक्षण प्रतिबंध संधि (Test Ban Treaty) को लेकर चिंतित हैं, जिसे राष्ट्रपति ओबामा और उनका प्रशासन सीनेट के माध्यम से लागू करने पर आमादा हैं?
 
प्रधानमंत्री : हम चिंतित क्यों होंगे? हम बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। हमने स्वेच्छा से परीक्षण पर एकतरफा रोक लगाई है। हम इसका पालन करते हैं। और हम वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिेए राष्ट्रपति ओबामा के साथ काम करना पसंद करेंगे, जिससे विश्व को परमाणु हथियार मुक्त किया जा सके। मेरे विचार से जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक हमारे नेताओं का सपना भी ऐसी ही दुनिया का रहा है। हम इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इसी तरह की सोच रखने वाले सभी देशों के साथ काम करना चाहते हैं।
 
साक्षात्कारकर्ता : क्या आपका आखिरी सपना भारत में बुनियादी ढांचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का निर्माण करना है?
 
प्रधानमंत्री : बुनियादी ठांचे का निर्माण सतत विकास के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। हमें सड़कों पर, बंदरगाहों पर, विमानपत्तनों पर, सिंचाई में, शहरी बुनियादी ढांचे में काफी धन निवेश करने की जरूरत है। यह हमारी शीर्ष प्राथमिकताओं में हैं।  मेरा मतलब यह है कि यदि हम अपने बुनियादी ढांचे को ठीक कर पाते हैं, तो हम अपनी बचत दर से लगभग 8 से 9 प्रतिशत की विकास दर बनाए रख सकते हैं ।
 
साक्षात्कारकर्ता : लेकिन क्या बुनियादी ढांचे का निर्माण आपकी पहली प्राथमिकता है।
 
प्रधानमंत्री : हां, यह हमारी प्राथमिकता है।
 
साक्षात्कारकर्ता : प्रधानमंत्री महोदय, समय देने के लिए मैं आपका हार्दिक शुक्रिया अदा करता हूं। मैं जानता हूं कि आप अपने दौरे की तैयारी में काफी व्यस्त हैं।
 
प्रधानमंत्री : हमारे लिए भी खुशी की बात है कि आप हमारे बीच हैं ।
 
साक्षात्कारकर्ता : नहीं, मुझे खुशी है कि मुझे यह मौका मिला। आपका देश अद्भुत है।
 
प्रधानमंत्री : मुझे आशा है कि आप आते रहेंगे।
 
साक्षात्कारकर्ता : आपका बहुत बहुत धन्यवाद और मेरी शुभकामनाएँ हैं कि आप..........