भाषण

May 4, 2013
ग्रेटर नोएडा

एशियाई विकास बैंक की 46वीं एजीएम के शुभारंभ सत्र में प्रधानमंत्री का उद्बोधन

एशियाई विकास बैंक की 46वीं एजीएम के शुभारंभ सत्र में आज प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उद्बोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-

"सरकार और भारत की जनता की तरफ से, मैं एशियाई विकास बैंक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की 46वीं वार्षिक बैठक में आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूं। मैं एडीबी का अध्यक्ष चुने जाने पर राष्ट्रपति नकाओ को भी बधाई देता हूं। न सिर्फ भारत बल्कि समूचा क्षेत्र उस भूमिका की सराहना करता है जो एडीबी के पूर्व अध्यक्ष हारुहिको कुरोदा ने पिछले आठ वर्षों में एडीबी का मार्गदर्शन करने में निभाई है।

शताब्दियों तक निष्क्रिय और वंचित रहने के बाद, एशिया वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बार फिर अपना मुख्य स्थान हासिल कर रहा है। लगभग आधी सदी से, एडीबी ने सामान्य रूप से एशिया प्रशांत क्षेत्र और खासतौर से इस आकर्षक सफर में विकासशील सदस्य देशों का विश्वसनीय भागीदार रहा है। आपको आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी और उसके लिए मैं आपको शुभकामना देता हूं।

21वीं सदी को उचित ही एशिया की सदी कहा जाता है। उचित परिदृश्य में इसे उस स्थान के पुनरुत्थान की प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए जो स्थान वैश्विक परिदृश्य में उसे करीब 250 वर्ष पहले हासिल था। एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का तेजी से आधुनिकीकरण और विस्तार दुनिया के आर्थिक इतिहास में सर्वाधिक नाटकीय घटनाक्रम में से एक के रूप में माना जाता है। इस प्रक्रिया ने मानवता के इतिहास में फंसे अधिसंख्य गरीबों को भी गरीबी से बाहर निकाला है। यदि विकास की वर्तमान गति जारी रहे तो दुनिया की अर्थव्यवस्था में एशिया की हिस्सेदारी 2050 तक दुगुनी हो जाएगी और वैश्विक जीडीपी का आधे अधिक इसी क्षेत्र में होगा।

वर्ष 2013 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अग्रिम अनुमान के अनुसार विकसित अर्थव्यवस्था सिर्फ 1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी जबकि विकासशील एशिया में वृद्धि दर इससे पांच गुणा तेज यानी 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। एशिया क्षेत्र के वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की प्रक्रिया से उबारने और स्थिरता की राह पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा है।

एशिया का पुनरुत्थान उस प्रक्रिया का अंग है जहां आर्थिक शक्ति हाल के वर्षों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तरफ रुख कर रही है। खरीद शक्ति तुल्यता पर, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का योगदान 2012 में वैश्विक वृद्धि का 80 प्रतिशत रहा। इसमें अधिकांश योगदान उभरते एशिया का रहा तथा वैश्विक वृद्धि में चीन और भारत का योगदान क्रमशः 35 प्रतिशत और 10 प्रतिशत रहा। यह रुझान आने वर्ष में भी जारी रहने की संभावना है।

दुनिया ऐसी दिशा में बढ़ रही है जहां खपत और निवेश उभरते बाज़ारों, खासतौर से एशिया का रुख कर रहे हैं। इससे अनेक अवसर और चुनौतियां पैदा हो रही हैं। उनमें ये सब शामिल हैं - विकास के विविध मॉडलों को जगह देना, यह सुनिश्चित करना कि वृद्धि समावेशी हो और एशियाई देशों को अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में महत्व प्रदान करना जो उनके लोगों की महत्वाकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप हो। इस चुनौती से निपटने तथा सरकार के साथ काम करने में एडीबी का विशिष्ट स्थान है कि विश्व ज्यादा समावेशी, निष्पक्ष और स्थिर हो जाए।

यह सच है कि एशिया और प्रशंत क्षेत्र दो दशक से 8 प्रतिशत से अधिक वार्षिक दर से बढ़ रहा है। यह विश्व का सर्वाधिक गतिशील क्षेत्र है लेकिन अब भी इस क्षेत्र तथा इस विशाल क्षेत्र के देशों में गहरा अंतर है। हालांकि अनेक देशों में गरीबी में महत्वपूर्ण कमी आई है, लेकिन असमानता कम नहीं हुई है और अत्यधिक कुपोषण सहित कुछ सामाजिक सूचकों में महत्वपूर्ण सुधर नहीं हुआ है। सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और पर्यापरण संरक्षण के मामले में भी अंतर विद्यमान हैं। यह सही समय है जब एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को ऐसे क्षेत्रों में संसाधनों के निवेश के जरिए साझा चुनौतियों से निपटने के प्रयास तेज करने चाहिए जो हमारी जनता के हर तबके को सशक्त बनाने में मदद करे। एडीबी इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

एक अरब 70 करोड़ लोग अब भी 2 डॉलर प्रति दिन से कम पर जीवन बिता रहे हैं इसलिए गरीबी उन्मूलन एशिया में सार्वजनिक जीतियों का तात्कालिक लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही, गरीबी के अलावा दीर्घावधि दृष्टिकोण भी अपनाना चाहिए जो साझा समृद्धि पर बल देता हो। मुझे आशा है कि एडीबी एशिया की दो विभिन्न जरूरतों के जरिए सामने आई चुनौतियों से निपटने के प्रयास के लिए प्रतिबद्ध होगा।

उच्च आर्थिक वृद्धि आवश्यक है। लेकिन बात यहीं समाप्त हो सकती। तीव्र वृद्धि के लाभ अनिवार्य रूप से आम आदमी के जीवन में बेहतरी के लिए होने चाहिए। विकास के परिणाम के बराबर वितरण के लिए लोगों को सशक्त बनाने के जरिए विकास होना आवश्यक है। यह समावेशी वृद्धि की कुंजी है। बढ़ती श्रम शक्ति के लिए नए उत्पादक रोजगार अवसर पैदा करना लोगों को सशक्त बनाने का सर्वाधिक शक्तिशाली माध्यम है। इसके लिए कौशल विकास सबसे शक्तिशाली साधन है।

उस जनांकिकीय लाभांश के बारे में बहुत बाते सुनाई देती हैं जो आने वाले दशकों में विकासशील एशिया को हासिल रहेगा। हमें इसे हकीकत में बदलने के लिए प्रभावशाली संस्थाऔं और कारगर नीतियों की जरूरत होगी। स्वास्थ्य, प्राथमिक और उच्च शिक्षा, कौशल विकास के साथ औद्योगिक क्षेत्र लाभदायक रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं इसलिए ऐसे क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि में अतिरिक्त श्रमिकों को काम देने की सीमित क्षमता है इसलिए खेती से बाहर के क्षेत्रों में उच्च उत्पादकता वाले रोजगार सृजित करने की जरूरत है। इससे आर्थिक वृद्धि का आधार विस्तृत होगा और श्रम बाजार गतिशील होगा।

राजधानी तक समय पर पहुंच के लिए ढांचागत क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश की बहुत जरूरत है। बुनियादी ढांचे में निवेश दीर्घकाल से निहित रहा है और निजी क्षेत्र कई मामलों में जोखिम कम करने के प्रयास कर रहा है लेकिन वैश्विक स्तर पर ढांचागत क्षेत्र के लिए धन की व्यवस्था करने और निवेश के लिए ठोस उपाय करना वैश्विक एजेंडे की प्राथमिकता होनी चाहिए। बहुस्तरीय और क्षेत्रीय विकास बैंकों की यही भूमिका है। जैसा मैंने बीस सदस्यों की बैठक में लास कोबोस में कहा था, विकासशील देशों में ढांचागत निवेश से न सिर्फ इन देशों में तीव्र वृद्धि के लिए बुनियाद पड़ेगी बल्कि यह अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाने को अच्छा प्रोत्साहन देगा तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने को बढ़ावा देगा और वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनः संतुलन के जरिए रोजगार भी पैदा करेगा। हमने यूरोप में संकट दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में संसाधनों का बहुत विस्तार किया है। अत्यधिक जरूरी बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश के लिए समय पर पहुंच की जरूरत है। अब हमे बहुस्तरीय विकास बैंकों के संसाधन आधार के महत्वपूर्ण विस्तार की जरूरत है ताकि उनके पास विकास क्षमता हासिल करने के लिए विकासशील देशों की मदद करने की शक्ति हो।

एडीबी को वैश्विक बचत को एशिया प्रशांत में ढांचागत परियोजनाओं में निवेश करने के रास्ते तलाश करने की पहल करनी चाहिए। एडीबी की अच्छी रेटिंग और तकनीकी विशेषज्ञता उचित साधनों के जरिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में संसाधन बढ़ाने के लिए तालमेल कर सकती है। विभिन्न देशों में पूलिंग निवेश से जोखिम कम हो सकते हैं। इसे एडीबी से ऋण में वृद्धि होने से और भी कम किया जा सकता है। एडीबी के हस्तक्षेप से बुनियादी ढांचे के लिए धन की व्यवस्था और निवेश के विस्तार से दीर्घावधि ढांचागत परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था करने की लागत कम करने में मदद मिलेगी। मुझे आशा है कि एडीबी इस दिशा में आगे बढ़ने और इस विशाल क्षेत्र में वृद्धि दर को तेज करने पर विचार कर सकता है।

एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया तेज करने , गरीबी घटाने और आर्थिक अंतर दूर करने में महत्वपूर्ण निभा सकते हैं। सीमा-पार बुनियादी ढांचे के निर्माण, स्वच्छ वायु और ऊर्जा जैसे क्षेत्रीय सामान में व्यापार और निवेश की बाधाएं दूर करने, ऊर्जा दक्षता, जल संसाधनों के प्रबंध, संचारी रोगों का नियंत्रण और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंध के महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती।

भारत इस बात पर दृढ विश्वास करता है कि क्षेत्रीय एकीकरण से बहुत फायदा है तथा इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। हम पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ प्रगाढ़ सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं।

भारत ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए 8 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा है जो 2012 से 2017 तक चलेगी। यह ऐसी वृद्धि दर है जो हमारे देश ने पिछले दशक में हासिल की थी। हम निवेश बढ़ाने और भारत को घरेलू एवं विदेशी निवेशकों के लिए ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए उपाय कर रहे हैं। हाल के वर्षों में हमने वित्तीय घाटा कम करने के लिए भी ठोस उपाय किए हैं।

भारत और एडीबी वृद्धि प्रक्रिया को ज्यादा समावेशी और सतत बनाने के साझा कार्यक्रम के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि यह सिर्फ सामाजिक और राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि दीर्घकालिक सतत वृद्धि के लिए भी जरूरी है। इसलिए हमने आजीविका सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कौशल विकास और स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा पर विशेष बल दिया है।

भारत में पंचायती राज संस्थाओं के जरिए शासन के विकेंद्रीकरण से आम आदमी सशक्त हुआ है और विकास की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बना है। आज स्थानीय सरकारों में 30 लाख से अधिक चुने हुए प्रतिनिधि हैं और उनमें से करीब 40 प्रतिशत महिलाएं हैं जो भारत में अपने समुदायों में विकास का एजेंडा लागू कर रहे हैं। इसी तरह आज महिला स्व सहायता समूहों में 3 करोड़ से अधिक महिलाएं हैं जो अपने समुदायों में नई और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

हाल के वर्षों में हमने काम, शिक्षा और सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना का कानूनी अधिकार प्रदान किया है। हम अपनी जनता को किफायती दर पर भोजन का अधिकार भी देने की योजना बना रहे हैं। इस संबंध में विधेयक संसद में रखा गया है। हम सार्वजनिक सेवाओं और अधिकारों की प्रभावी डिलीवरी एवं नागरिक पहचान के आधार के रूप में आधार कार्यक्रम के तहत दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रानिक पहचान डाटाबेस भी बना रहे हैं। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण कार्यक्रम लाभार्थियों के लिए लाभ हासिल करना आसान बनाएगा और सरकारी सेवाओं की डिलीवरी में भ्रष्टाचार एवं बर्बादी को भी खत्म करेगा।

आज एशिया बदलाव की राह पर खड़ा है। यदि उचित नीतियों और रणनीतिक दृष्टिकोण के जरिए हमारी अर्थव्यवस्थाओं की संभावनाओं का पूरा दोहन किया जाए तो एशिया निश्चित रूप से दुनिया के मामलों और वैश्विक बेहतरी में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएगा । प्रत्येक एशियाई देश को यह नेक लक्ष्य हासिल करने में योगदान के रास्ते और माध्यम तलाशने चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि ज्यादा सशक्त, स्थायी और सुरक्षित दुनिया के निर्माण तथा इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए क्षेत्र में प्रमुख विकास बैंक बनाने के लिए हमारी अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादा सहयोग करना चाहिए। मैं 46वीं वार्षिक आम सभा में आपकी सफलता की कामना करता हूं।" 
 

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